Modern Femininity: आज की महिला को 'फेमिनिन' होने का मतलब कैसे समझना चाहिए

फेमिनिनिटी अब सिर्फ साड़ी या सौम्यता तक सीमित नहीं। आज की महिला इसे अपने तरीके से परिभाषित कर रही है बोल्ड, स्वतंत्र और अपनी शर्तों पर जीती हुई।

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Priyanka
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Modern Femininity

Photograph: (Pinterest)

How today's woman should understand what it means to be feminine: कभी घूंघट, कभी साड़ी, कभी रसोई और कभी चूड़ियों में बांध दी गई थी femininity की परिभाषा। लेकिन आज की महिला इस शब्द को सिर्फ गुलाबी रंग, सौम्यता या आज्ञाकारिता से नहीं देखती। आज की फेमिनिनिटी, पुराने खांचे तोड़कर खुद की परिभाषा गढ़ रही है और वो परिभाषा हर महिला के लिए अलग है।

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आज की महिला को 'फेमिनिन' होने का मतलब कैसे समझना चाहिए

फेमिनिनिटी का मतलब अब क्या है?

फेमिनिन होना अब किसी एक रूप, व्यवहार या कपड़े तक सीमित नहीं रहा। यह एक एहसास है अपने अंदर की ताक़त, संवेदनशीलता, आत्मविश्वास और करुणा को पहचानने का। आज की महिला बॉस भी है, माँ भी, सिंगल ट्रैवलर भी है और activist भी। फेमिनिनिटी अब stereotypes को तोड़ने का नाम है वो सशक्त सौंदर्य जो दया, शक्ति और आत्मनिर्भरता से भरा है।

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कमज़ोरी नहीं, शक्ति की पहचान

पहले ‘फेमिनिन’ को कमज़ोर समझा जाता था लेकिन आज यह सहनशक्ति, सहानुभूति और संघर्ष में खूबसूरती खोजने का प्रतीक बन चुका है। महिला की भावनात्मक समझ, उसकी देखभाल करने की आदत ये सब उसकी ताक़त हैं, बोझ नहीं।

मौन नहीं, आवाज़ है फेमिनिनिटी

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अब महिला अपने विचारों को दबाती नहीं, बल्कि खुले तौर पर कहती है चाहे वो मीटिंग में हो, घर में या सोशल मीडिया पर। फेमिनिन होना अब ‘ना’ कहने की आज़ादी भी है।

मेकअप भी, नो-मेकअप भी

फेमिनिन होने का मतलब यह नहीं कि हर समय सज-धज कर रहना ज़रूरी है। आज की महिला मेकअप करती है क्योंकि वो चाहती है, न कि किसी की नज़र में खूबसूरत दिखने के लिए। और नो-मेकअप days भी उतने ही valid हैं। सुंदरता अब आत्मसम्मान से आती है।

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केयरिंग होना, लेकिन खुद के लिए भी

महिलाएं दूसरों का ध्यान रखती हैं, लेकिन आज की महिला खुद का भी उतना ही ख्याल रखती है। वो थकी होती है, तो आराम करती है। उदास होती है, तो खुलकर रोती है। वो खुद के साथ ईमानदार है।

चॉइस की आज़ादी ही असली फेमिनिनिटी है

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घर संभालना भी फेमिनिनिटी है और ऑफिस संभालना भी। स्कर्ट पहनना भी, सलवार कमीज़ पहनना भी। शादी करना, ना करना, माँ बनना या न बनना हर विकल्प महिला का खुद का है। और यही चॉइस की आज़ादी असली सशक्तिकरण है।

समाज को भी अब यह समझना होगा कि फेमिनिनिटी को किसी दायरे में बाँधना अब संभव नहीं। यह एक बहती नदी की तरह है जो रास्ता खुद बनाती है। कोई भी महिला अगर खुद को संपूर्ण महसूस करती है तो वही उसकी फेमिनिनिटी है।

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