बिहार के गया क्षेत्र में इतिहास रच दिया गया है। दरअसल 40 सालों से मैला ढोने वाली महिला चिंता देवी, जिन्हे डिप्टी मेयर चुनकर इतिहास रच दिया गया। चिंता देवी को 31 दिसंबर को बिहार के गया कि नवीन उप महापौर चुन लिया गया है।
बिहार (Bihar) के गया क्षेत्र में स्थानीय निकाय चुनाव में 40 वर्षों से मैला ढोने वाली महिला को उप महापौर चुना गाय जो एक इतिहास बन गया है। पीछले दिनों हुए नगर निकाय चुनाव में चिंता देवी को गया की डिप्टी मेयर (deputy Mayor) बना दिया गया है। उन्होंने 40 वर्षों से एक मैला ढोने वाली के रूप में काम किया। यही नहीं एक सफाई कर्मचारी और सब्जी बेचने वाली के रूप में भी उन्होंने काम किया है।
चिंता देवी बनी गया की डिप्टी मेयर
आध्यात्मिक दृष्टि से गया का एक विशेष स्थान है। यहां लोग स्वयं के ज्ञान की तलाश में आते हैं और अपने पूर्वजों की मुक्ति हेतु भी। ऐसे स्थान से एक महिला लोकसभा में जा सकती है, यह किसी ने कल्पना भी नहीं करी थी। लेकिन इस बार लोगों ने इतिहास रच दिया, क्योंकि चिंता देवी एक सफाई कर्मचारी हैं और उन्हें चुनकर पूरी दुनिया के सामने एक मिसाल पेश कर दी गई है।
इस ऐतिहासिक घटना ने दर्शा दिया है कि गया के लोग दलितों का समर्थन भी करते हैं और उन्हें आगे लाने के लिए कार्य भी करते हैं। गया के पूर्व डिप्टी मेयर या उप महापौर मोहन श्रीवास्तव ने भी अपना समर्थन चिंता देवी को प्रदान कर कहा है की चिंता देवी ने चुनाव को जीत कर सच में एक इतिहास रच कर दिखा दिया है।
यह पहली बार नहीं है कि गया ने राजनीति में हाशिए पर पड़ी महिलाओं के प्रतिनिधित्व को प्रोत्साहित किया है। भगवती देवी जो पेशे से स्टोन क्रशर थीं और हाशिए पर पड़े मुसहर समुदाय से थीं, 1996 में गया निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के लिए चुनी गईं।
इससे पहले भी गया में इस तरह का आश्चर्यचकित चुनावी परिणाम देखा गया है। यह घटना 1996 में घटी थी, जब महिला प्रतिनिधित्व करने वाली भगवती देवी जी जो स्टेशन क्रशर का कार्य करती थी। उन्हें निर्वाचन गया निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के लिए चुन लिया गया था।
महिलाओं का स्थान राजनीति में
लोकसभा में 9 दिसंबर को हमारी कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू के द्वारा प्रस्तुत किए गए आंकड़ों के अनुसार भारतीय संसद और देश भर की राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 15% से कम रह गया है। तो वहीं 19 राज्यों की विधानसभाओं में 10% से भी कम महिला प्रतिनिधि उपस्थित हैं। यह दर्शाता है कि भारतीय राजनीति में अभी भी महिला प्रतिनिधित्व अधिक संख्या में नहीं है और इनका संघर्ष अभी भी बहुत कठिन और कड़ा है।
भारत में आज भी जेंडर को लेकर जो रूढ़िवादी सोच है।इसके साथ साथ उच्च कुल और नीची जात के बीच, मतभेद या भेदभाव का भाव और साथ ही भारत में शिक्षित महिलाओं की कमी एक बड़ा कारण है। जो भारतीय राजनीति में अभी भी जेंडर इनिक्वालिटी (gender inequality) का कारण बना हुआ है। यही बड़ा कारण है कि महिलाओं को आज भी राजनीति में अपना स्थान नियुक्त करने में या दर्शाने में कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में भला महिलाएं कैसे अपने साथ खड़े पुरुष राजनेताओं के समान दर्जा प्राप्त कर पाएंगी।