Self Help Group: ओडिशा के केंद्रपाड़ा ज़िले के गुलनगर गांव की महिलाएं अन्य महिलाओं के लिए वाकई मिसला बनी हैं। ऐसा इसलिए कि यहां कि एक महिला कमला मोहराना ने अपनी मेहनत के बल पर वो कर दिखाया जो हर महिला का सपना हो सकता है। कमला मोहराना एक स्वयं सहायता समूह मां थानापति चलाती हैं जिसकी वो प्रमुख हैं।
स्वयं सहायता समूह से है आजीविका
स्वयं सहायता समूह मां थानापति वहां के प्रशासन की मदद से 2016 में शुरु किया गया। कमला मोहराना ने गांव कनेक्शन में दिए अपने इंटरव्यू में बताया है कि उनके समूह में उस दौरान केवल कुछ ही महिलाएं थी लेकिन आज उनके गांव की 40 महिलाएं इस स्वयं सहायता समूह में कार्यरत हैं और यही से उनकी आजीविका चलती है।
64 साल की कमला मोहराना ने अपने दिए एक इंटरव्यू में कहती हैं, "यह सब एक खाली समय में कुछ करने के साथ शुरू हुआ था। एक दिन मेरे पास जब करने के लिए कुछ काम नहीं था तो मैंने अपने आस-पास बेकार पड़ी दूध की प्लास्टिक की थैली, गुटखा कवर, सिगरेट के पैकेट और अन्य चीजों को उठाया, उन्हें स्ट्रिप्स में काटा और उससे एक सुंदर सी टोकरी बना डाली"।
जी हां, दरअसल ये स्वयं सहायता समूह सिगरेट, दूध, गुटका और अन्य रैपरों को अच्छे से धोकर और सुखाकर उन्हें स्ट्रिप्स में काटता है। फिर इस स्ट्रिप्स को आपस में सिलकर इस तरह तैयार करता है कि वो टोकरी या हाथ के पंखे जैसे आकारों में आ जाती हैं। फिर ये स्वयं सहायता समूह इन कचरे से बने प्रोडक्ट्स को मार्केट में बेच देता है। इस तरह कचरे से एक-से-बढ़कर एक प्रोडक्ट बनाकर ये गांव की आजीविका बन रहा है। कमला मोहराना के अनुसार उनका ग्रुप ऐसे कचरे से टोकरियां, पेन स्टैंड, मोबाइल फोन स्टैंड, गमले, हाथ के पंखे, वॉल हैंगिंग आदि बना रहा है।
6,000 रुपए महीने तक कमा लेती हैं सुमित्रा मोहराना
गांव की एक 32 वर्षीय सुमित्रा मोहराना के अनुसार, "कमला दीदी की वजह से अब मैं महीने में 6,000 रुपये तक कमा लेती हूं।" कमला मोहराना की मानें तो अगर कोई महिला अपने इस काम को अच्छे से कर लेती है तो वह एक दिन में तीन या चार टोकरियां बना सकती है। इसके साथ ही सुमित्रा मोहराना का कहना है कि उन्हें चार टोकरियां बनाने में चार से पांच घंटे तक लग जाते हैं।
प्रोडक्ट्स के प्राइज़ की बात करें तो जिसका जितना आकार उस हिसाब से उस प्रोडक्ट की वैल्यू बनती हैं। एक टोकरी का जितना आकार होता है उतनी ही उसकी क़ीमत होती है। टोकरी की क़ीमत की बात करें तो इस स्वयं सहायता समूह के द्वारा बनाई गई टोकरी की क़ीमत 75 रुपए से लेकर 150 रुपए तक है वहीं हाथ के पंखे की क़ीमत 100 रुपए है। पैन-स्टैंड को 50 रुपए में बेचा जाता है।
उपजिलाधिकारी निरंजन बेहरा ने की सराहना
केंद्रपाड़ा के उपजिलाधिकारी निरंजन बेहरा ने इस स्वयं सहायता समूह की सराहना करते हुए कहा, " हम लोग जितना कचरा पैदा कर रहे हैं उसका सिर्फ एक अंश ही प्रभावी ढंग से रीसाइकल किया जाता है। लेकिन कमला के नेतृत्व में इस गांव की महिलाएं कचरे से कमाल की चीजें बना रही हैं।" उपजिलाधिकारी निरंजन बेहरा ने आगे कहा, “ये महिलाएं न सिर्फ कमाई कर रही हैं बल्कि पर्यावरण को भी बचा रही हैं।”
हालांकि कमला मोहराना के लिए ये सब इतना आसान नहीं था। जब उन्होंने ये शिल्प तैयार करने शुरू किए थे तो लोग उन्हें कचरा बीनने वाली का दर्जा देते थे, हालांकि आज वही लोग उनसे जुड़े हैं। कमला मोहराना इस पर कहती हैं, “लेकिन अब वे मुझसे उन्हीं चीज़ों को खरीदते हैं, जिन्हें मैं कचरे से बनाती हूं। कई महिलाएं और छोटी लड़कियां भी कचरे से पैसा कमाने के इस काम में मेरे साथ शामिल हुई हैं।”