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ये तो बात हुई सिर्फ दर्ज करवाये हुए मामलों की, ऐसे कई मामले तो लोग समाज एवं बदनामी के डर से दर्ज ही नही करवाते और अगर दर्ज करवाते भी है तो वकील की फ़ीस नही होने की वजह से मामला कचेरी तक पहुँचता ही नही है.
130 करोड़ की आबादी वाले देश मे प्रतिदिन 100 मामलो मे से हम 2-3 मामलों के लिए संघर्ष करते है, पहले निर्भया फिर आशिफ़ा फिर प्रियंका इन सबके नाम पता है पर बाकी के मामलों का क्या? 2012 से निर्भया का मामला चल रहा है 2578 दिन बाद फांसी हुई, प्रियंका के दुष्कर्म को 80 लाख से ज़्यादा लोगो ने पोर्न साईट पर ढूंढने की कोशिश की.
रामचंद्र कह गए सिया से एक दिन ऐसा कलयुग आयेगा,
वुमन इम्पावपरमेन्ट के नाम पे अपनी ही बेटियों का बलात्कार हो जायेगा,
दो-चार दिन अखबार-कचेरी में तमाशा बनके गुनेगार भी छूट जायेगा,
जंहा इंसाफ सच से ज्यादा जेब के वज़न के हिसाब से हो जायेगा,
आम आदमी को वोट देने के बाद भी अपना हक़ मांगना पड़ जायेगा,
अब तो जाग, कुछ उम्मीद बढ़ा वरना भारत माँ का नाम बदनाम हो जायेगा…
जिस देश को मा के नाम से जाना जाता है उसी देश मे ये सब देख के खून तो सभी का खोलता है पर सब ये ही सोचते है मेरे पास सत्ता नहीं है कुछ करने की, राजनीति वाले लोग और वकील हमारे कानून के नियमो को कोशेंगे और बस मामला लंबा होते होते इंसाफ तक पहुचे या नही पहुचे पर हर बार नयी तारीख़ पे जरूर पहुच जाता है.पीड़ित महिलाओं और उनके परिवारजनों का इंसाफ फिर सिर्फ़ उम्मीद बनके रह जाता है.
“बस हमे ये उम्मीद को जगाना है,
और हर नारी का सम्मान करना है”
(यह आर्टिकल कुशल जानी द्वारा लिखा गया है)