शादियां भारतीय समाज का एक बहुत महत्वपूर्ण स्तंभ है। यह केवल दो मनुष्यों को नही अपितु दो परिवारों को जोड़ती हैं और समाज की संरचना करती हैं। जहां एक रिश्ते में दो लोग जुड़ते हैं तो उस रिश्ते की सभी जिम्मेदारियां और उसे खुशहाल बनाने की जिम्मेदारी दोनों की होती है। लेकिन हम जिस समाज में रहते हैं, वो समाज महिलाओं से अधिक अपेक्षा रखता है एक शादी को बचा कर रखने के लिए। जिसका परिणाम यह होता है कि महिलाएं समाज में प्रतिष्ठा की खातिर अपना सारा जीवन एक ऐसे रिश्ते को बचाने में लगा देती हैं जिसमें वो खुश भी नहीं है।
अगर वह ऐसी शादी से बाहर निकलना भी चाहती हैं तो हमारा समाज और यहां तक की खुद घर की बड़ी महिलाएं भी ऐसा स्वीकार नहीं कर सकती हैं। बचपन से ही हमारे समाज में महिलाओं को शादी और शादी में समझौता करने की ट्रेनिंग दी जाती है। जिस कारण महिलाओं के लिए भी एक खराब रिश्ते से निकलने का फैसला लेना खुद में ही मुश्किल होता है।
आज जानते हैं कुछ ऐसी बातों और वाक्यों के बारे में जो हमें महिलाओं से एक खराब रिश्ते को बचाए रखने के लिए कभी नही बोलनी चाहिए :
1. " वो पती है, पती ऐसा ही करते हैं, तुम थोड़ा कोम्प्रोमाईज करो"
महिलाएं अक्सर यह वाक्य सुनती है। हमेशा उनको ही स्थितियों को सहने की और कॉम्प्रोमाईज़ करने की सलाह दी जाती है। लेकिन महिलाओं से ऐसा कहना उनको यह एहसास कराता है कि वे उस रिश्ते में बराबर की हकदार नही हैं। शादी में एक पती का ज्यादा हक है और एक पत्नी को हमेशा अपनी पती की बातें ही माननी चाहिए।
2. "अब तुम्हारा जीवन उसके साथ है, उसके बिना क्या करोगी?"
यह शब्द अपने आप में ही महिलाओं की प्रतिभा पर एक बड़ा प्रशनचिन्ह खड़ा कर देते हैं। उन्हें यह आभास कराते हैं कि एक पुरुष के बिना स्त्री की कोई पहचान ही नहीं है।
3. "एक थप्पड़ ही तो मारा है"
हमारे पितृसत्तात्मक समाज में हिंसा को पुरुषों के साथ अक्सर जोड़ कर देखा जाता है। 'पुरुष है तो गुस्सा आना स्वाभाविक है', समाज का यह रवैया बहुत आम है। वहीं महिलाओं से अपेक्षित होता है कि वे इस हिंसा को हर बार सिर्फ बर्दाश्त करती रहे क्योंकि अगर उन्होंने आवाज उठाई तो उनका घर - परिवार बिखर सकता है।
4. "औरतें घर जोड़ती अच्छी लगती हैं, तोड़ती हुई नहीं "
यह वाक्य महिलाओं पर दूसरों को खुश रखने का भार डालता है। उनको मजबूर करता है एक रिश्ते को जोड़े रखने के लिए जिसमें वह स्वयं भी खुश नही होती है। लेकिन समाज के द्वारा उन पर एक घर को बनाए रखने की भारी जिम्मेदारी होती है, जिससे बढ़कर शायद उनकी खुशी को समाज कभी त्वज्जो नहीं दे सकेगा।
5. "बच्चों का सोचो!"
हमारा देश में आधे से ज्यादा शादियां तो बच्चो के कारण चल रही हैं। और बच्चों की अधिक जिम्मेदारी माताओं पर होती है। शादी में कोई परेशानी है, या पती-पत्नी के बीच चीजें ठीक नही हैं तो सब यही सलाह देते हैं कि एक बच्चा करने से सब ठीक हो जाएगा। फिर जब उसके बाद भी सब सही नही होता है तो बच्चे का सोचकर ही आप शादी से अलग नहीं हो सकते हो। यह समझना जरूरी है कि एक नए जीवन को दुनिया में लाने से पहले उन दो लोगों का खुश रहना आवश्यक है ताकि वे इस नए जीवन को एक बेहतर से बेहतर परवरिश दे सकें।