इस साल नरूवाद के क्षेत्र में कई हंगामें हुए. नयी विचार धारा को आंदोलन का रूप मिला, जिसने महिलाओं का जीवन बदल दिया. आइए नज़र डालें 2015 की ऐसी हू कुच्छ ऐतिहासिक बदलाव के पलों पे:
#HAPPYTOBLEED
जब सबरिमाला देवस्वोम बोर्ड के अध्यक्ष ने यह कहा के महिलाओं को मंदिर में तब तक आने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए जब तक उनकी माहवारी का पता लगाने वाली मशीन का अविष्कार ना हो जाए, तो देश की महिलाओं ने एक आक्रामक ऑनलाइन अभियान #happytobleed स जवाब दिया. कॉलेज छात्रा निकिता आज़ाद ने इसे शुरू किया, और देश की सभी महिलाओं ने इसका समर्थन किया. पुरुष भी पीछे नहीं हटे, और उन्होने माहवार संबंधित दक्यानूसि पाबंदियों के विरोध में #smashpatriarchy द्वारा अपनी सोच व्यक्त की
माहवारी में मॅरतॉन:
अगस्त 2015 को जब लंडन मॅरतॉन हुई, तब किरण गाँधी पीरियड पर थी पर वे फिर भी बिना टॅंपान या सॅनिटरी नॅपकिन के भागी. 26 मिल के रेस में, खून आज़ादी से बहा, अनहोने यह इसलिए भी किया ताकि वे लोगों में कुच्छ वंचित लोगों के साथ पीरियड से जुड़ी सामग्री की किल्लत के बारे में जागरूकता फैला सकें.
इंस्टाग्राम पर खुला-सा:
टोरोंटो में रहने वाली फोटोग्राफर रूपी कौर ने बिस्तर पे लेटे हुए अपनी एक तस्वीर शेयर की, जिसमें उनका पिजामा पीरियड के खून से रंगा था. इंस्टाग्राम ने उनकी यह फोटो हटा दी और कारण दिया के वह फोटो 'समुदाय दिशानिर्देश' के विरुध्ध थी. सोशियल मीडीया में सैलाब आया और विष भर की मीडीया ने इस किससे पर अनेक कहानियाँ लिख डाली. उन्होने यह फोटो सिर्फ़ इसीलिए डाली थी ताकि लोग महिलाओं के जीवन के इस दर्दनाक पहलू से कुच्छ सहानुभूति रख सकें
“स्त्री-द्वेषी समाज के अहं को संतुष्ट करने के लिए मैं माफी नहीं माँगूंगी, जो मेरे शरीर को मेरे अंडरवेर में रखता है, पर उससे आपत्ति है अगर उसमें से कुच्छ बूँदें चालक जायें. उसी समाज में आपको इंटरनेट पे महिलाओं को आजीव वास्तु की तरह देखने व निचले दर्जे पे गिराने वाली अनगिनत तस्वीरें, वीडियो वगेरह है.”
फेमिनिस्ट रानी नामक आंदोलन:
अक्टोबर 2015 में जब फेमिनिस्ट रानी की शुरुआत हुई, तब यह सिर्फ़ कुच्छ महिलाओं का एक समूह था जो नारीवाद के बारे में बात करना चाहती थी और यह समझना चाहती थी के वह उनकी रोज़ के जीवन पे क्या प्रभाव रखता है. महीने दर महीने, विचार मजबूत हुआ, आवाज़ बुलंद हुई और महलाओं ने साथ आते हुए, खुल कर भारत में एक महिला होने की चुनौती और उसके समाधान की खोज की. फेमिनिस्ट रानी के द्वारा महिलाओं ने नारीवाद के प्राचीन विचार को समझा- कैसे, क्या और क्यों हुआ. अपनी कहानी शेयर करने वाली युवा महिला आइकॉन्स में शामिल हैं buzzfeed एडिटर रेगा झा, लेखिका किरण मानरल, पत्रकार राणा अयूब व कमीडियन अदिति मित्तल. इनसे जुड़ें और इनकी कहानी जानें.
भारत की पहली पूर्ण महिला टुकड़ी ने गणतंत्र दिवस परदे में हिस्सा लिया:
इस वर्ष के गणतंत्र दिवस उत्सव की ख़ास बात यह नहीं थी के US प्रेसीडेंट बरक्क ओबामा पधारे, बल्कि यह थी विश्व ने पहली बार भारत की महिला सेनानियों को देखा. 154 युव-सैनिकों की यह टुकड़ी कप्तान दिव्या अजीत कुमार की कमांड में आगे बढ़ी. यह सभी लड़कियों और महिलाओं के लिए एक प्रेरणादायक दृश्य था, जो अब इसका हिस्सा बनने का सपना देखती हैं.
