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फैसला तो किया पर जाएंगे कैसे?
कोई बस या ट्रेन की जानकारी ना होने की वजह से रामू ने पैदल जाने का निर्णय लिया। रामू ने मेकशिफ्ट कार्ट, जंगल की लकड़ियों और डंडियों से बनाया और अपने 2 साल की बच्ची और 8 महीने की गर्भवती पत्नी को उसपर बैठा के चलता गया।
एनडीटीवी न्यूज़ से बात करते हुए रामू कहते हैं " पहले मैंने अपनी बच्ची को गोद मे लेकर चलने का सोचा था पर वो काफी मुश्किल था इसलिए मैंने रास्ते मे पड़े इस जंगल मे ये कार्ट बनाया और अपनी बच्ची औऱ गर्भवती पत्नी को उसपे बैठा के अपना सफर आगे बढ़ाया।"
रामू ने अपना सफर खत्म किया. रामू मंगलवार को महाराष्ट्र से होते हुए अपने गांव बालाघाट पहुंच गये।
एडमिनिस्ट्रेशन ने क्या क्या किया?
पोलिस टीम जिसका नेतृत्व सब डिविशनल अफसर नितेश भारद्वाज कर रहे थे उन्होंने रामू और उनके परिवार को खाना और बिस्किट्स दिए। उन्होंने रामू की 2 साल की बच्ची को नए स्लिपर्स भी दिए।
इसके बाद पुलिस ने गांव में जाने से पहले पूरी फैमिली का मेडिकल चेकअप कराया। बालाघाट तक जाने के लिए माइग्रेंट मज़दूरों के लिए बस की सुविधा शुरू की गई और सब को ये सलाह दी जारही है कि वो 14 दिन तक होम क्वारंटीन का पालन करे ताकि किसी को भी कोरोना ना फैले।
माइग्रेंट मज़दूरों की व्यथा
लॉक डाउन की वजह से मज़दूरों को इनकम नहीं मिल रही है और शहरी इलाकों में रहना उनके लिए मुश्किल होगया है। वो अपने गांव वापस लौटना चाहते हैं पर ट्रांसपोर्ट सुविधा की जानकारी ना होने की वजह से और कई जगह ट्रांसपोर्ट ना होने की वजह से वो पैदल अपना सफर कर रहे हैं।
रामू की कहानी ढेर सारी दिल तोड़ देने वाली कहानियों में से एक है। रामू का वीडियो वायरल होने की वजह से उसे कई सुविधाएं मिली पर अभी भी कई लोग हैं जिनको सुविधायें नही मिली है।