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National Girl Child Day Special: हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। यह दिन सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि बेटियों की अहमियत को समझने और उन्हें समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने का प्रतीक है। एक लड़की होने के नाते, इस दिन की मेरे लिए खास अहमियत है। यह मुझे याद दिलाता है कि समाज में हम बेटियों के लिए जितनी भी बातें करते हैं, असल में हमें उससे कहीं ज्यादा करने की जरूरत है।
इस राष्ट्रीय बालिका दिवस पर, मैंने कई महिलाओं से बात की – कुछ जो बेटियों की मां हैं और कुछ जो भविष्य में बेटी की मां बनने का सपना देखती हैं। इन महिलाओं के विचारों को सुनकर मुझे महसूस हुआ कि समाज धीरे-धीरे ही सही, लेकिन बेटियों के प्रति अपनी सोच बदल रहा है।
जानिए बेटियों के सशक्तिकरण और उनके सपनों को लेकर महिलाओं के विचार
"मैं चाहती हूं कि मेरी बेटी हर मुश्किल का सामना कर सके"
इस राष्ट्रीय बालिका दिवस पर मैंने सबसे पहले अपनी मां, सीमा गर्ग, से बात की। जब मैंने उनसे पूछा कि वह मुझे क्या सीख देना चाहेंगी, तो उन्होंने बेहद भावुक होकर कहा, "मैंने हमेशा अपने परिवार और दूसरों को अपनी प्राथमिकता बनाया। मैंने खुद को हमेशा सबसे आखिरी में रखा। लेकिन मैं चाहती हूं कि तुम ऐसा मत करो। अपनी जिंदगी में खुद को पहली प्राथमिकता बनाओ।"
उन्होंने आगे कहा, "जिंदगी में हर अच्छे और बुरे दौर में, जो इंसान हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा, वह तुम खुद हो। जब हर कोई साथ छोड़ दे, तब भी तुम अपने लिए खड़ी रहोगी। तो फिर क्यों किसी और को खुद से ज्यादा महत्व देना? दूसरों की फिक्र करना अच्छी बात है, लेकिन खुद के सपनों, अपनी खुशियों और अपनी जिंदगी को प्राथमिकता देना उससे भी ज्यादा जरूरी है।"
उनकी इन बातों ने मुझे गहराई से सोचने पर मजबूर कर दिया। अक्सर हम दूसरों की जरूरतों को पूरा करने में अपनी जरूरतों को नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन मम्मी का यह संदेश मुझे याद दिलाता है कि अगर मैं खुद को प्राथमिकता दूंगी, तभी मैं दूसरों के लिए भी कुछ कर पाऊंगी। यह सिर्फ एक सलाह नहीं, बल्कि एक जिंदगी जीने का तरीका है, जिसे हर बेटी को अपनाना चाहिए।
"बेटियों के सपनों को उड़ने का मौका दीजिए"
सुमन चौबे दो बेटियों की मां हैं, ने कहा, "मैंने अपनी बेटियों को हमेशा सिखाया है कि सपने देखने और उन्हें पूरा करने का हक हर किसी का है, बेटियों का भी। बेटियां तभी मजबूत बनेंगी जब वे आत्मनिर्भर होंगी। मैं उन्हें हमेशा कहती हूं कि कभी भी अपने बुनियादी ज़रूरतों के लिए अपने पति या किसी और पर निर्भर मत रहो। आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना सबसे महत्वपूर्ण है। अगर आप खुद पर विश्वास करती हैं, तो आप कुछ भी हासिल कर सकती हैं।"
सुमन ने अपनी सोच को आगे बढ़ाते हुए कहा,
"अगर पहली बार में सफलता नहीं मिलती है, तो फिर से कोशिश करो। जो दूसरों ने हासिल किया है, आप भी कर सकती हो, बस धैर्य और दृढ़ नायकता के साथ। याद रखिए, कभी हार मत मानिए। सफलता उन्हीं को मिलती है जो लगातार मेहनत करते हैं और कभी नहीं रुकते।"
