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Hospital Denies Entry To Woman In Labour Pain : जयपुर के एक सरकारी अस्पताल ने एक प्रसूता को प्रवेश देने से इनकार कर दिया। प्रसव पीड़ा से जूझ रही महिला को अस्पताल के प्रवेश द्वार के पास ही बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर होना पड़ा। हालांकि, राजस्थान सरकार ने 4 अप्रैल को लापरवाही बरतने के लिए अस्पताल के तीन डॉक्टरों को निलंबित कर दिया। यह पहली बार नहीं है कि अस्पताल की लापरवाही के कारण गर्भवती महिलाओं को ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ा है।
सरकारी अस्पताल ने दर्द से परेशान प्रेगनेंट महिला को प्रवेश देने से किया इनकार
क्या हुआ जयपुर में?
खबरों के अनुसार, चिकित्सा शिक्षा विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव शुभ्रा सिंह ने बताया कि घटना सामने आते ही विभाग ने तत्काल प्रभाव से एक जांच समिति का गठन किया। यह घटना जयपुर के कनवाटिया अस्पताल में हुई। "गंभीर लापरवाही और असंवेदनशीलता" के लिए कुसुम सैनी, नेहा राजावत और मनोज नामक तीन रेजिडेंट डॉक्टरों को निलंबित कर दिया गया है।
इसके अलावा, अस्पताल के अधीक्षक डॉ राजेंद्र सिंह तंवर को भी लापरवाही के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।
इसी तरह की अन्य घटनाएं
हरियाणा के अंबाला में एक सरकारी जिला अस्पताल के परिसर के पास सब्जी की ठेले पर एक महिला को बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर होना पड़ा। बताया गया है कि उसे डॉक्टरों से मदद मिलने से इनकार कर दिया गया था।
पिछले साल जुलाई में, गुरुग्राम सिविल अस्पताल के प्रसूति वार्ड के बाहर एक महिला ने बच्चे को जन्म दिया था। बच्चे को जन्म देने से पहले करीब 12 घंटे तक इंतजार करने के बाद भी उसे भर्ती करने से इनकार कर दिया गया था।
बिना देखरेचाह जन्म देने से महिलाओं को खतरा
ऐसी घटनाएं बार-बार क्यों सामने आ रही हैं? अस्पताल और डॉक्टर गर्भवती महिलाओं की पीड़ा क्यों नहीं सुन रहे हैं? क्या अस्पताल और डॉक्टर बिना किसी भेदभाव के सभी को चिकित्सा सहायता और देखभाल प्रदान करने के लिए जिम्मेदार नहीं हैं? क्या डॉक्टर ऐसी लापरवाही के परिणामों को नहीं जानते?
बिना डॉक्टरी देखरेख के जन्म देने वाली महिलाओं को अक्सर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है जो जानलेवा हो सकती हैं।
अस्पताल व्यापार बाजार कैसे बन गए?
आज की पूंजीवादी दुनिया में, हर चीज को पैसों के हिसाब से आंका जाता है। यहां तक कि अस्पताल भी ऐसे स्थान बन गए हैं जहां पैसा कमाया जाता है और मुनाफे के लिए कुछ भी किया जा सकता है। प्रतिष्ठित अस्पतालों में अवैध गर्भपात, लिंग परीक्षण, भ्रूण हत्या और यहां तक कि अंगों की तस्करी भी हो रही है। पैसा कमाने के लिए अस्पताल द्वारा मानव जीवन को आसानी से दाؤं पर लगा दिया जाता है। क्या अस्पताल और रेजिडेंट डॉक्टर ऐसी अवैध गतिविधियों को करने और लापरवाही बरतने में शर्म नहीं करते हैं? क्या डॉक्टर बनने का मकसद मानव जीवन बचाना नहीं है?
कभी-कभी अस्पताल इतने व्यस्त और भरे होते हैं कि कई मरीजों को दाखिला नहीं मिल पाता है। लेकिन बुनियादी सुविधाओं की कमी का खामियाजा मरीजों को क्यों भुगतना पड़े? क्या सरकारों और यहां तक कि निजी मालिकों को भी ज्यादा अस्पताल बनाने में निवेश नहीं करना चाहिए?