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महिलाओं की असुरक्षा कोई एक घटना या कोई एक स्थान तक सीमित नहीं हैं, यह एक संरचनात्मक समस्या हैं, जो घर की चारदीवारी से लेकर संसद तक फैली हुई हैं। आज जब महिलाएं घर पर होती हैं तो भी अपने ही कहे जाने वाले लोग उनके रिश्तेदारों से असुरक्षित महसूस ही नहीं करती बल्कि हिंसा का शिकार होती हैं, और जब वह घर से बाहर निकलती हैं समाज में रहने वाले अनजान लोगों से हिंसा का शिकार होती हैं। रावण त्रेतायुग में छल से माँ सीता का हर के बाहर चौखट से हरण करके ले गया पर आज का रावण घर और बाहर दोनों जगह मौजूद हैं- बस चेहरा और रूप हम में से एक। आज का रावण इंसान के भीतर हैं जो नारी को अपनी क्रूर वासना और हिंसा से उसे चोट ही नहीं पहुंचाता, पर उसे भीतर से उसकी जीने की इच्छा और खुद को उभारने की क्षमता को भी तोड़ देता हैं।
घर से लेकर समाज तक महिलाएं इतनी असुरक्षित क्यों? क्या आज भी समाज के रावण जिंदा है ?
1. पित्रसत्ता की जड़ें (patriarchy)
घर में लड़की को 'कमजोर' मानना, स्कूल में लड़कियों को 'कम' महत्व देना, और ऑफिस में उन्हें 'कमजोर नेतृत्व' समझना- यह सब एक ही रावण के अलग-अलग सिर हैं। जब महिलाओं को कमजोर समझकर उन्हें उनकी पारंपरिक भूमिका से आगे नहीं बढ़ने दिया जाता वे खुद को कमजोर और हीनता महसूस करती हैं। और यह सब राक्षस के ही गुण हैं जो उन्हें कमजोर और हीन महसूस कराता हैं।
2. कानूनी जटिलता और सामाजिक चुप्पी
कानून तो हैं पर जब भी घटना होती हैं तो न उन्हें सही लागू किया जाता है, न महिलाओं को न्याय मिलता हैं। यह उन रावण को ही बल देने का काम कर रहा हैं। जब घटना होती हैं तो महिलाओं को ही इसका जिम्मेदार ठहराया जाता हैं, और जब वे आवाज उठती हैं तो उन्हें बदनामी के डर से चुप रहने और बात को दवाने के लिए मजबूर किया जाता हैं।
3. इमोशनल लेबर और आत्म- संदेह
महिलाएं सबका तो ख्याल रखती हैं पर जब अपनी बारी आती हैं- तो समाज के डर और तानों की बजह से चुप और सहमी रह जातीं हैं। महिलाओं को चुप रहना और अपनी बात न कहना ही सिखाया जाता हैं, जिस कारण वे आत्म- संदेह और खुद को ग्लानि भाव से देखती हैं।
4. डिजिटल स्पेस में हिंसा
आज के समय में online-bulling, ट्रोलिंग और साइबर स्टॉकिंग ऐसे रावण हैं जो महिलाओं की निजता, वैचारिक आजादी और सामान्य अधिकारों को ही खतरे में डाल रहे हैं। ये ऐसे रावण हैं, जो बिना लंका के हर जगह और हर समय मौजूद हैं।
5. धार्मिक और सांस्कृतिक रूढ़ियाँ
महिलाओं को देवी का दर्जा तो दे दिया जाता हैं- लेकिन उनके खिलाफ ही हिंसा और क्रूर नजरिया आज भी समाज में मौजूद हैं। पूजनीयता के मौखटे में उनके लिए हिंसा मौजूद हैं जो उन्हें सहमा, डरा और हीन भाव पैदा कर रहा हैं, और वे समाज में खुद को unsafe महसूस करती हैं।