भारतीय समाज में हमेशा महिलाओं पर नज़र रखी जाती है। वे क्या कर रही हैं? कहाँ जा रही हैं? किसके साथ हैं?यह सब सवालों के जवाब जानना पुरुष अपना अधिकार समझते हैं। घर की महिलाओं के द्वारा मोबाईल के इस्तेमाल को भी पुरुष अपने अंतर्गत नियंत्रित रखते हैं। आज भी भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत-सी लड़कियों और महिलाओं के पास मोबाईल फोन की सुविधा नही है। अगर उन्हें किसी से संपर्क करना है तो उन्हें अपने पति, भाई या पिता के फोन का इस्तेमाल करना पड़ता है।
महिलाओं का फ़ोन चलाना माना जाता गलत
जिस प्रकार हमारा समाज महिलाओं के जींस पहनने को सही नहीं मानता है ठीक उसी प्रकार ही वह महिलाओं के लिए मोबाईल फोन के इस्तेमाल को भी उचित नही समझता है। महिलाओं द्वारा मोबाईल फोन का इस्तेमाल करना समाज की 'संस्कारी लड़की' की परिभाषा में नहीं आता है। इसलिए घर के पुरुष महिलाओं को फोन चलाने की इजाज़त नही देते हैं। अगर इजाज़त है भी तो कभी भी कहीं भी उनके फोन की चेकिंग की जा सकती है।
बिना इंटरनेट के रह रहीं कई महिलाएं
आज भी बहुत से ग्रामीण इलाको में महिलाओं को इंटरनेट की सुविधा नहीं है। अगर इंटरनेट की सुविधा है भी तो वे सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं कर सकती हैं, अपनी तस्वीर तक साझा नहीं कर सकती हैं। क्योंकि यह सब करना एक 'बिगड़ी लड़की' की निशानी माना जाता है और पुरुषों द्वारा महिलाओं पर नज़र रखने पर यह दलील दी जाती है कि ये सब वह महिलाओं की ही बेहतरी के लिए कर रहे हैं और ऐसा करके वे उनका ही बचाव कर रहे हैं। लेकिन यह समझना आवश्यक है कि ये नियंत्रण महिलाओं के बचाव के लिए नहीं है अपितु पुरुषों का महिलाओं पर अपना हक जताना है। यह महिलाओं को कंट्रोल में रखने की दृष्टि है। क्योंकि महिलाओं की आजादी पुरुषों को डराती है। उनके विचार और स्वतंत्रता पितृसतात्मक समाज के लिए खतरा मानी जाती है।
यह जानना और समझना आवश्यक है कि हम यह रवैया अपनी अगली पीढ़ी को भी दे रहे हैं और ऐसा रहा तो पुरुष हमेशा महिलाओं पर अपना अधिकार जमाते रहेगें। यह आवश्यक है कि हम अपनी इस पीढ़ी को इन सभी मुद्दो पर शिक्षित करें। उन्हें बराबरी की अहमियत समझाए और बताए कि उनको समाज में महिलाओं के साथ रहना है ना कि उनपर अपना अधिकार समझ कर। जो अधिकार और स्वतंत्रता आप जी रहे हैं उसका अधिकार महिलाएं को भी हैं।