Akshaya Tritiya 2025: जानिए तिथि, मुहूर्त, पूजा विधि और धार्मिक महत्व

अक्षय तृतीया एक अत्यंत शुभ तिथि है जब किसी भी कार्य की शुरुआत की जा सकती है। इस दिन किए गए पुण्य और दान का फल अक्षय होता है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि और आशीर्वाद आता है।

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Priya Singh
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Akshaya Tritiya 2023

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अक्षय तृतीया, जिसे आखा तीज भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक अत्यंत शुभ तिथि मानी जाती है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आप में अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है। शास्त्रों में इसे अबूझ मुहूर्त कहा गया है, जिसका अर्थ है कि इस दिन किसी भी शुभ कार्य के लिए किसी विशेष मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती। ऐसा विश्वास है कि इस दिन किया गया दान, पूज, या कोई भी पुण्य कार्य अक्षय फल देने वाला होता है, यानी उसका फल कभी समाप्त नहीं होता। इस दिन को धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।

Akshaya Tritiya 2025: जानिए तिथि, मुहूर्त, पूजा विधि और धार्मिक महत्व

अक्षय तृतीया 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त

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अक्षय तृतीया 2025 में यह पावन पर्व 30 अप्रैल, बुधवार को मनाया जाएगा। तृतीया तिथि 29 अप्रैल को शाम 5:32 बजे से प्रारंभ होगी और 30 अप्रैल को दोपहर 2:13 बजे तक रहेगी। चूंकि 30 अप्रैल को उदया तिथि पड़ रही है, इसलिए इसी दिन अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन का हर क्षण शुभ होता है और किसी भी समय विवाह, गृह प्रवेश, व्यवसाय की शुरुआत या वाहन व संपत्ति की खरीदारी जैसे कार्य बिना किसी ज्योतिषीय सलाह के किए जा सकते हैं। इसे युगादि तिथि भी कहा जाता है क्योंकि इसी दिन से युगों की शुरुआत मानी जाती है।

धार्मिक मान्यताएं और पौराणिक महत्व

अक्षय तृतीया से जुड़ी अनेक धार्मिक मान्यताएं हैं। मान्यता है कि इसी दिन सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग की शुरुआत हुई थी। गंगा का धरती पर आगमन भी इसी दिन हुआ था। साथ ही भगवान विष्णु के छठे अवतार, परशुराम का जन्म भी अक्षय तृतीया को ही हुआ था। उत्तराखंड स्थित प्रसिद्ध चार धाम यात्रा की शुरुआत भी इसी दिन से होती है, जब गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले जाते हैं।

अक्षय तृतीया की पूजा विधि

इस पावन दिन की शुरुआत प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने से होती है। पूजा के लिए घर में लक्ष्मी-नारायण की मूर्ति या चित्र स्थापित किया जाता है। भगवान विष्णु को चंदन और देवी लक्ष्मी को कुमकुम का तिलक किया जाता है। पीले फूल, कमल, खीरा, सत्तू, गेहूं, जौ, चने की दाल और गुड़ जैसे सामग्री अर्पित की जाती हैं। पूजा के पश्चात लक्ष्मी-नारायण की कथा पढ़ी जाती है और भक्ति भाव से आरती की जाती है।

दान, पुण्य और शुभ कार्यों का विशेष महत्व

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अक्षय तृतीया के दिन दान का विशेष महत्व है। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना, जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, व्रत और दान जीवन में स्थायी सुख-समृद्धि प्रदान करता है। यह पुण्य कभी समाप्त नहीं होता और व्यक्ति के जीवन में शुभ फल देता रहता है।

नवीन आरंभों और आशाओं का पर्व

अक्षय तृतीया केवल एक पर्व नहीं, बल्कि नए आरंभों का प्रतीक है। इस दिन अगर कोई कार्य शुरू किया जाए तो वह फलदायी और दीर्घकालिक सफलता देने वाला होता है। यही कारण है कि इसे विवाह, व्यापार, निवेश और अन्य शुभ कार्यों के लिए अत्यंत उपयुक्त माना जाता है।

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