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5 रोजमर्रा की चुनौतियाँ जिनका महिलाओं को करना पड़ता हैं सामना

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Swati Bundela
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भारत में एक महिला होना अपने आप में एक चुनौती है.वैसे तो यह देश सालों से महिलाओं के लिए असुरक्षित है पर कुछ ऐसी रोजमर्रा

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की समस्याएँ  भी हैं जिन  पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता. बहुत शर्म की बात है की इस धरती पर रहने वाली ५० % आबादी को अपने शरीर के बारें में और उसका ध्यान कैसे रखा जाये इस विषय में कुछ नहीं पता..


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१. पीरियड्स


एक साल पहले जुलाई के महीने में मैं दिल्ली के कैननॉट प्लेस इलाके में एक मेडिसिन स्टोर ढूंढती रही जहाँ से मैं एक पैड खरीद सकूँ. मेरा पेट बहुत दर्द हो रहा था और ऊपर से मैंने हलके रंग की जीन्स पहनी हुई थी. मैंने पैड को अख़बार में लपेटा और देखा की दुकानदार मुझे अजीब नज़रों से देख रहा है. हैरानी की बात हैं पीरियड्स के मुद्दे पर इतनी गुप्तता है.

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२. पब्लिक शौचालय


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भारत में महिलाओं के लिए पब्लिक शौचालयों की बहुत कमी  है. सर्कार कहती है की महिलाओं के लिए शौचालय बनाने में बहुत पैसे खर्च होते हैं और यही कारण है कि महिलाओं को शौचालय इस्तमाल करने के लिए पैसे देने पड़ते हैं. यही उसूल पुरुषों पे लागू नहीं होता. महिलाओं के लिए बने चाँद शौचालयों में भी कभी हैण्ड-ड्रायर काम नहीं करता और पैड वेंडिंग मशीन तो हैं ही नहीं.


३. पॉकेट्स

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कितनी आश्चर्य कि बात हैं कि मेरे भाई कि स्वेटपैंट्स में पॉकेट्स हैं पर मेरे में नही. मेरे भाई की फ़्रोमल  ट्रॉउज़र्स में पॉकेट्स हैं पर मेरे में नहीं. जीन्स में स्लिट्स और रिप्स ठीक हैं पर पॉकेट्स होनी भी उतनी ही ज़रूरी हैं.


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४. रूम टेम्परेचर


महिलाओं को दफ्तरों में ठण्ड लगती हैं क्योंकि वहां का टेम्परेचर मध्यम आयु वर्ग के पुरुषों के हिसाब से सेट होता हैं. डेल्ही मेल  में आयी एक रिपोर्ट के आधार पर यह सिद्ध हो चूका हैं की महिलाएँ 25 डिग्री सेल्सियस रूम टेम्परेचर पर काम करना पसंद करती हैं. लगता हैं एयर कंडीशनिंग स्टैंडर्ड्स अभी भी १९६० की ही रिसर्च को मान्यता देते हैं जो केवल ४० साल के पुरुषों के मेटाबोलिक रेट को ध्यान में रखता हैं.

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५. सार्वजनिक स्थल


भारत कि सड़के, मॉल्स, पब्लिक ट्रांसपोर्ट. हर जगह महिलाएँ अपने आप को पुरुषों से बचती हुई दिखाई देती हैं. ऐसा लगता हैं मानो पेंट्स पहने हुए पुरुषों का स्कर्ट्स पहनी हुई महियालों पर जन्मसिद्ध अधिकार हैं. हर दिन स्वयं को बाद टच से बचने कि चुनौती लगता हैं.


३१ दिसम्बर को बेंगलुरु में हुई घटना को देखकर मेरे दिल में गुस्से और दर्द के अलावे औरकुछ महसूस नहीं होता. जिस लड़की के साथ छेड़छाड़ की गयी वे अपने घर से केवल ५० मीटर ki दूरी पर थी. हम व्यक्तिगत सुरक्षा जैसे जरूरी मुद्दे पर गहराई से विचार करना होगा.

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