Why Women Should Raise Their Voice For Their Rights : भरी सभा में जब द्रौपदी का वस्त्रहरण हो रहा था तो वह चुप नहीं बैठी उसके प्रश्नों और एवं तर्कों ने सभा में बैठे सभी महापुरुषों की गर्दन शर्म से झुका दीI उसका प्रश्न था की "एक औरत को दांव पर लगाने का या उसे जीतने का हक किसी और को कैसे मिल जाता है?" औरतों को सदैव ही चुप करा दिया जाता है यह कहकर कि वह एक औरत है? उनका निर्णय कोई और लेता है, उनकी पसंद ना पसंद कोई और ठीक करता हैI ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या वह एक मनुष्य है या रोबोट? लेकिन आज की और आने वाली पीढ़ियों के लिए यह जानना अति आवश्यक है कि जब-जब नारी को उसके अधिकार से वंचित किया गया तब-तब वह लड़ी और उसने अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठाई क्योंकि-
महिलाओं को अपने हक के लिए आवाज क्यों उठानी चाहिए
1. वैदिक परंपरा, महिला सुरक्षा एवं सशक्तिकरण की वकालत करता है
इस दौर में महिलाओं को सर्वोच्च सम्मान दिया जाता थाI वह उनको सबसे महत्वपूर्ण गुणों एवं शक्तियों का चिन्ह मानती थी। मनुस्मृति के अनुसार "जहां महिलाओं की पूजा की जाती है, वहां देव निवास करते है।" प्रारंभिक वैदिक काल में महिलाओं को पर्याप्त शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्राप्त होती थी।
2. ताकि वह ना सिर्फ़ अपनी बल्कि दूसरों की भी आवाज़ बने
आज की शिक्षा और समाज के गलत उसूलों के कारण महिलाएं अपने हक की लड़ाई नहीं लड़ पाती है। ऐसे में जिसमें में हिम्मत है, जज़्बा है समाज का सामना करने की, यह उसकी ज़िम्मेदारी बन जाती है कि वह न सिर्फ़ अपने लिए बल्कि समाज की हर एक दूसरे महिला की आवाज़ बने ताकि उन्हें लगे कि इस लड़ाई में वह अकेले नहीं है, उन्हें यह प्रेरणा मिले कि उनका भी हक है दूसरे मनुष्य की भांति सिर उठाकर जीने का और अपने हक के फैसले करने का है।
3. लैंगिक पक्षपात को खत्म करने की बारी
चाहे यह घर हो या खेलकूद का मैदान या कार्यस्थल या कहीं और पुरुषों को सदा ही महिलाओं से ऊपर का दर्जा मिला है। यदि घर का मर्द बाहर काम करके आए तो उसे घर पर आराम फरमाने का अधिकार है परंतु यदि औरत बाहर काम करे या ना करे उसे घर पर काम आवश्य करना पड़ता है। योग्य अवसर के लिए महिलाओं को कमज़ोर या अयोग्य करार कर दिया जाता है जबकि वह उतनी ही सक्षम है जितना कि एक पुरुष। परंतु हालात बदल रहे है आज नारी दंगल के अखाड़े में लड़ भी रही है और एक पुरुष से ज़्यादा कमा भी रही है और यह बदलाव उसके अपने हक की आवाज उठाने के कारण आई है।
4. भारतीय मनोरंजन मीडिया में नारी की छवि
दूरदर्शन(टी.वी) में अक्सर एक एक औरत को कमज़ोर, लाचार एवं बेबस के रूप में चित्रित किया गया है। जहां वह सभी अत्याचारों को चुपचाप सहन कर लेती है परंतु ऐसे ही कई कार्यक्रम है जैसे कि 'आरोहण', 'रजनी' 'आर्या', 'शांति:एक औरत की कहानी' जैसे टेलीविजन सीरियल जिसके दर्शक ज़्यादातर महिलाएं ही है, वह इन कार्यक्रमों से जुड़े और उनमें नई सोच की धारा बही कि वह लाचार और बेबस नहीं बल्कि गुणवान एवं प्रबल है जो कुछ भी कर सकते है।
5. आने वाली पीढ़ी को संदेश
शिक्षा हमेशा अपने घर से शुरू होती है! आज नारी शोषण, घरेलू हिंसा एवं बलात्कार जैसे अत्याचारों की शिकार होती है क्योंकि चाहे वह मर्द हो या औरत उन्हें अन्याय का सामना करना नहीं सिखाया गया है। दहेज़ के कारण औरत ही औरत को जला देती है ऐसा क्यों? यह समस्याएं तभी खत्म होगी जब हम अपने घर में समानता, औरतों का सम्मान करना और उनकी इच्छा-अनिच्छा की कदर करना सिखाए। तभी हमारी आने वाली पीढ़ी जागरूक बनेगी, एक दूसरे का सम्मान करना सीखेंगे और तब जाकर संसार में संतुलन एवं समानता की स्थापना होगी।