भारत का पहला ट्रांसगेन्दर जस्टीस बोर्ड:
राज्य व जिला स्तर पे ट्रॅनस्जेंडर जस्टीस बोर्ड स्थापित करके केरला लिंग निष्पक्षता की ओर कदम बढ़ाने वाला पहला राज्य बना. अब केरला में हर व्यक्ति के पास अपनी लैंगिकता चुनने का अधिकार है, और इसमें उनके पास न्ययतानत्र का पूरा समर्थन है. केरला आज देश के बाकी सभी राज्यों से हर क्षेत्र में इतना आगे है के उन्हे केरला के बराबर आने में बहुत समय लगेगा.
नारीवाद फिल्मों में भी दिखा:
भारत की पहली पूर्णत: नारीवादी फिल्म, आंग्री इंडियन गॉडेसस रिलीस हुई, जिसने भारतीय महिला की हर रोज़ के संघर्ष को बहुत खूबसूरती के साथ पेश किया. कई लोगों के लिए याग एक चक्षु- उन्मीलक़ भी था.
यशराज ने भी 'माँस वर्ल्ड' नमक एक वेब सीरीस की शुरुआत कर देश वासियों को लैंगिक भूमिका का असली मतलब समझाया. बोल्लयऊूद के अनेक सेलेब्रिटीस इसका हिस्सा बने, और इंटरनेट इस्तेमाल करने वाली जनता ने इसकी खूब प्रशंसा की.
इंडियास डॉटर:
इंडियास डॉटर 2012 में दिल्ली में हुए भयानक निर्भाया रेप केस पर धारित एक डॉक्युमेंटरी फिल्म है जो हुमारे देश में ही बॅन कर दी गयी. बलात्कार को किसी एक की ग़लती ना बताते हुए फिल्म निर्माता लेसली उड़विन ने इसे एक सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधि के रूप पे प्रस्तुत किया. बॅन के बावजूद कई लोगों ने इसे इंटरनेट पे देखा, जिससे हुमारे शांत समाज में एक नये सवाद की शुरुआत हुई. बहुत ज़रूरी है के अब हम इसके बारे में वार्ता करें और किसी को दोषी कहने की बजाए इसे समझने का प्रयत्न करें.
राष्ट्रीय विमेंस हेल्पलाइन:
एक 24 घंटा चालू रहने वाली महिलाओं के लिए हेल्पलिन का शुभारंभ किया गया. अभी तक यह भारत के 10 राज्यों में चालू किया जेया चुका है, जिससे यह भी मालूम पड़ता है के हम महिलाओं की सुरक्षा को गंभीरता से ले रहे हैं. हलाकी इसका यह मतलब भी नई है क हम सुरक्षित हैं, पर कहीं तो शुरुआत हो रही है.
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ:
भारत में लड़कियों को मिलने वाली कम शिक्षा की समस्या का समाधान था ये अभियान जहा बेटी को पढ़ने पर सरकार द्वारा इनाम, हेल्त इन्षुरेन्स आदि प्रदान किया जाता है, ताकि उन्हे प्रक्रिया जारी रखने का प्रोत्साहन मिले. खास तौर पे ग्रामीण भारत में इसकी सफलता उदाहरणात्मक रही है.
पिंजरा तोड़:
आख़िर क्यों सूर्यास्त के बाद लड़कियों को हॉस्टिल में बंद कर दिया जाता है? जब दिल्ली के कॉलेज की कुच्छ लड़कियों ने मिल कर इस पुरुष- प्रधानी प्रभाव का विरोध करने का निर्णय किया, पिंजरा तोड़ नामक आंदोलन का जानम हुआ. UGC निर्देश के शांत विरोध में ये लड़कियाँ देर रात तक हॉस्टिल के बाहर सड़कों पर घूमी. युवा पीढ़ी की लड़कियों द्वारा की गयी इस शुरुआत का कविता कृष्णन और शशि थरूर समेत कई प्रख्यात हँसतियों ने समर्थन भी किया. लगता है हुमारी युवा पीढ़ी नारीवाद का असली अर्थ समझती है.
युवा, खेल, शिक्षा, राजनीति व मीडीया- सभी क्षेत्रों में नारीवाद के लिए यह एक आलीशान वर्ष था. ना केवल उन्होने असाधारण को प्राप्त किया, बल्कि देश विधेश का ध्यान भी. लिंग से जुड़े समाज द्वारा बनाए गये पूर्व-कल्पित विचारों को बदलने में इन सभी छ्होटे आंदोलनों की अहम भूमिका रही है.