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कॉर्नेलिया सोराबजी : भारत की पहली महिला लॉयर के बारे में जानें

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Swati Bundela
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कॉर्नेलिया सोराबजी भारत की पहली महिला लॉयर थीं, जिन्होंने कई स्टीरियोटाइप्स को तोड़ा। वह विदेश में पढ़ाई करने वाली पहली इंडियन सिटीजन भी थीं, बॉम्बे यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में लॉ की पढ़ाई करने वाली पहली महिला थीं। कोर्नेलिया ने वह किया जो उस टाइम की किसी भी महिला ने अपने समय में भी नहीं सोचा था, उन्होंने भारत और ब्रिटेन में लॉ की प्रैक्टिस करने वाली पहली इंडियन फीमेल बनकर सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे।

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बैकग्राउंड



नवंबर 1866 में नासिक में, कोर्नेलिया का जन्म एक धनी पारसी फॅमिली में हुआ था। उनके पिता एक मिशनरी मैन थे और उनकी माँ सोशल वर्क में अपने योगदान के लिए जानी जाती थीं। उनका करियर उनके माता-पिता से इन्फ्लुएंस्ड और इंस्पायर्ड था। कॉर्नेलिया और उनके पांच भाई-बहनों ने अपना बचपन बेल्जियम में बिताया। उनकी रियल जर्नी होम-स्कूल्ड होने के टाइम पे स्टार्ट हुई ।

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उन्होंने भारत और ब्रिटेन में लॉ की प्रैक्टिस करने वाली पहली इंडियन फीमेल बनकर सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे।



उनकी ऑक्सफोर्ड तक की जर्नी

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स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने लिटरेचर को पढ़ना शुरू किया और डेक्कन कॉलेज, पूना से एक साल में पांच साल का कोर्स पूरा किया। परीक्षाओं में टॉप करने के बाद भी, उन्हें स्कॉलरशिप नहीं मिली क्योंकि वो एक महिला थी। ऑक्सफोर्ड जाने का उनका रास्ता मुश्किलों से भरा था। जब उन्हें स्कॉलरशिप नहीं मिली, तब पूना और बॉम्बे की कुछ मशहूर इंग्लिश महिलाओं ने उनके ऑक्सफ़ोर्ड भेजने के लिए फंड रेज किया। आखिर में, 1889 में उन्होंने सोमरविल कॉलेज में एडमिशन ले लिया।

1902 से 1922 तक, उन्होंने भारत भर में 600 से अधिक महिलाओं और नाबालिग लड़कियों को असिस्ट किया। जब 1920 में लंदन बार ने महिलाओं को कानून की प्रैक्टिस करने की आज्ञा दी तब वो इंग्लैंड जाकर अपनी डिग्री लेकर आयी । फिर वह कलकत्ता हाई कोर्ट में एक बैरिस्टर बन गईं और कानून प्रैक्टिस करने वाली पहली महिला बनीं।

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उन्होंने अपना सपना कैसे पूरा किया



ऑक्सफोर्ड में, वह लॉ की पढाई करने के लिए चली गई। 1892 में कार्नेलिया बैचलर ऑफ सिविल लॉ (बीसीएल) परीक्षा पास करने वाली पहली महिला बनीं। हालांकि कॉलेज ने उन्हें डिग्री देने से मना कर दिया। क्यूंकि उस टाइम महिलाओं को लॉ के लिए रजिस्टर करना और उसे प्रैक्टिस करना अल्लॉउड नहीं था । इंडिया आने के बाद उन्होंने 'पुरदहनाशीनस ’ के लिए सोशल और एडवाइजरी वर्क करना शुरू किया क्यूंकि उन्हें बाहरी दुनिया से कम्यूनिकेट करना मना था। उन्होंने अपनी तरफ से उनके लिए petitions भी फाइल करें।
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अपने सपने फॉलो करना उनके लिए आसान नहीं था, लेकिन अंत में उन्होंने स्टीरियोटाइप को तोड़ा और अपने पैशन में भी सफल रही। 1902 से 1922 तक, उन्होंने भारत भर में 600 से अधिक महिलाओं और नाबालिग लड़कियों को असिस्ट किया। जब 1920 में लंदन बार ने महिलाओं को कानून की प्रैक्टिस करने की आज्ञा दी तब वो इंग्लैंड जाकर अपनी डिग्री लेकर आयी । फिर वह कलकत्ता हाई कोर्ट में एक बैरिस्टर बन गईं और कानून प्रैक्टिस करने वाली पहली महिला बनीं।

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उपलब्धियां



बाद में, उन्होंने अपने अनुभव पे एक बुक लिखी जिसका नाम था "बिटवीन द ट्वाईलाइट्स'। 2012 में, लिंकन इन, लंदन हाई कोर्ट काम्प्लेक्स में रेस्पेक्ट के लिए उनकी एक ब्रोंज स्टेचू को बनाया गया। 15 नवंबर, 2017 को उनके 151 जन्मदिन मनाने के लिए गूगल डूडल भी बनाया गया था।।



(यह आर्टिकल महिमा द्वारा लिखा गया है)
इंस्पिरेशन कॉर्नेलिया सोराबजी
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