आज हर इंसान जो टीवी या सोशल मीडिया का प्रयोग करता है, फेमिनिज्म या नारीवादी शब्द जानता है। इस शब्द को क्लास 2-3 के बच्चे भी जान गए हैं। शब्द जितना पॉपुलर है, उतना ही गलत समझा जाता है, इसलिए पहले इस शब्द के मतलब को समझते हैं।
फेमिनिज्म का अर्थ है हर जेंडर के लिए समान अधिकार। हालांकि संविधान से आदमी और औरत को समान अधिकार मिलते हैं, असल ज़िन्दगी में यह अभी तक हासिल नहीं हो पाया है। उदाहरण के तौर पर, आदमी का काम करना ज़रूरत और औरत का काम करना उसकी खुशकिस्मती माना जाता है। आदमी चाहे तो अपने बालकनी में बिना शर्ट के खड़ा हो सकता है, पर स्कूल की बच्ची का भी अगर ब्रा का स्ट्राप गलती से दिख जाए, बच्ची पर ‘करक्टरलेस’ का टैग लग जाता है।
कुछ लोग सोचते हैं की फेमिनिज्म का अर्थ है औरतों को खास अधिकार मिलना। यह गलत है। आदमी औरत को मार नहीं सकता तो औरत को भी किसी आदमी को (बेवजह) मरने का कोई अधिकार नहीं है। केवल सेल्फ डिफेंस के अलावा। जो लड़की सोचती है की आदमी पर हाथ उठाना वीमेन एम्पावरमेंट है, वो बहुत ही गलत है, लीगल तौर पे, फेमिनिस्ट तौर पे और नैतिक तौर पे भी।
फेमिनिज्म की शुरुआत घर से होनी चाहिए
फेमिनिज्म की शुरुआत घर से होनी चाहिए। दूसरों को स्टेज पर खड़े होक भाषण देना आसान है, पर आप खुद को असली फेमिनिस्ट तभी कह सकते हैं जब आप अपने घर से फेमिनिज्म को अप्लाई कर सके। अगर हर परिवार घर पर फेमिनिस्ट तरीके से जिए तो जेंडर रिलेटेड इशू ज़रूर कम हो जायेंगे।
घर पर फेमिनिज्म की शुरुआत कैसे करें?
1. अपने बच्चों को उसके इंटरेस्ट के आधार पर खिलौने दें
लड़की के लिए किचन सेट और गुड़िया और लड़के के लिए गाड़ी और बन्दूक, यह सबसे पुराणी स्टेरोटाइप है। रिसर्च ने पाया है कि 3 साल के उम्र तक बच्चे की कोई जेंडर आइडेंटिटी नहीं होती। अगर आप उसे न कहे की लड़के गुड़िया से नहीं खेलते, वह भी ऐसा नहीं सोचेगा। इसलिए छोटे, मासूम बच्चों को अपनी मर्ज़ी से खिलौने चुनने दें, न की अपने स्टेरोटाइप उनपे इम्पोस करें।
2. भाई बहन में भेदभाव न करें
अगर आपके बेटा और बेटी दोनों है, तो कभी ऐसा न कहे की बेटी शादी के बाद आपको भूल जाएगी और बेटा आपका ध्यान रखेगा। इससे दोनों के मन में बुरा प्रभाव पड़ता है। बहन को भाई के लिए सफाई करने को न कहें। जेंडर के आधार पर घर के काम न बाटे, उन्हें चुनने का ऑप्शन दें। बेटे को काम से दूर तो कभी न रखे।
3. लड़की क्रिकेट नहीं खेलती
मैंने ऑल गर्ल्स स्कूल में पढाई की, इसलिए क्रिकेट हो, बैडमिंटन, कैरम या फूटबाल, साइंस हो या आर्ट्स, लड़कियाँ ही थी। इस कारण मेरे मोहल्ले में भी में ‘लड़कों वाले गेम’ भी खेलती थी। एक दिन एक पडोसी ने मुझे कहा की लड़किया क्रिकेट नहीं खेलती। इससे मुझे झटका लगा। मैं बच्ची थी तो कुछ बोल नहीं पाई मगर क्रिकट खेलना छोड़ दिया, पर आज जब मैं महिला क्रिकेट, फूटबाल, हॉकी और बैडमिंटन टिम्स को जीतते हुए देखती हूँ, महिला बॉक्सर को मेडल जीतते हुए देखती हूँ तो मन करता है की न्यूज़पेपर जा कर उस पडोसी के मुँह पर मारे।
अपने बच्चों को जेंडर के आधार पर कभी किसी भी चीज़ से दूर न रखें। लड़के डांस क्र सकते हैं और लड़की क्रिकेट खेल सकती है। आखिर बिरजू महाराज भी पुरुष हैं और मैरी कॉम औरत।
4. घर के काम बांटे
काम काम होता है। अगर आपके पास समय है, और आपके शरीर में ताकत है तो आपको भी घर के काम करने चाहिए। हो सकता है की आप हर खाना अच्छा न बना पाए, पर आप सब्ज़ी तो काट ही सकते हैं। आप अपने कपडे अपनी माता या पत्नी को समेटने न छोड़ दे, खुद क्र ले। अगर ब्लॉग पढ़ने वाला महिला है, तो अपने पति, बेटे या पिता से कहे की और कुछ नहीं तो कम से कम अपने काम खुद करें।
5. पीरियड्स से न शर्माए
पीरियड्स का होना मतलब शरीर का स्वस्थ होना। इसलिए पीरियड्स शर्माने वाली चीज़ नहीं है। इस समय अधिकतर भारतीय पुरषों को पीरियड्स के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है, और महिलाओं को भी बैर-मिनिमम जानकारी है। इससे बदलने की ज़रूरत है।
अगर आपका बच्चा पैड का पैकेट या एड देखे और सवाल करे तो उसे डटिएगा मत। बच्चों को प्यूबर्टी से पहले अपने प्राइवेट पार्ट्स के बारे में बात करने में (कम से कम माता पिता से) शर्म नहीं आती। इसलिए लड़का हो या लड़की, अगर आप सरल भाषा में डाइजेशन या रेस्पिरेशन के तरह उन्हें पीरियड्स के बारे में समझाए तो वे समझ जायेंगे। इससे कुछ सालों में पीरियड्स के बारे में टैबू भी ख़तम हो जायेगा, और हो सकता है की बच्चा अपनी माँ या बहन की मदद भी करेगा।