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Law and Her Legal Rights Every Daughter must know: भारत में महिलाओं और बेटियों को सशक्त बनाने के लिए कई कानूनी अधिकार दिए गए हैं, जो उनके जीवन को सुरक्षित और स्वतंत्र बनाते हैं। लेकिन समाज में अब भी कई बेटियाँ इन कानूनी अधिकारों से अनजान होती हैं, जिसके कारण उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यदि हर बेटी को अपने अधिकारों की जानकारी हो, तो वह अपने साथ होने वाले अन्याय, भेदभाव और शोषण से खुद को बचा सकती है। इस लेख में हम बेटियों के पांच महत्वपूर्ण कानूनी अधिकारों के बारे में विस्तार से जानेंगे, जिनकी जानकारी हर लड़की और महिला को होनी चाहिए।
बेटियों के लिए कानूनी अधिकार, जिनकी जानकारी बेहद जरूरी है
1. शादी की न्यूनतम आयु का अधिकार
भारतीय कानून के अनुसार, किसी भी लड़की की शादी की न्यूनतम आयु अठारह वर्ष तय की गई है। बाल विवाह निषेध अधिनियम, दो हजार छह के तहत अठारह साल से कम उम्र की लड़की की शादी अवैध मानी जाती है। इसके बावजूद भारत के कई हिस्सों में अब भी बाल विवाह होते हैं, जिससे लड़कियों का जीवन प्रभावित होता है। यदि किसी लड़की की जबरदस्ती शादी कराई जा रही है, तो वह इस कानून के तहत शिकायत दर्ज कर सकती है और अपनी शिक्षा तथा जीवन को सुरक्षित कर सकती है।
2. यौन उत्पीड़न और शोषण से सुरक्षा का अधिकार
भारत में कार्यस्थल हो या सार्वजनिक स्थान, हर लड़की को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए कानून बनाए गए हैं। कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम, दो हजार तेरह के तहत, किसी भी लड़की को उसके ऑफिस या कार्यस्थल पर कोई भी मानसिक या शारीरिक रूप से परेशान नहीं कर सकता। यदि कोई पुरुष या सहकर्मी महिला को अनुचित तरीके से छूता है, गलत इशारे करता है या अश्लील टिप्पणी करता है, तो वह इस कानून के तहत शिकायत कर सकती है। इसके अलावा, भारतीय दंड संहिता की धारा तीन सो छोहोत्तर और पचासों तीन महिलाओं की गरिमा और सम्मान की रक्षा करती हैं।
3. गर्भधारण और गर्भपात का अधिकार
महिलाओं को अपने शरीर पर पूरा अधिकार होता है, और यह अधिकार उन्हें चिकित्सा क्षेत्र में भी प्राप्त है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट,उन्नीस सौ इकहत्तर के अनुसार, यदि कोई महिला या लड़की गर्भधारण नहीं चाहती है, तो वह कुछ विशेष परिस्थितियों में डॉक्टर की सलाह से गर्भपात करवा सकती है। इसके अलावा, कोई भी व्यक्ति लड़की को जबरदस्ती गर्भ धारण करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। यह कानून महिलाओं को उनके स्वास्थ्य और भविष्य के बारे में निर्णय लेने का पूरा अधिकार देता है।
4. पैतृक संपत्ति में समान अधिकार
पहले के समय में केवल बेटों को ही माता-पिता की संपत्ति का उत्तराधिकारी माना जाता था, लेकिन अब कानून बदल चुका है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम दो हजार पांच के तहत, बेटियों को भी अपने पिता की संपत्ति में समान अधिकार दिया गया है। अब किसी भी लड़की को केवल इसलिए संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता कि वह एक बेटी है। यह कानून महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने और समाज में बराबरी का हक दिलाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
5. घरेलू हिंसा से सुरक्षा का अधिकार
भारत में कई महिलाएँ और लड़कियाँ घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं, लेकिन वे इसे अपनी नियति मानकर सहन करती हैं। घरेलू हिंसा अधिनियम, दो हजार पांच के तहत, कोई भी महिला यदि शारीरिक, मानसिक, आर्थिक या भावनात्मक रूप से प्रताड़ित होती है, तो वह इसके खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकती है। यह कानून महिलाओं को उनके परिवार में सुरक्षित माहौल देने के लिए बनाया गया है। यदि कोई पति, परिवार का सदस्य या रिश्तेदार किसी महिला के साथ दुर्व्यवहार करता है, तो वह तुरंत पुलिस या महिला हेल्पलाइन नंबर पर संपर्क कर सकती है।