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दलित लेखिकाओं ने कथाओं और गैर-कथाओं के माध्यम से समाज और जातिवाद से जूझती एक महिला के संघर्ष से समाज को अवगत करवाया है. दलित लेखिकाएं, दुख, भेदभाव और विपत्ति से जूझ कर, अपनी किताबों और सक्रियता से समाज की अन्य महिलाओं को एक नई दिशा दिखाती है। शिक्षा ग्रहण कर इन दलित महिलाएँ ने अपनी कहानी दुनिया से बाँटी है।
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कांबले एक मराठी लेखिका एवं दलित कार्यकर्ता हैं। साथ ही, वह आत्मकथा लिखने वाली प्रथम लेखिका हैं। कांबले ने 'माज्य जमालची चित्तरथा' में अपने जीवन से प्रेरित कहानी द्वारा दलित समाज में जन्मी नाज़ा का संघर्ष, कक्षा, जाति और उत्पीड़न का उल्लेखन किया है। इस पुस्तक को मुंबई विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।
सोलापुर के महार दलित परिवार में जन्मी, शांताबाई को शिक्षा ग्रहण करने से वंचित कर दिया गया था। इसके बावज़ूद, वह कक्षा के बहार बैठ कर पढ़ती थी। शांताबाई जाति के अत्याचार सहने वाले लोगों की वक़ालत करने वाली प्रसिद्ध दलित कार्यकर्ता है।
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पी. शिवकामी एक प्रशंसित तमिल दलित लेखिका हैं। शिवकामी ने दलित और नारीवादी विषयों पर केंद्रित चार प्रशंसित उपन्यास लिखे हैं। उनमे से एक, 'गृप ऑफ़ चेंज' शिवकामी द्वारा स्वयं अंग्रेजी में अनुवादित किया गया है। वह हर मास 'पुधिया कोडंगी' संपादित करती है जिसे वह 1995 से प्रकाशित कर रही है। उनका दूसरा उपन्यास आनंदयी जल्द ही पेंगुइन द्वारा अंग्रेजी अनुवाद में प्रकाशित किया जाएगा
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अनीता भारती एक प्रमुख कवि, लेखक जो हिंदी साहित्य में दलित महिलाओं के नजरिए को दर्शाने वाली एवं दलित और महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली एक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने हाल ही में 65 कवियों का कविता संग्रह, 'यथस्थिथी से तकराते हुए दलित स्त्री जीवन से जुडी कवितायें' का संपादन एवं प्रकाशन किया है। उनका एक और महत्वपूर्ण योगदान है- सामाजिक क्रांतिकारी गबदू राम बाल्मीकि की जीवनी। अनीता को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
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कौसल्या बैसंत्री की आत्मकथा ‘दोहरा अभिशाप’ (1999) दलित समाज में महिला जीवन के तमाम संघर्षों का उल्लेख करती है। यह आत्मकथा उनके व उनके मां-बाप के संघर्षों से भरे जीवन का चित्रण करती है। उन्होंने दलित समाज की अच्छाई बुराई सभी का विवरण अपनी आत्मकथा में दिया है।
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उर्मिला पवार की आत्मकथा- आयदान, समाज को आयना दिखाने वाली एक ऐसी कहानी थी को काफी चर्चित रही। उन्होंने न केवल एक दलित महिला होने के अपने अनुभवों पर लिखा है, बल्कि जाति और लिंग के मुद्दों के बारे में लघु कथाएं भी लिखी हैं।
हम ऐसी लेखिकाओं का सम्मान एवं प्रोत्साहन करते हैं.
शांताबाई कांबले
कांबले एक मराठी लेखिका एवं दलित कार्यकर्ता हैं। साथ ही, वह आत्मकथा लिखने वाली प्रथम लेखिका हैं। कांबले ने 'माज्य जमालची चित्तरथा' में अपने जीवन से प्रेरित कहानी द्वारा दलित समाज में जन्मी नाज़ा का संघर्ष, कक्षा, जाति और उत्पीड़न का उल्लेखन किया है। इस पुस्तक को मुंबई विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।
सोलापुर के महार दलित परिवार में जन्मी, शांताबाई को शिक्षा ग्रहण करने से वंचित कर दिया गया था। इसके बावज़ूद, वह कक्षा के बहार बैठ कर पढ़ती थी। शांताबाई जाति के अत्याचार सहने वाले लोगों की वक़ालत करने वाली प्रसिद्ध दलित कार्यकर्ता है।
पी. शिवकामी
पी. शिवकामी एक प्रशंसित तमिल दलित लेखिका हैं। शिवकामी ने दलित और नारीवादी विषयों पर केंद्रित चार प्रशंसित उपन्यास लिखे हैं। उनमे से एक, 'गृप ऑफ़ चेंज' शिवकामी द्वारा स्वयं अंग्रेजी में अनुवादित किया गया है। वह हर मास 'पुधिया कोडंगी' संपादित करती है जिसे वह 1995 से प्रकाशित कर रही है। उनका दूसरा उपन्यास आनंदयी जल्द ही पेंगुइन द्वारा अंग्रेजी अनुवाद में प्रकाशित किया जाएगा
अनीता भारती
अनीता भारती एक प्रमुख कवि, लेखक जो हिंदी साहित्य में दलित महिलाओं के नजरिए को दर्शाने वाली एवं दलित और महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली एक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने हाल ही में 65 कवियों का कविता संग्रह, 'यथस्थिथी से तकराते हुए दलित स्त्री जीवन से जुडी कवितायें' का संपादन एवं प्रकाशन किया है। उनका एक और महत्वपूर्ण योगदान है- सामाजिक क्रांतिकारी गबदू राम बाल्मीकि की जीवनी। अनीता को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
कौसल्या नंदेश्वर बैसंत्री
कौसल्या बैसंत्री की आत्मकथा ‘दोहरा अभिशाप’ (1999) दलित समाज में महिला जीवन के तमाम संघर्षों का उल्लेख करती है। यह आत्मकथा उनके व उनके मां-बाप के संघर्षों से भरे जीवन का चित्रण करती है। उन्होंने दलित समाज की अच्छाई बुराई सभी का विवरण अपनी आत्मकथा में दिया है।
उर्मिला पवार
उर्मिला पवार की आत्मकथा- आयदान, समाज को आयना दिखाने वाली एक ऐसी कहानी थी को काफी चर्चित रही। उन्होंने न केवल एक दलित महिला होने के अपने अनुभवों पर लिखा है, बल्कि जाति और लिंग के मुद्दों के बारे में लघु कथाएं भी लिखी हैं।
हम ऐसी लेखिकाओं का सम्मान एवं प्रोत्साहन करते हैं.