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मेरी कैंसर जर्नी- मेरा खुद से मिलन, कहती हैं पारुल बांका

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Swati Bundela
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पारुल बांका को 2012 में ब्रैस्ट कैंसर डायग्नोज़ हुआ था, जिस हफ्ते वह 34 साल की हो रही थीं। ह्यूमन रिसोर्स और लर्निंग एंड डेवलपमेंट में सफल करियर के बाद, उनको अपना जीवन अचानक ही अनिश्चित और डरावना लग रहा था। डायग्नोसिस के पाँच महीने बाद डॉक्टरों ने कह दिया था कि अब सब ठीक है। हालांकि, इसके दुःख भरे अनुभव कुछ महीनों तक नहीं बल्कि कुछ वर्षों तक चलते रहे। और इसी ने उन्हें अपनी कैंसर जर्नी की कहानी लिखने के लिए प्रोत्साहित किया - 'माय कैंसर जर्नी- अ रेनदेज़्वोउस विद माइसेल्फ'।
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फिलहाल लंदन में रहने वाली पारुल अपनी कहानी बताने से ज़्यादा ये पुस्तक इसलिए लिखना चाहती थीं क्यूंकि वे समाज में कैंसर के बारे में अज्ञानता के कारण पैदा हुए कलंक के दर्दनाक रूप से परिचित थीं.

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वह कैंसर के इतनी तेज़ी से फैलने और उसके अर्ली डायग्नोसिस से उससे बचने के अवसरों के बारे में जागरूकता फैलाना चाहती थीं।



वह कहती हैं, "कैंसर एक ऐसी स्थिति है जो डर, निराशा, दर्द और मृत्यु का प्रतीक है। दुर्भाग्य से, कैंसर की घटनाएं बहुत ज़्यादा बढ़ रही हैं। कैंसर रिसर्च यू.के. ने फोरकास्ट किया है कि यू.के. में दो लोगों में से एक व्यक्ति को जीवन में कभी न कभी कैंसर होगा। यह डेटा परेशान कर देने वाला है और इसका अर्ली डायग्नोसिस इससे जीत पाने में हमें कामयाबी दिला सकता है। कैंसर और उसके इफेक्ट्स के बारे में जागरूकता लोगों को किसी भी प्रकार के लक्षण नज़र आने पर जल्दी से जल्दी डॉक्टर को दिखाने के लिए प्रेरित करेगी।"

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पारुल जो कि एक पर्सनल ट्रांसफॉर्मेशन और बिज़नेस कोच के रूप में काम करती हैं कहती हैं कि कैंसर के बाद खुद का पुनर्निर्माण उनके लिए फिर से चलना सीखने के बराबर था। उनका शरीर बदल गया है मगर वे अभी तक उसके शॉर्ट-टर्म और लॉन्ग-टर्म इफेक्ट्स से गुज़र रही हैं।



फिर से सामान्य ढंग से ज़िन्दगी में एडजस्ट होना उनके लिए एक 'मैसिव रीडिस्कवरी प्रोजेक्ट' के समान था मगर वो ज़िन्दगी को गले लगाने के लिए हमेशा ही उत्साहित रही हैं और जो काम वो करना चाहती हैं उसे करने के लिए अत्यंत उत्साहित रही हैं।

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"ज़िन्दगी अचानक से इतनी छोटी और अनिश्चित नज़र आने लगी थी। और शायद इसीलिए कोच की ये ज़िम्मेदारी कुछ सार्थक समझ आ रही थी... अब मैं लोगों को कोचिंग के ज़रिये खुद का एक बेहतर रूप बनने के लिए मदद करती हूँ। मैं लंदन में मेजर कैंसर चैरिटी के लिए एक स्पीकर के रूप में वॉलंटीरिंग भी करती हूँ और उन्हें कैंसर के रोगियों और उनकी देखभाल करने वालों के लिए बड़ी मात्रा में धन जुटाने में सहायता करती हूँ।"



कैंसर पारुल के लिए एक बड़े रहस्य के खुलने जैसा रहा है, प्यार करने वाले परिवार और दोस्तों से घिरी हुई पारुल को ये एहसास हुआ कि जीवन में चुनाव उन्ही को करना था: धारणा के बदले दया, निराशा के बदले आशा, एहसानमंद होना और कैंसर की अनिश्चित परिस्थितियों के बावजूद ज़िन्दगी को पूरी तरह से जीना।
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कैंसर से जूझ रही महिलाओं के लिए उनकी सलाह यही है कि वे हिम्मत न हारें चाहे जो हो जाए.



"कैंसर एक लंबी जर्नी है और इसमें बहुत धैर्य से काम लेने की आवश्यकता है। अक्सर ऐसे दिन होंगे जब आपको लगेगा कि इस संघर्ष और दर्द का कोई अंत नहीं है; ऐसे दिनों में, धैर्य रखना महत्वपूर्ण है। जब आप इससे जीत कर आएंगे तो ये मेहनत, संघर्ष और हिम्मत आपको फलदायक लगेगा।"
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महिला सशक्तिकरण Parul Banka कैंसर जर्नी पारुल बांका
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