Rights after Marriage: शादीशुदा महिलाओं के क्या अधिकार है?

शादी के बाद अक्सर महिलाओं को जिम्मेदारी और नियमों में तो बांध दिया जाता हैं पर उन्हें कहीं अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता हैं। महिलाएं शादी के बाद एक गरिमा पूर्ण जिंदगी के लिए कानूनी अधिकार प्राप्त हैं। आइए, शादीशुदा महिलाओं के अधिकारों को जानते हैं:

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Nainsee Bansal
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हर शादीशुदा महिला को जानने चाहिए ये 6 कानूनी अधिकार

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शादी के बाद अक्सर महिलाओं को जिम्मेदारी और नियमों में तो बांध दिया जाता हैं पर उन्हें कहीं अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता हैं। इसको ध्यान में रखते हुए भारतीय कानून और न्याय संहिता उन्हें कहीं अधिकार देती हैं- ताकि वे सम्मान, सुरक्षा और स्वतंत्रता के साथ जीवन जी सकें। महिलाएं शादी के बाद ऐसे कहीं अधिकारों की हकदार हो जाती हैं, जो उन्हें एक गरिमा पूर्ण जिंदगी का हक दें। इसलिए महिलाओं का उन्हें जानना और समझना आवश्यक हैं, ताकि वे सशक्त रहें। आइए, शादीशुदा महिलाओं के अधिकारों को जानते हैं:

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Rights after Marriage: शादीशुदा महिलाओं के क्या अधिकार है?

1. वैवाहिक घर में रहने का अधिकार(Right to Matrimonial Home)

शादी के बाद महिलाओं को किसी कारणवश या अकारण अपने ससुराल या पति के घर से निकाल दिया जाता हैं। ऐसे में कानूनी रूप से महिला को अपने पति के घर या ससुराल में रहने का पूरा अधिकार हैं। उन्हें जबरन घर से नहीं निकाला जा सकता- यह घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत संरक्षित हैं। 

2. गुजारा भत्ता का अधिकार (Right to Maintenance)

समाज में महिलाओ को घर में सीमित रहने के लिए कहा जाता हैं जिसके कारण वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं बनती हैं। अगर महिला आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं हैं, तो वह सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पति से भरण- पोषण की मांग कर सकती हैं। 

3. स्त्रीधन का अधिकार(Right to Streedhan)

अक्सर घरों मे देखा जाता हैं कि शादी में मिलने वाले धन पर ससुराल वाले अपना अधिकार दिखाते हैं पर कानून के अनुसार शादी मे मिले गिफ्ट, गहने और नकद आदि महिला की व्यक्तिगत संपत्ति माने जाते हैं। दहेज निषेध अधिनियम, 1961 और हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम,1956 के तहत महिला को इस पर पूरा अधिकार हैं। 

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4.  घरेलू हिंसा से सुरक्षा (Protection Against Domestic Violence)

शादी के बाद महिलाएं ससुराल या पति के घर में शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और यौन हिंसा का शिकार होती हैं, तो इससे बचाने के लिए Domestic Violence Act 2005, में सुरक्षा आदेश, निवास आदेश और financial relaxation की व्यवस्था हैं। 

5. बच्चों की कस्टडी का अधिकार(Right to Custody of Children)

तलाक या विवाद की स्थिति में महिलाओं को बच्चों की कस्टडी लेने का अधिकार नहीं दिया जाता हैं और उन्हें घर से बेधकल कर दिया जाता है, ऐसे में भारतीय कानून उन्हे बच्चों की कस्टडी का अधिकार देता हैं- खासकर यदि बच्चा 5 साल से कम का हो। 

6. तलाक का अधिकार(Right to Divorce)

महिला को अक्सर सामाजिक डर और बदनामी के कारण शोषित रिश्ते को निभाना पड़ता हैं, पर महिलाएं तलाक की मांग कानून के सामने रख सकती हैं। हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 के तहत महिला पति की सहमति के बिना भी तलाक ले सकती हैं- यदि पति अत्याचारी, धोखेबाज या उपेक्षापूर्ण हों। 

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7. गर्भपात का अधिकार(Right to Abortion)

भारतीय समाज में यदि महिला गर्भधारण कर लें, तो बिना पति या ससुराल की अनुमति के abortion नहीं करवा सकती थी, लेकिन अब Medical Termination of Pregnancy Act, 1971 महिला को गर्भपात का अधिकार हैं। अब उन्हें पति या ससुराल वालों की अनुमति की आवश्यकता नहीं हैं। 

8. संपत्ति का अधिकार(Right to property)

महिलाओं को अक्सर शादी के बाद मांयके की संपत्ति में हिस्सा नहीं दिया जाता और ससुराल की संपत्ति पर भी ससुराल वाले हक नहीं देते है, ऐसे में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम तहत बेटियों को अपने पिता की संपत्ति पर बराबर अधिकार हैं। साथ ही महिलाएं पति की संपत्ति से भी अपना अधिकार मांग सकती हैं, कानून उन्हें दोनों ही स्थिति में संपत्ति का अधिकार देता हैं। 

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