महिलाओं के साथ हो रही घरेलू हिंसा के कारण और समाधान

नारीवाद: आज के समय में महिलाएँ एक तरफ सफलता के नए आयाम पर चढ़ रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ कई महिलाएँ हिंसा और अपराध का शिकार हो रही हैं। हिंसा के मूल कारण क्या है? इसे खत्म कैसे किया जाए?

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Priya Rajput
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Domestic Violence(Navbharat times)

Causes And Solutions Of Domestic Violence Against Women (Image Credit - Navbharat times)

Causes And Solutions Of Domestic Violence Against Women: यूँ तो आज के समय में कह देते हैं कि महिलाएं स्वतंत्र हैं। हर क्षेत्र में अपना सहयोग दे रही हैं। देश के आर्थिक और व्यवसायिक हर क्षेत्र में महिलाएं बढ़-चढ़ कर भाग ले रहीं हैं। लेकिन यह समाज महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार कर रहा है? क्यों महिलाओं के साथ बलात्कार, हत्त्या, अपहरण जैसे मामले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं?

जानिए क्या हैं कारण घरेलू हिंसा के

1. कमज़ोर मानसिकता

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महिलाओं पर हो रही घरेलू हिंसा का मुख्य कारण कमज़ोर मानसिकता है। यह मानना कि महिलाएं पुरुषों की तुलना मे शारिरिक और मानसिक तौर पर कमज़ोर होती हैं। 

2. दहेज प्रथा

अभी भी दहेज के लालच की आग के तले बहुत सी महिलाएं को जलाया जा रहा है। उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। दहेज की आग न कभी समाज में बुझी थी न बुझेंगी और न जाने कब तक कितनी ही महिलाएं इस आग में जलेंगी।

3. जीवनसाथी से अनबन

साथी से बहस करना, उसके साथ यौन संबंध बनाने से मना करना, बच्चों की उपेक्षा करना, साथी को बताए बिना घर से बाहर जाना, स्वादिष्ट खाना न बनाना आदि मुद्दों को लेकर भी महिलाओं के साथ हिंसा होती रही है। 

4. जल्दी विवाह करने की होड़

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लड़कियों की शादी बहुत जल्द कर दी जाती है। उसे मन चाहा पढ़ने का मौका नहीं दिया जाता। जिसके कारण लड़कियाँ समाज में अपनी खुद की कोई पहचान नही बना पाती। 

समाधान

आज के समय में महिलाओं को पीटा जाता है, उनका अपहरण किया जाता है, बलात्कार किया जाता है, जला दिया जाता है या उनकी हत्या कर दी जाती है। लेकिन क्या हम कभी ये सोचते हैं कि आखिर वे कौन-सी महिलाएँ हैं जिनके साथ हिंसा होती है या उनके साथ हिंसा करने वाले लोग कौन है? ये और कोई नही हमारे ही समाज के लोग है, जिनकी सोच आज भी पिछड़ी रह गयी है।

सुधार लाने के लिये सबसे पहले कदम के तौर पर यह आवश्यक होगा कि “पुरुषों को महिलाओं के खिलाफ रखने” के बजाए पुरुषों को इस समाधान का भाग बनाया जाए। मर्दानगी की भावना को स्वस्थ मायनों में बढ़ावा देने और पुरानी घिसी पीटी सोच से छुटकारा पाना अनिवार्य होगा।