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गर्भपात का फैसला महिला का ही होगा: इलाहाबाद हाई कोर्ट

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि गर्भपात का निर्णय पूरी तरह से महिला का है। कोर्ट ने शारीरिक स्वायत्तता के आधार पर यह फैसला सुनाया। जानिए इस ऐतिहासिक फैसले के बारे में विस्तार से।

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Vaishali Garg
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Court (Freepik)

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में साफ कर दिया है कि गर्भधारण जारी रखने या समाप्त करने का फैसला पूरी तरह से महिला का है। कोर्ट ने इस निर्णय को शारीरिक स्वायत्तता के अधिकार से जोड़ा है।यह फैसला एक 15 साल की बलात्कार पीड़िता से जुड़े मामले में आया है, जो 24 जुलाई को 32 सप्ताह की गर्भवती थी। लड़की और उसके माता-पिता गर्भधारण समाप्त करना चाहते थे, लेकिन कोर्ट ने उन्हें मना लिया।

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गर्भपात का फैसला महिला का ही होगा: इलाहाबाद हाई कोर्ट

मामले की शुरुआत लड़की के मामा की शिकायत से हुई थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि लड़की को एक व्यक्ति बहला-फुसलाकर ले गया। बाद में पता चला कि लड़की 29 सप्ताह की गर्भवती है। चूंकि वह नाबालिग थी, इसलिए गर्भधारण को बलात्कार का परिणाम माना गया। इस पर पोक्सो एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज की गई।

गर्भपात का फैसला महिला का ही होगा 

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लड़की के माता-पिता हाई कोर्ट पहुंचे और 32 सप्ताह के गर्भधारण को समाप्त करने की याचिका दायर की। जस्टिस शेखर बी सराफ और जस्टिस मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने कहा, "कोर्ट का भी मानना है कि गर्भधारण जारी रखने या समाप्त करने का फैसला सिर्फ महिला का ही होना चाहिए। यह मुख्य रूप से शारीरिक स्वायत्तता के व्यापक रूप से स्वीकृत विचार पर आधारित है। यहां, उसकी सहमति सर्वोपरि है।"

कोर्ट ने यह भी कहा कि गर्भधारण समाप्त करने का फैसला एक गंभीर और नाजुक मुद्दा है, जिसके साथ संवेदनशीलता और मानवीय तरीके से निपटने की जरूरत है।

गर्भावस्था की जटिलताएं

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इस मामले में तीन मेडिकल पैनल बनाए गए और महिला की कई डॉक्टरों ने जांच की। कोर्ट ने सभी मेडिकल पैनल की रिपोर्ट की समीक्षा की, जिसमें कहा गया कि इस स्तर पर गर्भधारण समाप्त करना व्यावहारिक नहीं है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने कहा कि गर्भावस्था जारी रखना शारीरिक और मानसिक रूप से थका देने वाला हो सकता है, और इसे समाप्त करना जीवन के लिए खतरा हो सकता है।

इसलिए कोर्ट ने लड़की और उसके परिवार को गर्भावस्था के बाद के चरण में समाप्ति से जुड़े जोखिमों के बारे में समझाने की कोशिश की। कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चे को गोद देने का फैसला केवल गर्भवती महिला ही ले सकती है। गोद लेने की व्यवस्था को निजी और प्रभावी तरीके से किया जाना चाहिए।

कोर्ट ने कहा, "यदि वह गर्भावस्था के साथ आगे बढ़ने और बच्चे को गोद देने का फैसला करती है, तो राज्य का कर्तव्य है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि इसे यथासंभव निजी तौर पर किया जाए और यह भी सुनिश्चित किया जाए कि इस देश का नागरिक होने के नाते बच्चे के मौलिक अधिकारों को छीना न जाए।"

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कोर्ट ने लड़की और परिवार को समझाया

कोर्ट के आदेश में कहा गया है, "कोर्ट ने याचिकाकर्ता को गर्भावस्था के देर के चरण के कारण समाप्ति में शामिल जोखिमों के बारे में समझाया। याचिकाकर्ता और रिश्तेदारों को याचिकाकर्ता के जीवन के लिए जोखिम और गर्भवती होने की क्षमता खोने के संबंध में भविष्य के जोखिमों को समझाए जाने पर, बाद में गर्भावस्था को समाप्त करने के बजाय बच्चे को जन्म देने का विकल्प चुना।" मां और लड़की इस बात पर सहमत हो गईं कि वे बच्चे को गोद दे देंगी।

गोपनीय प्रसव और दत्तक ग्रहण

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कोर्ट ने बच्चे के गोपनीय और कुशल प्रसव और दत्तक ग्रहण का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि प्रसव की लागत राज्य वहन करेगा। इसने केंद्रीय दत्तक संसाधन प्राधिकरण (CARA) के निदेशक को बच्चे के जन्म के बाद 'बच्चे के सर्वोत्तम हित' सिद्धांत के अनुसार दत्तक ग्रहण करने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई 28 अगस्त को होगी।

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