Women Freedom Fighters: क्या आप जानते हैं इन बहादुर वीरांगनाओं को?

देखा गया है कि जब भी आजादी की बात आती है तो अक्सर पुरुषों के प्रयासों को बढ़ा चढ़ा कर गरिमा से प्रदर्शित किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं उन वीरांगनाओं के बारे में जिन्होंने संघर्ष की सीमा पार कर ली थी? जानिए इस ब्लॉग के माध्यम से

Aastha Dhillon
31 Jan 2023
Women Freedom Fighters: क्या आप जानते हैं इन बहादुर वीरांगनाओं को?

Women Freedom Fighters

Women Freedom Fighters: भारत की पांच प्रसिद्ध महिला क्रांतिकारी जिन्हें आजादी के दौरान पर्याप्त श्रेय नही मिला। भारत की आजादी के संघर्ष में महिलाओं ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। लेकिन यह हमारा ही दुर्भाग्य है कि हम कुछ चुनिंदा महिला क्रांतिकारियो के बारे में ही जानकारी रखते हैं और उन्हें भी उचित श्रेय नही दे पाते हैं। आज बात करेंगे ऐसी ही पाँच प्रसिद्ध महिला क्रांतिकारी की जिन्हें उनके योगदान के लिए पर्याप्त श्रेय नही मिला। 

बेगम हजरत अली

बेगम आखिरी ताजदर-ए-अवध वाजिद अली की पत्नी थी। उनका जिक्र इतिहास के पन्नों में शायद ही मिलता है। बेगम ने अंग्रेजों के खिलाफ खूब लड़ाई की थी। उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया था। जब अंग्रेजों ने अवध पर कब्जा किया और उनके पति को जेल मे डाल दिया तब उन्होंने बहादुरी से लड़ा और अवध को दोबारा हासिल किया और अपने बेटे को सिंहासन पर बैठाया।

भोगेश्वरी फुकनानी

भोगेश्वरी फुकनानी का जन्म नौगांव में हुआ था। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम मे बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। जब बेरहमपुर में क्रांतिकारियो ने अपने कार्यालयों पर नियंत्रण वापस लिया तब उस पर पुलिस ने छापा मार कर आतंक फैला दिया। तब सभी क्रांतिकारियो ने 'वंदे मातरम्' के नारे लगाते हुए मार्च किया। इस मार्च का नेतृत्व भोगेश्वरी ने किया था। उस वक्त मौजूद कप्तान को भोगेश्वरी जी ने मारा  था लेकिन बाद में कप्तान ने उन्हें गोली मार दी और उनकी मृत्यु हो गई।

 मातंगिनी हाजरा

हाजरा जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला सदस्यों मे से थी। वह गांधीवादी सोच और असहयोग आंदोलन की समर्थक थी। 73 वर्ष की उम्र में भी वह 'भारत छोड़ो आंदोलन' की सक्रिय भागीदार थी और इस दौरान उन्होंने 6000 समर्थको के जुलूस की अगुवाई की थी जिसमें अधिकतर भागीदार महिलाएं थी। उसी दौरान तमिलुक पुलिस स्टेशन के अधिकरण के दौरान पुलिस द्वारा गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई। 

कस्तूरब गांधी (Kastoorba Gandhi)

कस्तूरबा मोहनदास करमचंद गांधी के नाम से अधिक जानी जाती है। कस्तूरबा का जन्म पोरबंदर में हुआ था। 13 वर्ष की छोटी उम्र में उनका विवाह गांधी से हुआ। गांधी जी के साथ मिलकर उन्होंने बहुत काम किया और महिलाओं के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया। कस्तूरबा नमक सत्याग्रह के प्रमुख सदस्यों में से एक थी। 

कनकलता बरुआ

कनकलता का जन्म 1924 में असम में हुआ। वह असम के प्रसिद्ध योद्धाओं में से एक है। कनकलता हमेशा से देश की आजादी के संघर्ष का हिस्सा बनना चाहती थी। 17 साल की उम्र में वह आजाद हिंद फौज में शामिल होना चाहती थी लेकिन नाबालिग होने के कारण वो फौज का हिस्सा नही बन सकी। लेकिन 'करो या मरो' अभियान जो असम में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा शुरू किया गया उसका हिस्सा वह बन गई। 'भारत छोड़ो' आंदोलन के दौरान झंडा फहराने के लिए आगे बढते हुए असम में ही उनकी मृत्यु हो गई। 

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