New Update
शिशुओं की जैविक माताएँ या तो बहुत बीमार थीं या उन्हें अपना दूध नहीं दे पा रही थीं।
"रूशिना का यह कदम बहुत अनमोल है। उनका दूध 600 ग्राम और 1।5 किलोग्राम वजन वाले इन नाजुक शिशुओं के लिए लाइफ सेविंग साबित हुआ है, जिनमे इन्फेक्शन का खतरा अधिक होता है," वरिष्ठ सीनियर पेडिअट्रिशन डॉ। आशीष मेहता ने बताया जो की अर्पण नवजात शिशु देखभाल केंद्र में अप्पोइंटेड है। केंद्र ने इस साल की शुरुआत में अर्पण'स माँ (मां का अपना दूध) बैंक शुरू किया था।
रूशिना का नेक कदम
29 वर्षीय रूशिना हाल ही में बेबी वियान की मां बनीं। "जब मैंने सोचा कि क्या मैं किसी बीमार या ज़रूरतमंद बच्चे के लिए दूध दान कर सकती हूं, तो मेरे पिता ने अस्पतालों के माध्यम से इसके बारे में पता लगाया और इस बैंक को पाया। अपने बेटे को विशेष रूप से ब्रेस्टफीड कराने के अलावा, मैंने अपना दूध दान करना शुरू कर दिया और आगे भी करती रहूंगी ।" रशिना, जो एक पूर्व इवेंट मैनेजर भी हैं और अब एक निजी कॉलेज में इवेंट मैनेजमेंट सिखाती हैं।
अनेकों माताएं भी आयी आगे
वह यह भी मानती हैं कि जब बच्चे लंबे समय तक ब्रेस्टफीड करते हैं तो वे बच्चे सबसे ज्यादा स्वस्थ होते हैं। यह सिर्फ रूशिना नहीं है, 250 मांएं हैं जो अर्पण एमओएम बैंक का हिस्सा हैं। इसे काम में लगभग 90 लीटर माँ का दूध मिला है, जो लगभग 150 मिलीलीटर प्रत्येक के 600 बच्चों को दूध फ़ीड करवाने में मदद करता है।
इसी तरह के एक केस में, बेबी श्री करण ने फेसबुक पर एक पोस्ट देखा जिसमें एक प्राइवेट हॉस्पिटल में एक बीमार समय से पहले बच्चे के लिए ब्रैस्ट मिल्क डोनेट किया था। उन्होंने 20 मिली दूध दान किया और बाद में उन्हें अस्पताल के द्वारा फोन पर पता चला की उनके दूध से उस बच्चे की जान बचा ली गयी तो उन्हें बहुत खुशी हुई, जैसा कि द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने बताया है।
उनके इस अनुभव ने उन्हें मिल्क डोनेशन कैंप शुरू करने का विचार दिया। छह महीने पहले, उन्होंने और उनके दोस्तों कौशल्या जगदीश और राम्या शंकरनारायणन ने तमिलनाडु के एग्मोर में इंस्टिट्यूट ऑफ़ चाइल्ड हेल्थ (आईसीएच ) के निओनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट में हर रविवार को मिल्क डोनेशन कैंप शुरू किया।