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महाराष्ट्र सबसे हिट राज्यों में से एक है और मुंबई में दिहाड़ी मजदूरों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए, उन्होंने खराब स्थिति में रहने वाले पीड़ित परिवारों की मदद के लिए धन जुटाने का फैसला किया।
अनन्या ने वेलफेयर चिल्ड्रन सोसाइटी बांद्रा में बच्चों को चैस खेलना सिखाने में भी मदद की है। वह सप्ताह में दो बार दो घंटे वहां सर्विस देती है और लगातार एनजीओ प्रमुख के साथ मिलकर एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज सिखा रही है।
“दुनिया बढ़ती कोविद-19 महामारी से प्रभावित हर जगह एक अभूतपूर्व चुनौती का सामना कर रही है। मैं, सिंगापुर इंटरनेशनल स्कूल की 10 वीं कक्षा की छात्रा अनन्या गुप्ता इस मौजूदा स्थिति के प्रति पूर्ण समर्थन देना चाहती हूं और लोगों की मदद के लिए परिवारों को भोजन, चिकित्सा सहायता और अन्य जरूरी चीजों के लिए धन जुटाना चाहती हूं। इस नेक काम के लिए आप दान दे. हम एकजुट होकर इस मुश्किल समय का सामना करते हैं, ”उसने चैसबेस.इन को बताया।
फिलहाल, अनन्या शतरंज से अधिक पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर रही है। वह स्वीकार करती है कि एक वर्ष के लिए वह 10 वीं कक्षा की परीक्षा पर ध्यान दे रही है और भले ही शतरंज उसके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन अब उसका लक्ष्य पहले अच्छे ग्रेड प्राप्त करना है।
अनन्या अपनी एनर्जी और रिसोर्सेज का इस्तेमाल डेली वेज वर्कर्स के परिवारों की मदद करने के लिए करना चाहती है।
समाज में बदलाव लाने के विचार से प्रेरित, अनन्या बड़ी होकर साइकोलॉजी और इकोनॉमिक्स पढ़ना चाहती है और उसी के लिए काम कर रही है।
एक विजनरी परिवार में पैदा हुई
अनन्या के माता-पिता हेमांगी और ऋषि गुप्ता चाहते थे कि उनकी बेटी अनन्या शहर में रहे, लेकिन दुनिया भर के महान प्रोफेशनल्स से चैस सीखे और उसकी अच्छे से देखरेख भी हो। उन्होंने अपने लिविंग रूम से आईलेड चैस अकादमी की शुरुआत की और पूरे भारत के सर्वश्रेष्ठ ट्रेनर्स को अपने घर पर आमंत्रित किया।
उसके पिता जो एक व्यवसायी हैं और उसकी माँ एक फैशन डिजाइनर है । अनन्या ने 2013 में ग्रीस में वर्ल्ड स्कूल चैस चैंपियनशिप में ब्रोंज मैडल जीता। वह उस समय सिर्फ नौ साल की थी। उसने खेल के मैदान में सभी को हराया और तब से बड़ी उपलब्धियाँ हासिल कर रही है। उसने पहले सिंगापुर चैस फेस्टिवल में गोल्ड मैडल जीता था।