नोएडा से भागकर गुजरात पहुंचा 16 साल का लड़का, वजह बनी पढ़ाई की डांट

नोएडा में एक 16 साल का लड़का माता-पिता की डांट के बाद घर छोड़कर निकल गया। केवल ₹250 और कुछ कपड़े लेकर निकला किशोर आखिर गुजरात कैसे पहुंचा? जानिए इस चौंकाने वाले मामले की पूरी कहानी।

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Vaishali Garg
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Depression

नोएडा में रहने वाला एक 16 साल का लड़का, जो दसवीं का छात्र था, जब अपने माता-पिता से पढ़ाई को लेकर डांट खाता है तो गुस्से और चुप्पी के उस कोलाहल में कुछ ऐसा करता है जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी वो चुपचाप घर से निकल जाता है। न कोई चिट्ठी, न अलविदा, बस एक बैग में दो जोड़ी कपड़े, ₹250, और मन में भर भर के ग़लतफ़हमियां।

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उसकी गुमशुदगी ने घरवालों की नींद उड़ा दी, पुलिस को सक्रिय कर दिया और अंततः उसे गुजरात से खोजकर वापस लाया गया। लेकिन अब सवाल यह नहीं है कि वह मिला, सवाल ये है कि वह क्यों गया?

नोएडा से भागकर गुजरात पहुंचा 16 साल का लड़का, वजह बनी पढ़ाई की डांट

क्या बच्चों की गलती सिर्फ पढ़ाई में कमज़ोर होना है, या हमारी समझ में भी कुछ चूक है?

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हर माता-पिता अपने बच्चे की भलाई ही चाहते हैं। लेकिन भलाई जताने का तरीका अगर डर, गुस्से या तानों में बदल जाए, तो फिर बच्चे वो ‘भला’ महसूस नहीं कर पाते। बच्चे चुप होते हैं, सहते हैं, और फिर एक दिन वो कर जाते हैं जो इस लड़के ने किया।

हमारे समाज में आज भी भावनात्मक समझदारी को "ड्रामा" या "बेवजह की सेंसिटिविटी" समझा जाता है। लेकिन क्या कभी हमने सोचा कि बच्चों के भीतर की बेचैनी, डर, और दबाव कहाँ जाकर फूटते हैं?

बच्चों को समझने की ज़रूरत है, सिर्फ चलाने की नहीं

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हर बार जब हम कहते हैं, "हमारे ज़माने में तो..." या "इतना भी नहीं कर सकते?" तो हम दरअसल उनकी दुनिया को अपनी पुरानी सोच के साँचे में फिट करने की कोशिश करते हैं। जबकि आज की दुनिया तेज़ है, अलग है, और बच्चों को सिर्फ रोटीन नहीं, इमोशनल स्पेस भी चाहिए।

अगर बच्चा पढ़ाई में पिछड़ रहा है, तो हो सकता है वो कहीं और ज़्यादा कुछ झेल रहा हो। और अगर हमने वो समझने की कोशिश नहीं की, तो शायद हम सिर्फ एक टेस्ट नहीं, एक रिश्ता भी हार रहे हैं।

घर छोड़ दिया, लेकिन सवाल छोड़ गया…

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एक 16 साल का लड़का, जिसके बैग में सिर्फ ₹250 और जेब में टूटी उम्मीदें थीं, दिल्ली से गुजरात निकल पड़ा… क्यों? क्योंकि उसे सिर्फ पढ़ाई के लिए डांटा गया था। लेकिन असल में उसे डांटा नहीं गया, उसे अनसुना किया गया।

कहने को तो बच्चे की वापसी हो गई, लेकिन क्या भरोसा भी लौट पाया? क्या उस भरोसे की जगह, जहाँ वह बिना डरे अपनी बात कह सकता था, अभी भी मौजूद है? हर बार जब हम कहते हैं "हम तो तुम्हारे भले के लिए डांटते हैं", तो क्या हमने कभी ये भी पूछा है कि वो भला उन्हें कैसा लग रहा है?

समय आ गया है कि हम बच्चों से सिर्फ नंबर की उम्मीद न करें, बल्कि उनसे दिल से जुड़ें। वरना कहीं ऐसा न हो कि अगली बार कोई और बच्चा सिर्फ शहर ही नहीं, हमारा रिश्ता भी छोड़ दे।

गुजरात नोएडा