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इस मिशन में चंद्रयान-2 को पृथ्वी की कक्षा में पहुंचाने के लिए इसरो ने अपने सबसे शक्तिशाली रॉकेट जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लांच व्हीकल- मार्क 3 (जीएसएलवी-एमके 3) को इस्तेमाल किया है। इस रॉकेट को स्थानीय मीडिया ने 'बाहुबली' नाम दिया है। 640 टन के वजन वाले इस रॉकेट को बनाने में 375 करोड़ रुपये का खर्च हुआ है।
चाँद पर पानी की खोज का राज़ खोला चंद्रयान -1 ने
यह रॉकेट 3.8 टन वजन वाले चंद्रयान-2 को लेकर उड़ान भरेगा। चंद्रयान-2 मिशन में कुल 603 करोड़ रुपये का खर्चा हुआ है। अलग-अलग चरणों में सफर पूरा करते हुए यह यान सात सितंबर को चांद के साउथ पोल की निर्धारित की गई जगह पर उतरेगा। अब तक विश्व के केवल तीन देशों अमेरिका, रूस व चीन ने चांद पर अपना यान उतारा है। 2008 में भारत ने चंद्रयान-१ को लांच किया था। यह एक ऑर्बिटर अभियान था। ऑर्बिटर ने 10 महीने तक चांद का चक्कर लगाया था। चांद पर पानी के होने का पता लगाने का श्रेय भारत के इसी अभियान को जाता है।
जाने चंद्रयान-2 के तीन हिस्सों को
चंद्रयान-2 के तीन प्रमुख हिस्से हैं-ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर। अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के सम्मान में लैंडर का नाम विक्रम रखा गया है। वहीं रोवर का नाम प्रज्ञान है, जो की एक संस्कृत शब्द है और इसका अर्थ है ज्ञान। चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद लैंडर-रोवर अपने ऑर्बिटर से अलग हो जाएंगे। लैंडर विक्रम सात सितंबर को चांद के साउथ पोल के पास उतरेगा। लैंडर के उतरने के बाद रोवर उससे अलग होकर अन्य एक्सपेरिमेंट को अंजाम देगा। लैंडर और रोवर के काम करने की कुल अवधि 14 दिन की है। चांद के हिसाब से यह एक दिन की अवधि होगी। वहीं ऑर्बिटर पूरे साल चांद के चक्कर काटते हुए अलग -अलग एक्सपेरिमेंट को अंजाम देगा।
दुनियाभर की नज़र चंद्रयान -2 पर
चंद्रयान-2 की सफलता पर भारत की जनता की ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हैं। चंद्रयान-1 से दुनिया को पता चला था कि चांद पर पानी है। अब उसी सफलता को आगे बढ़ाते हुए चंद्रयान-2 चांद पर पानी की मौजूदगी से जुड़े कई और ठोस नतीजे सामने लाएगा। इस मिशन से चांद की ज़मीन का नक्शा तैयार करने में भी मदद मिलेगी, जो भविष्य में आगे के मिशन के लिए भी मदद करेगा। चांद की मिट्टी में कौन-कौन से मिनरल्स हैं और कितनी मात्रा में हैं, चंद्रयान-2 इससे जुड़े कई राज खोलेगा। उम्मीद यह भी है कि चांद के जिस हिस्से की पड़ताल का जिम्मा चंद्रयान-2 को मिला है, वह हमे सोलर सिस्टम को समझने और पृथ्वी की डेवलपमेंट को जानने में भी मदद करेगा।