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Patna High Court: क्या पत्नी को "भूत" या "पिशाच" कहना क्रूरता नहीं है?

पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक विवादास्पद फैसला सुनाया है। इस फैसले में अदालत ने कहा है कि पति-पत्नी के बीच अगर तनाव हो और गुस्से में वे एक-दूसरे को "भूत" या "पिशाच" जैसे अपमानजनक नामों से बुलाते हैं तो ये "क्रूरता" नहीं मानी जा सकती।

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Vaishali Garg
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High Court(The Times Of India)

Calling Wife "Bhoot", "Pishach" Not Cruelty In Failed Marriages : पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक विवादास्पद फैसला सुनाया है। इस फैसले में अदालत ने कहा है कि पति-पत्नी के बीच अगर तनाव हो और गुस्से में वे एक-दूसरे को "भूत" या "पिशाच" जैसे अपमानजनक नामों से बुलाते हैं तो ये "क्रूरता" नहीं मानी जा सकती।

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पटना हाईकोर्ट का विवादित फैसला: पत्नी को "भूत" और "पिशाच" कहना क्रूरता नहीं है

यह टिप्पणी तब सामने आई जब सहदेव गुप्ता और उनके बेटे नरेश कुमार गुप्ता ने नालंदा कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की। नालंदा कोर्ट ने उन्हें एक साल के कारावास की सजा सुनाई थी।

पूरा मामला

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नरेश गुप्ता की पत्नी ने 1994 में नवादा कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई थी। उनका आरोप था कि उनके पति और ससुर ने दहेज की मांग पूरी करवाने के लिए उन्हें शारीरिक और मानसिक यातनाएं दीं। बाद में केस को नालंदा ट्रांसफर कर दिया गया। वहां मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने दोनों को एक साल की सजा सुनाई। हालांकि, झारखंड हाईकोर्ट ने बाद में दोनों को तलाक दे दी।

पत्नी के वकील की दलील

इस मामले में पत्नी के वकील का कहना था कि 21वीं सदी में किसी महिला को ससुराल वाले "भूत" और "पिशाच" कहें, यह क्रूरता की पराकाष्ठा है।

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लेकिन जस्टिस विवेक चौधरी की एकल पीठ ने इस दलील को खारिज कर दिया। उनका कहना था कि "टूट चुके वैवाहिक रिश्तों में" अक्सर पति-पत्नी एक-दूसरे के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करते हैं।

हालाँकि, जज ने ये भी माना कि महिला को प्रताड़ित किया गया था, लेकिन उन्होंने कोई ठोस सबूत न होने के कारण इस पर कोई टिप्पणी नहीं की।

फैसला क्यों परेशान करने वाला है?

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यह फैसला इसलिए परेशान करने वाला है क्योंकि यह वैवाहिक कलह में महिलाओं के साथ होने वाले मौखिक दुर्व्यवहार को सामान्यीकरण करता है। शारीरिक हिंसा को लोग इसलिए गंभीरता से लेते हैं क्योंकि उससे शरीर पर निशान बन जाते हैं। लेकिन भावनात्मक या मानसिक हिंसा को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता क्योंकि इसके घाव दिखाई नहीं देते।

हालांकि, मौखिक दुर्व्यवहार भी अदृश्य घाव देता है। कोर्ट और समाज को ये याद रखना चाहिए कि नए कानूनों के तहत महिला के मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाना क्रूरता है।

अगर किसी अजनबी ने किसी को अपमानजनक नाम से बुलाया तो उसे गलत माना जाता है, तो फिर पति द्वारा ऐसा करना कैसे सही हो सकता है? क्या इसलिए कि पति को पत्नी पर हक है? या इसलिए कि पत्नी पति की संपत्ति है?

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हमें ये समझना चाहिए कि नाम-जपना या अपशब्द चाहे कोई भी करे, गलत है और अपमानजनक है। हाँ, कभी-कभी मजाक में भी अपशब्द बोल दिए जाते हैं, लेकिन वहाँ ये बात मायने रखती है कि जिसे ये शब्द कहे जा रहे हैं, वो सहज महसूस करता है या नहीं। इस मामले में साफ है कि महिला को तकलीफ पहुँचाई गई।

विवाह में झगड़े होना आम है, लेकिन किसी का आत्मसम्मान तार-तार करने की हद पार नहीं करनी चाहिए।

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