सुमन ने यह भी साझा किया कि जब लोगों को पता चलता है कि उनकी दो बेटियां हैं, तो उन्हें अक्सर ताने सुनने को मिलते हैं। "कई बार लोग कहते हैं, 'बेटा नहीं है तो कौन संभालेगा?' लेकिन मैंने हमेशा जवाब दिया कि मेरी बेटियां ही मेरा सबसे बड़ा सहारा हैं। मैं उन पर गर्व करती हूं और मुझे यकीन है कि वे हर परिस्थिति में खुद को साबित करेंगी।"
सुमन की यह बात हमें याद दिलाती है कि बेटियां सिर्फ परिवार का गौरव नहीं हैं, बल्कि समाज की मजबूत नींव भी हैं। उनका आत्मनिर्भर और सशक्त होना, समाज में बदलाव की शुरुआत है।
'मैं अपनी बेटी के लिए एक मिसाल बनना चाहती हूं'
अलका दुबे भविष्य में बेटी की मां बनने का सपना देखती हैं, ने अपनी सोच खुलकर साझा की। उन्होंने कहा, "अगर मेरी बेटी होगी, तो मैं चाहूंगी कि वह हर उस सपने को पूरा करे, जो उसके दिल में है। मैं उसकी जिंदगी में इस तरह का माहौल बनाना चाहूंगी, जहां वह मुझसे हर बात बिना झिझक के साझा कर सके। माता-पिता को खुले विचारों वाला होना चाहिए, ताकि बेटियां उनसे हर छोटी-बड़ी बात कह सकें। अगर मैं कभी बेटी की मां बनी, तो मैं उसके लिए एक दोस्त की तरह रहूंगी, ताकि उसे किसी भी बात को छुपाने की जरूरत न पड़े।"
उन्होंने आगे कहा "मैं अपनी बेटी के सामने एक ऐसी मां की छवि रखना चाहूंगी जो मजबूत हो, आत्मनिर्भर हो, और हर चुनौती का सामना डटकर करे। जब वह मेरी ताकत को देखेगी, तो वह भी अंदर से मजबूत बनेगी।"
उन्होंने समाज में लड़के और लड़की के बीच समानता की भी बात की। "हमारी परवरिश ऐसी होनी चाहिए कि बेटा और बेटी दोनों को समान अवसर और अधिकार मिलें। सिर्फ बेटों को मजबूत बनाना काफी नहीं, बेटियों को भी यह अहसास दिलाना जरूरी है कि वे किसी भी मायने में कमजोर नहीं हैं।"
अलका की ये बातें न सिर्फ उनकी सोच को दर्शाती हैं, बल्कि समाज को बेटियों के प्रति अपनी जिम्मेदारी का एहसास भी कराती हैं। उनकी उम्मीदें और विचार आने वाली पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा हैं।
बेटियों के लिए मेरा संदेश
इन महिलाओं की बातों से यह साफ है कि आज भी हमारे समाज में बेटियों को लेकर कई तरह के डर और चिंताएं हैं। लेकिन यह भी सच है कि इन मांओं की सोच और उनके प्रयास बेटियों को एक बेहतर भविष्य देने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
एक लड़की होने के नाते, मेरा मानना है कि बेटियों को खुद पर विश्वास करना और अपनी राह खुद चुनना सिखाना सबसे बड़ी ताकत है। इस राष्ट्रीय बालिका दिवस, मेरा संदेश है –
"बेटियों को उनकी उड़ान के लिए पंख दीजिए, उन्हें अपने सपनों को पूरा करने का मौका दीजिए। समाज को बदलने की शुरुआत घर से होती है।"
आगे का सफर
राष्ट्रीय बालिका दिवस हमें यह याद दिलाता है कि बेटियां हमारे समाज का भविष्य हैं। उन्हें बराबरी का मौका देना, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना और उनके सपनों को पूरा करने में उनका साथ देना हमारा कर्तव्य है।
आइए, इस दिन पर संकल्प लें कि हम अपनी बेटियों को न केवल सशक्त बनाएंगे, बल्कि उन्हें ऐसा माहौल देंगे, जहां वे बेखौफ होकर अपनी जिंदगी जी सकें।