N/A

author-image
Swati Bundela
New Update

Advertisment

इस बार तो उन्होंने लंबे समय से चली आ रही बारी बारी से सत्ता परिवर्तन की परिपाटी को ध्वस्त करते हुए अपनी पार्टी को लगातार दूसरी बार जीत दिलाई। तमिलनाडु में 1984 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई पार्टी लगातार दूसरी बार सत्ता बरकरार रखने में सफल रही। ‘पुरची तलैवी’ :क्रांतिकारी नेता: के तौर पर पहचानी जाने वाली 68 वर्षीय अन्नाद्रमुक सुप्रीमो ने चुनौतियों के बावजूद मजबूती के साथ खड़े रहने की अपनी एक छवि बनाई है, हालांकि भ्रष्टाचार के आरोप के कारण उनको दो बार पद छोड़ना पड़ा। बाद में उन्होंने वापसी भी की।सिर पर एमजी रामचंद्रन जैसे दिग्गज का हाथ होने के बावजूद जयललिता को सियासत के शुरूआती दिनों में संघर्ष करना पड़ा। वह 1989 में अन्नाद्रमुक की महासचिव बनीं।

विपक्ष ने उन्हें ‘आम लोगों की पहुंच से दूर’ और ‘अधिनायकवादी’ करार देते हुए निशाना साधा, लेकिन लोगों के बीच उनकी छवि धूमिल नहीं हुई। उन्होंने ‘अम्मा कैंटीन’ जैसी कल्याणकारी योजनाओं से राज्य के आम लोगों के बीच अपनी पैठ मजबूत की।उनकी निवर्तमान सरकार में कई लुभावनी योजनाएं शुरू की गईं। राशनकार्ड धारकों को 20 किलोग्राम चावल, मुफ्त मिक्सर ग्राइंडर, दुधारू गाय, बकरियां बांटी गईं तथा मंगलसूत्र के लिए चार ग्राम सोना दिया गया। जयललिता ने सत्ता में वापस आने पर इसे बढ़ाकर आठ ग्राम करने का वादा किया। उन्होंने इन सभी राशनकार्ड धारकों को मुफ्त मोबाइल फोन बांटने का वादा भी किया है।
Advertisment


तमिलनाडु के राजनीतिक इतिहास को देखते हुए जयललिता की यह जीत इस मामले में अद्भुत है कि यहां की राजनीति ‘द्रविड़ियन’ सिद्धांत और ब्राह्मण विरोधी बयानबाजी पर केंद्रित है। जयललिता साहसिक फैसले करने के लिए भी जानी जाती हैं। दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने कहा था कि वह ‘रिंगमास्टर’ हैं जो सरकारी अधिकारियों को काम करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।
Advertisment

पार्टी में शामिल होने पर कई नेताओं ने उन निशना साधा। उनको 1983 में पार्टी का प्रचार सचिव बनाया गया। एमजीआर ने 1984 में जयललिता को राज्यसभा भेजा और धीरे-धीरे वह पार्टी के भीतर कई नेताओं का समर्थन पाने में सफल रहीं।

साल 1987 में एमजीआर के निधन के बाद जयललिता ने अन्नाद्रमुक के एक धड़े का नेतृत्व किया। दूसरे धड़े का नेतृत्व एमजीआर की पत्नी वी एन जानकी कर रही थीं।
Advertisment


वह 1989 में बोदिनायककुनूर से विधानसभा चुनाव लड़ीं और विधानसभा में पहली महिला नेता प्रतिपक्ष बनीं। उनकी अगुवाई वाले अन्नाद्रमुक के धड़े ने 27 सीटें जीतीं, जबकि जानकी की अगुवाई वाले धड़े को महज दो सीटें मिली।
Advertisment

बाद में पार्टी के एकजुट होने पर वह 1989 में अन्नाद्रमुक की महासचिव बनीं। यह पार्टी का शीर्ष पद है।