पीड़ित महिलाओं को तत्काल राहत प्रदान करने के लिए Domestic Violence से महिलाओं का conservation act 2005 लाया गया था। समय के साथ एक्ट विकसित हुआ और समय-समय पर चुनौती दी गई जब वह राहत प्रदान करने में असफल रहा। 2005 के एक्ट की धारा 19(1)(बी) के प्रावधान की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए एक petition दायर की गई है, जो वैवाहिक घर से किसी भी महिला को बेदखल करने पर रोक लगाती है।
दिल्ली उच्च न्यायालय भी 'Domestic Violence Act 2005 के तहत शुरू की गई कार्यवाही में एक महिला को वैवाहिक घर से बेदखल किया जा सकता है के संबंध में provision की संवैधानिकता की समीक्षा करने पर भी सहमत हो गया। जस्टिस सतीश चंदर शर्मा और जस्टिस सुब्रमणियम प्रसाद की अध्यक्षता वाली पीठ एक सास की ओर से लॉयर प्रीति सिंह द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई की और 21 दिसंबर 2022 को केंद्र सरकार और राष्ट्रीय महिला आयोग को नोटिस जारी किया।
Court To Examine Domestic Violence Act 2005
PWDV अधिनियम के प्रावधानों की संवैधानिकता के साथ कोर्ट की सहायता के लिए वरिष्ठ लॉयर रेबेका जॉन को नियुक्त किया गया था। पेटेस्नर ने शेयर किया वैवाहिक घर से अपनी बहू को बेदखल करने के लिए पहले तीस हजारी जिला कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन अदालत ने इसे यह मानते हुए खारिज कर दिया कि पीडब्ल्यूडीवी की धारा 19 (बी) के तहत महिला के खिलाफ ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया जा सकता है। अधिनियम 2005 धारा महिलाओं के खिलाफ ऐसे किसी भी आदेश पर रोक नहीं लगाती है।
दिल्ली हाई कोर्ट Domestic Violence Act 2005 की जांच क्यों करना चाहता है?
High Court में लॉयर प्रीति सिंह ने दलील दी कि पीडब्ल्यूडीवी अधिनियम महिला हितैषी कानून है और एक्ट की धारा 19 के तहत पीड़ित महिला को निवास का अधिकार प्रदान करता है और मजिस्ट्रेट परिवार के अन्य सदस्यों को खुद को हटाने का निर्देश दे सकता है। इसका मतलब यह है कि महिला के खिलाफ इस तरह के आदेश पारित करने पर रोक है। प्रीति सिंह ने यह भी कहा कि यह एक्ट सास और बहू के बीच अंतर नहीं कर सकता है। इस प्रकार वरिष्ठ नागरिकों (सास) को अधिनियम के तहत उनके अधिकारों का प्रयोग करने से वंचित करता है। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।
याचिकाकर्ता ने यह भी बोला है कि लिव-इन रिलेशनशिप में कोई भी महिला अपने लिव-इन पार्टनर के खिलाफ पीडब्ल्यूडीवी अधिनियम, 2005 के तहत निवास के अधिकार का उपाय पाने की हकदार है। इस प्रावधान के कारण उसकी महिला लिव-इन पार्टनर के खिलाफ समान कानून का प्रयोग नहीं किया जा सकता है। प्रीति सिंह ने लिखित रूप में इस बात पर भी प्रकाश डाला कि पीड़ित सास या महिला लिव-इन पार्टनर्स को सिविल सूट या वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग करने के लिए मजबूर किया जाता है। हालंकि, यह केवल डिफरेंट कोर्ट के आदेशों पर विचार करते हुए अस्पष्टता और भ्रम पैदा करता है।