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How Two Sisters Are Breaking Barriers in Classical Music with Their Flute: भारतीय शास्त्रीय संगीत में कई वाद्य यंत्र सदियों से परंपरा और साधना के प्रतीक रहे हैं, लेकिन बहुत कम महिलाएं इन वाद्य यंत्रों को मंच पर लेकर आती रही हैं खासकर बांसुरी जैसी कला। ऐसे में देबोप्रिया और सुचिस्मिता चट्टोपाध्याय, जिन्हें 'Flute Sisters' के नाम से जाना जाता है, एक दुर्लभ मिसाल बनकर उभरी हैं। न सिर्फ़ ये दोनों बहनें बांसुरी को अपनी ज़िंदगी बना चुकी हैं, बल्कि संगीत के जरिए इन्होंने बहनों के बीच के रिश्ते को भी एक नई परिभाषा दी है।
मिलिए Flute Sisters से, जिनके संगीत में बहनचारे की मिठास और कला की गहराई समाई है
संगीत जो बना बहनों के रिश्ते की नींव
"हमने साथ में गायन, कथक और फिर बांसुरी सीखी है," देबोप्रिया बताती हैं। "हमारी उम्र में बहुत ज़्यादा फर्क नहीं है, तो जो कुछ सीखा, साथ में ही सीखा।"
इनकी जुगलबंदी का असर सिर्फ़ मंच पर नहीं बल्कि ज़िंदगी के हर मोड़ पर दिखता है। सुचिस्मिता कहती हैं, "लोग हमें अक्सर कहते हैं कि हम एक-दूसरे को बिना कहे समझ लेते हैं। हम एक-दूसरे की ताकत को और बेहतर बनाते हैं और कमज़ोरियों को ढकते हैं। यही तो असली संगीत है जब दो आत्माएं मिलकर एक सुर बन जाएं।"
गुरु-शिष्य परंपरा की छाया में निखरा आत्मविश्वास
दोनों बहनों ने पद्मविभूषण पं. हरिप्रसाद चौरसिया से शास्त्रीय संगीत सीखा है और आज भी उनसे सीखना जारी है। देबोप्रिया कहती हैं, "गुरु जी सिर्फ़ संगीत नहीं सिखाते, वो जीवन जीने का तरीका सिखाते हैं।"
एक बात जो हमेशा उनके ज़हन में गूंजती है: "हर कॉन्सर्ट को ऐसे निभाओ जैसे ये तुम्हारा पहला और आखिरी हो।"
इस विचार ने उन्हें हर मंच पर पूरे समर्पण के साथ प्रस्तुत होने का जज़्बा दिया है।
परंपरा और आज के दौर के बीच सेतु बनाना आसान नहीं होता
क्लासिकल म्यूज़िक आज के यूथ तक पहुंचे, इसके लिए उसे उनके अंदाज़ में पेश करना भी ज़रूरी है ये बात दोनों बहनों को बख़ूबी समझ में आती है। "हम क्लासिकल को डाइल्यूट नहीं करते, लेकिन उसे दिलचस्प ज़रूर बनाते हैं।"
आज जब तीन घंटे की परफॉर्मेंस को लोग मुश्किल से एक घंटे में सुनना पसंद करते हैं, तब ये बहनें अपनी प्रस्तुति को कम समय में भी सारगर्भित और मन को छू लेने वाला बनाती हैं।
हर परफॉर्मेंस से पहले दिल में हल्की सी घबराहट… और यही अच्छी बात है
मंच चाहे छोटा हो या बड़ा, इनके समर्पण में कोई फर्क नहीं आता। लेकिन हाँ, परफॉर्मेंस से पहले की घबराहट आज भी बनी रहती है। सुचिस्मिता मुस्कुराते हुए बताती हैं, "गुरु जी हमेशा कहते थे कि थोड़ा डर अच्छा होता है क्योंकि आत्मविश्वास और अति आत्मविश्वास की बीच की लाइन बहुत पतली होती है।"
जब बेटियों ने बांसुरी को चुना, एक पिता का सपना साकार हुआ
शुरुआत में इन्हें समझ नहीं आया कि दो लड़कियों का बांसुरी बजाना कितना अनोखा है। देबोप्रिया बताती हैं, "ये हमारे पापा का सपना था। उन्होंने ही देखा कि उनकी बेटियाँ बांसुरी बजाएं, और वो भी साथ में।"आज जब लड़कियाँ उन्हें अपनी प्रेरणा मानती हैं, तो ये बहुत गौरव और विनम्रता का क्षण होता है।
"हम बस यही कहना चाहेंगे कि मेहनत का कोई शॉर्टकट नहीं होता। कला हो या जीवन, डेडिकेशन ही सब कुछ है।"
Saz-e-Bahar 2025: जब महिला कलाकारों ने इतिहास रचा
हाल ही में फ्लूट सिस्टर्स ने NCPA (National Centre for the Perform,ing Arts) में हुए 12वें संस्करण के साज़-ए-बहार: फेस्टिवल ऑफ इंडियन इंस्ट्रूमेंटल म्यूज़िक में परफॉर्म किया। यह फेस्टिवल खास इसलिए भी रहा क्योंकि इसकी थीम थी "Celebrating Women in Indian Classical Music"।
4 और 5 अप्रैल को हुए इस इवेंट में दो दिन तक महिला कलाकारों की धुनों ने गोदरेज डांस थिएटर को संगीतमय बना दिया। बांसुरी से लेकर रुद्र वीणा और पर्कशन तक। हर वाद्य यंत्र पर महिलाओं ने अपना कमाल दिखाया।
"ऐसे इवेंट्स सिर्फ़ परफॉर्मेंस नहीं, एक स्टेटमेंट होते हैं," देबोप्रिया कहती हैं। "यह दिखाता है कि परंपरा और नारी शक्ति साथ-साथ चल सकते हैं।"