समाज को आइटम सॉन्ग देखने बंद कर देने चाहियें - वानी त्रिपाठी

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Swati Bundela
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फिल्मों में महिलाओं की ओब्जेक्टिफिकेशन


उन्होंने बताया कि किस तरह ८० और ९० के दशक में ऐसी बहुत सी फिल्में थी जिनके गानों में महिलाओं को ओब्जेक्टिफाई किया जाता था. "महिलाओं की दरवाज़ा, कुण्डी, खिड़की जैसी चीज़ों से तुलना नहीं करनी चाहिए. आज भी आइटम सांग्स इसलिए हैं क्यूंकि समाज इनके खिलाफ आवाज़ नहीं उठता. जब हम आइटम सांग देखने बंद कर देंगे तो आइटम सांग बनने भी बंद हो जायँगे."

इतना ही नहीं, पहले लोग केवल फिल्मों में अभिनेता और उनके पात्रों की बात करते थे. अभिनेत्रियां केवल नाच गाने और सुन्दर दिखने के लिए होती थी.

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सिनेमा में महिलाओं का सशक्तिकरण


उन्होंने बताया कि भारत उन देशों में से है जहाँ अभिनेत्रियां बहुत सशक्त है. उन्होंने हॉलीवुड का उदहारण देते हुए कहा कि वहां भी महिला-केंद्रित फिल्में बहुत देरी से बनने लगी.

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महिला केंद्रित फिल्में और बॉक्स ऑफिस सफलता


वानी ने इस विषय में भी बात करी कि लोग अक्सर सोचते हैं कि महिला-केंद्रित फिल्में बॉक्स ऑफिस पर ज़्यादा पैसे नहीं कमाती. परन्तु यह एक मिथक है क्योंकि पिंक, क्वीन, दम लगाके हईशा जैसी फिल्मों ने बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया है. यह फिल्में आम लड़कियों के जीवन के बारें में है जिनकी दुनिया और रोज़ के मुद्दे बहुत ही सच्चे हैं और आज की महिलाएं उन्हें आसानी से समझ सकती हैं. और इन सभी फिल्मों की अभिनेत्रियों और उनकी कहानियों की लोगों ने सराहना की है.

पिंक फिल्म का उदहारण देते हुए उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला की ऐसे बहुत से पुरुष निर्देशक हैं जो महिलाओं को आगे बढ़ना देखना चाहते हैं और इसलिए वह ऐसी फिल्में बनाने की कोशिश करते हैं जिसमें महिला की अहं भूमिका निभाए.

शीदपीपल.टीवी इस इवेंट के लिए मीडिया पार्टनर थे.
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