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न्यूज़ीलैंड सरकार ने सारे स्कूल्स में फ्री सेनेटरी पैड्स अरेंज कराने का अनाउंसमेंट कराया है। ये उन महिलाओं को मेनस्ट्रुअल हाइजीन प्रोडक्ट्स देने की तरफ एक कदम है जो इन्हें अफोर्ड नहीं कर सकती।
स्कूल ना जा पाने का एक ज़रूरी काऱण
प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न कहतीं हैं कि 95000 लड़कियां ऐसी हैं जो 9 से 18 साल की उम्र में पीरियड्स के दौरान अपने घर पर रहने को मजबूर रहतीं है और स्कूल अटेंड नहीं कर पातीं क्योंकि उनके पास सैनिटरी पैड्स और टैम्पोन्स नहीं होते।
"पैड्स और टैम्पोन्स फ्री में अवेलेबल कराने से हम इन लड़कियों को सपोर्ट करेंगे ताकि उनको एजुकेशन लेने में और पढ़ने में कोई दिक्कत ना हो।"
ये भी कहा गया कि पीरियड्स में सैनिटरी पैड्स होना कोई लक्ज़री नहीं है बल्कि एक ज़रूरत है और कई लड़कियां इससे वंचित हैं जिसकी वजह से वो अपना स्कूल स्किप कर देती हैं।
पीरियड पॉवर्टी
न्यूज़ीलैंड सरकार ने इस प्रोजेक्ट पर $1.7 मिलियन लगायें हैं। इसकी शुरुआत देश के उत्तरी आइलैंड के वाईकाटु क्षेत्र के 15 स्कूल्स से की जाएगी। इसके बाद 2021 तक पूरे देश में इसको लागू किया जाएगा।
UNICEF के अनुसार जो लड़कियां सैनिटरी पैड्स अफोर्ड नही कर सकतीं वो फटे पुराने कपड़े, न्यूज़पेपर, भूसा, मुट्टी और राख से अपना मेंस्ट्रुअल लीक छुपाने की कोशिश करती हैं।
सिर्फ डेवलपिंग देशों तक सीमित नहीं
कई स्टडीज में पता चला है कि पीरियड पॉवर्टी सिर्फ डेवलपिंग कन्ट्रीज तक ही सीमित नहीं है।न्यूज़ीलैंड के youth19 के हेल्थ एंड वेल बीइंग सर्वे में खुलासा हुआ है कि 12% छात्राएं 12 से 18 उम्र में सैनिटरी पैड्स अफोर्ड करने में दिक्कत महसूस करती हैं। ये बात भारत जैसे देशों के लिए भी सच है।
खुद की योग्यता पर सवाल
कैरो अटिंकसन, एक स्कूल के काउंसलर कहते हैं "अगर आप बिना किसी गलती के बेसिक ज़रूरतों से वंचित रह जाते हैं तो आप खुद की योग्यता पर, अपने आप पर और खुद को देखने के तरीकों पर सवाल उठाते हैं। आपकी ये सारी चीज़ें नष्ट होने लगती हैं।"
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