आज का जमाना महिला और पुरुष की बराबरी का है। अब महिलाएं सिर्फ घर ही नहीं संभालती बल्कि वह जॉब भी कर रही हैं। ऐसे में उनकी जिम्मेदारियां डबल हो जाती हैं। ये महिलाएं दिन रात जॉब और घर के बीच बैलेन्स बना अपनी जीविका चलती है, लेकिन फिर भी इन्हें तारीफ की बजाए समाज से कुछ ताने सुनने को मिल जाते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है? क्यों हर बार महिलाओं को ही टारगेट किया जाता है? वर्क लाइफ बैलेंस करना कोई आसान काम नहीं है, एक सात दो-दो जिम्मेदारियों को हँस कर उठा लेने वाली महिलाओं को भी यह समाज गर्व से नहीं बल्कि तानों से स्वागत करता है।
“जब पति कमा ही रहा है तो तुमको जॉब करने की क्या जरुरत”
अक्सर आपमें से कई महिलाओं को पड़ोसी या रिश्तेदारों ने यह कहा होगा कि, जब पति कमा ही रहा है तो भला तुमको जॉब करने की क्या जरुरत है। यह सोच हमें बदलनी है। जॉब करना या अपने आप की एक पहचान बनाने की कोशिश करना सिर्फ कोई वजह से नहीं होता है। यह जरुरी नहीं की पैसे ही कमाने के लिए जॉब करें। समाज में आधे से ज्यादा महिलाएं अपने अस्तित्व और अपनी पहचान को जिन्दा रखने के लिए जॉब करती है। केवल यही वह जगह है जहाँ वह,न किसी की बेटी, न किसी की बहु, न पत्नी और न ही किसी के माँ की पहचान से जीती हैं। काम करना- जॉब करना उनको अपने आप से मिलता है।
"जॉब पर जाओगी तो बच्चों को कौन संभालेगा"
जब महिला जॉब पर जाती है तो बच्चे संभालने के लिए उसे नैनी या घर के किसी अन्य मेंबर की हेल्प लगती है। जॉब की वजह से वो कई घंटे बच्चे से दूर रहती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं हुआ कि उसे अपने बच्चे से प्रेम नहीं है। लेकिन फिर भी उन्हें ये ताने सुनने को मिलते हैं कि ‘कैसी कठोर मां है। बच्चे को दिनभर अकेला छोड़ जाती है। कोई अपने बच्चे से इतने समय दूर कैसे रह सकता है?’ हालांकि यह सवाल पिता से कभी नहीं पूछा जाता है।
पिता भी तो जॉब के लिए रोज़ाना अपने बच्चे को छोड़ कर ऑफिस जाता है। फिर आखिर समाज ऐसे भेदभाव क्यों करता है। इस सोच को बदलना जरुरी है। बच्चा किसी भी कपल के लिए, उन्हें और करीब लाने का जरिया बनता है। लेकिन यह समाज बच्चे को ही उसके माँ के पैरों की बेड़ियाँ बना रहा है। बच्चा हो जाने के बाद महिलाओं की जिंदगी पूरी तरह से बदल जाती है। ऐसा लगता है 24 घंटो में वह अपने लिए 1 घंटा भी नहीं निकाल सकती।
"लड़कियों को घर संभालने आना चाहिए"
घर संभालने की ज़िम्मेदारी सिर्फ एक महिला की होती है। यह बात बहुत गलत है। पुरुष और महिला दोनों को मिलकर घर संभालना चाहिए। आजकल की महिला वैसे स्मार्ट भी होती है। वे घर और जॉब दोनों अच्छे से संभाल लेती हैं। इस काम में पति की हेल्प ले भी ले तो कोई बुराई नहीं है। लेकिन समाज में लड़कियों को बचपन से ही चूल्हा-चौका और सिलाई-बुनाई के गुण सखायें जाते हैं। किसी भी स्किल को सीखना बुरा नहीं है, लेकिन उसके पीछे की भावना अगर गलत है तो उसे बदलना होगा। महिलाओं को घर और बच्चा संभालने की जिम्मेदारी अकेले क्यों दी जाती है? क्या शादी के बाद अच्छी बहु, अच्छी पत्नी और अच्छी माँ बनना, यह सिर्फ महिलाओं की जिम्मेदारी है? पुरुष को भी खुद को एक अच्छा पति और अच्छा पिता बनकर साबित करना चाहिए।