पिछले हफ्ते, कर्नाटक हाई कोर्ट ने राज्य सरोगेसी बोर्ड को बेंगलुरु के एक जोड़े की सरोगेसी याचिका पर विचार करने का निर्देश दिया। 45 वर्ष की महिला ने शल्यचिकित्सा से अपना गर्भाशय निकाल दिया, जबकि उसके साथी की आयु 57 वर्ष है। 2021 के सरोगेसी अधिनियम में यह अनिवार्य है की पिता और माता की आयु क्रमशः 55 और 50 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। इस मामले में, दंपति सरोगेसी विकल्प का लाभ उठाने के लिए अयोग्य थे और इसलिए उन्होंने कर्नाटक हाई कोर्ट में याचिका दायर की।
इस मामले में दंपति का एक बेटा था जो एमबीबीएस ग्रेजुएट था। हालांकि, एक दुर्घटना में दंपति ने अपने इकलौते बेटे को खो दिया था। अपने बेटे को खोने से उदास होने के बाद, उन्होंने एक बच्चा गोद लेने पर विचार किया लेकिन उन्हें सरोगेसी का विकल्प चुनने की सलाह दी गई। महिला की बहन अंडे दान करने के लिए आगे आई, जबकि 25 वर्षीय पारिवारिक मित्र, दो बच्चों की मां, सरोगेट मां बनने के लिए तैयार हो गई है।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने 55 साल से अधिक उम्र के व्यक्ति को सरोगेसी के लिए दी मंजूरी
हालंकि, क्योंकि पिता की उम्र स्वीकार्य आयु सीमा से अधिक थी, इसलिए दंपति को असाधारण परिस्थितियों में सरोगेसी की अनुमति देने के लिए कर्नाटक हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा, जिसे अब मंजूर कर लिया गया है। कर्नाटक हाई कोर्ट ने युगल की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा, "सभी प्यार मातृत्व के साथ शुरू और समाप्त होते हैं, जिसके द्वारा एक महिला भगवान की भूमिका निभाती है।"
जस्टिस एम. नागप्रसन्ना ने इस तरह के असाधारण मामलों पर विचार करने के लिए एक "ट्रिपल टेस्ट" रखा- एक ऐसा परीक्षण जिसमें सरोगेसी बोर्ड को जोड़ों के "आनुवंशिक, शारीरिक और आर्थिक" मानदंडों पर विचार करने की आवश्यकता होती है ताकि यह निर्धारित किया जा सके की क्या कपल बच्चा पैदा करने के लिए फिट हैं।
यह उल्लेखनीय है की कर्नाटक उच्च न्यायालय ने विभिन्न कारकों पर विचार करने के लिए चुना और "ट्रिपल टेस्ट" पास करने के आधार पर युगल की सरोगेसी याचिका को मंजूर कर लिया। यह देखते हुए की पिता राज्य सरोगेसी बोर्ड द्वारा निर्धारित आयु सीमा से केवल दो वर्ष बड़ा है, याचिका को खारिज करना अनुचित होगा। साथ ही मां की 45 साल की उम्र को भी ध्यान में रखा गया है। साथ ही, ऐसा लगता है की कपल के पास उनके आसपास एक अच्छी सहायता प्रणाली है।
यह महत्वपूर्ण है की कर्नाटक हाई कोर्ट ने यह निर्धारित करने के लिए "ट्रिपल टेस्ट" की जाँच की है कि क्या दंपति वास्तव में एक बच्चे की परवरिश कर सकते हैं। क्योंकी पिता, जो की सरोगेट पिता भी है, 57 वर्ष का है, इसलिए शुक्राणु के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना आवश्यक है ताकि बच्चा किसी विकार के साथ पैदा न हो।
बच्चे की देखभाल करने के लिए दंपति के पास "शारीरिक क्षमता" भी होनी चाहिए। जैसा की अदालत ने कहा, यह अनिवार्य नहीं है की बच्चे को हर समय साथ में ले जाया जाए; यह सुनिश्चित करना आवश्यक है की एक शिशु की देखभाल करने के लिए दंपति शारीरिक रूप से स्वस्थ हों।
कर्नाटक हाई कोर्ट का निर्णय आता है क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय सरोगेसी अधिनियम को और अधिक व्यावहारिक बनाने के लिए "संशोधन" करने पर विचार करता है। हाईकोर्ट ने इस अनिवार्य आवश्यकता पर भी सवाल उठाया कि सरोगेट मां का आनुवंशिक रूप से जोड़े से संबंध होना चाहिए। जस्टिस नागप्रसन्ना ने कहा, "यह परोपकारिता और तर्क दोनों को हरा देता है।"
यह भी ध्यान दिया गया की अधिनियम की संवैधानिकता सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित थी, लेकिन अदालत ने सरोगेसी बोर्ड को पिता की बढ़ती उम्र को देखते हुए युगल के आवेदन में तेजी लाने का निर्देश दिया। इस मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला बेहद सराहनीय है और भविष्य के लिए आशान्वित लगता है।