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भारतीय महिलाएं अपने माता-पिता से झूठ क्यों बोलती हैं?

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Swati Bundela
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माता-पिता से झूठ
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1) माता-पिता का बच्चों पर कंट्रोल


बच्चे चाहे कितने भी बड़े ही क्यों ना हो जाए, उनके माता-पिता का उनके जीवन पर थोड़ा बहुत भी
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कंट्रोल हमेशा रहता है। वे क्या करते हैं? कहां जाते हैं? क्या पहनते हैं? आदि चीजें अभी भी उनके माता-पिता उनके लिए डिसाइड करते हैं क्योंकि उन्हें अपने बच्चों की चॉइसेज पर भरोसा नहीं है।
हम भी कई हद तक उन्हें अपनी जिंदगी कंट्रोल करने देते हैं, शायद डर और गिल्ट के कारण। कई लड़कियों को तो देर रात काम करने और पैसे कमाने के लिए भी मना किया जाता है।
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2) सोसाइटी का पेरेंट्स पर दबाव माता-पिता से झूठ


अक्सर माता-पिता को सोसाइटी में उनके सम्मान और ओहदे की फिक्र होती है। वे अपने बच्चों को ऐसा कुछ भी नहीं करने देना चाहते जिससे समाज में उनका नाम खराब हो। इसी कारण वे अपने रिश्तेदारों के बहकावे में आकर अपने बच्चों को उनकी आजादी नहीं देते, उनकी खुशी से कोई भी कार्य करने की अनुमति नहीं देते हैं।
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3) पेरेंट्स पर अपनी बच्ची को गुड गर्ल बनाए रखने का प्रेशर


पेरेंट्स चाहते हैं कि उनकी लड़की हमेशा प्योर / वर्जिन बनी रहे, ताकि कोई भी उस पर उंगली न उठा सके और कोई भी उसकी जीवनशैली से जुड़े निर्णय के कारण उसे 'बैड गर्ल' का टैग न दे सके। अगर हम इन उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते, तो हमें डांट पड़ती है, मार पड़ती है और कुछ केसेस में तो लड़कियों को जान से मार दिया जाता है।
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इसलिए शायद उन्हें झूठ बोलना ही सबसे ज्यादा सेफेस्ट और आसान तरीका लगता है। अपने बच्चों की लाइफ इतनी ज्यादा कंट्रोल करने के कुछ दुष्परिणाम भी हो सकते हैं जैसे:
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1) ज़रूरत के समय मदद नहीं मांगना


चूंकि लड़कियां अपने माता-पिता से सब कुछ छुपाती आई हैं, इसलिए वे अपने सेक्सुअल अनुभवों को भी उन के साथ शेयर नहीं करती, चाहे फिर जब बात प्रेगनेंसी, STDs, अनसेफ सेक्स, या सेक्सुअल असॉल्ट की ही क्यों न हो, वें अपने पैरंट्स को नहीं बताती क्योंकि ऐसा करने के परिणामों से वे डरती हैं। 2017 में, भारत में एवरेज 11.8 मिलियन टीनएज प्रेगनेंसी हुईं।

2) अपने बच्चों को ठीक से न जान पाना


भारतीय घरों में एक ही छत के नीचे माता-पिता और उनके बच्चे अनजानों की तरह रहते हैं। वे सही में क्या चाहते हैं?, क्या महसूस करते हैं?, खुलकर कभी अपने पेरेंट्स को नहीं बताते। माता-पिता अपनी लड़कियों को और अच्छा, या और गुड गर्ल कैसे बनना है, बस यही सब सिखाने पर ध्यान देते हैं। इसलिए शायद बच्चे अपने ट्रू सेल्फ को कभी बताते ही नहीं।

3) बच्चों के विकास में रुकावट


माता-पिता अपनी लड़कियों को शर्तों और नियमों के बंधन में इस तरह जकड़ देते हैं कि वे बाहरी दुनिया को करीब से देख ही नहीं पाती, उसका अनुभव ही नहीं कर पाती। माना कि वे अपनी बच्ची को बाहरी दुनिया से बचाना चाहते हैं, परंतु कब तक? एक दिन तो उसे आजाद करना ही होगा। भले ही वह आजादी उसका ससुराल ही क्यों न हो। परंतु उससे पहले उसे स्वयं के लिए आवाज उठाना आना चाहिए, किसी भी तरह के अत्याचार या भेदभाव से लड़ना आना चाहिए।

सभी माता-पिताओं को अपने बच्चों के टैलेंट, उनकी उपलब्धियों, कैसे वे उन्हें फाइनेंशली सपोर्ट करेंगी, इस पर गर्व होना चाहिए। समाज की पिछड़ी सोच से लड़ने के लिए पेरेंट्स का सपोर्ट चाहिए।
#फेमिनिज्म सोसाइटी रिलेशनशिप
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