कल 28 जुलाई 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने यह स्टेटमेंट दी की एक मां को बच्चे का नेचुरल गार्डियन होने के नाते उसके बायोलॉजिकल पिता की मौत के बाद बच्चे का सरनेम तय करने का पूरा अधिकार है।
न्यायाधीश दिनेश माहेश्वरी और कृष्णा मुरारी ने भी यह कहा कि बच्चे की नेचुरल गार्डियन होने के नाते एक मां को बच्चे का सरनेम तय करने का अधिकार है और बच्चे को गोद देने का फैसला भी उसी का होगा।
कैसे मां को अपने बच्चे को नए परिवार में शामिल करने से रोक सकते है
कोर्ट ने यह भी कहा कि अपने पहले पति की मृत्यु के बाद मां को कानूनी प्रतिबंध अपने बच्चे को अपने नए परिवार और दूसरी शादी मैं पूरी तरह से शामिल करने से रोकते हैं। लेकिन हम यह देखने में अक्षम हैं।
एक सरनेम वह नाम होता है जो कोई व्यक्ति अपने परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ साझा करता है। यह परिवार द्वारा बच्चे को दिए जाने वाले नाम से अलग है। सरनेम किसी व्यक्ति के कुल, वंश का प्रतीक नहीं होता है और इससे किसी के अतीत, संस्कृति या परिवार और वंश का द्योतक नहीं समझना चाहिए।
सरनेम का किरदार बच्चे को यह महसूस कर आना होता है कि वह अपने एक निश्चित एनवायरमेंट में है जहां वह अपने परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ एक सरनेम शेयर करता है।
मां का या बाप का सरनेम
24 जनवरी 2014 को आंध्र प्रदेश के हाई कोर्ट में एक अपील को चैलेंज करती हुई जजमेंट पास की गई थी। यह एक ऐसा विवाद था जिसमें एक महिला और उसके सास-ससुर बच्चे को अपना सरनेम देने के लिए लड़ रहे थे।
इस विवाद पर फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने मां के पक्ष में बयान दिया था और कहा एक मा को बच्चे का सरनेम चुनने का अधिकार है। क्योंकि बच्चे की पहचान बताने में एक नाम बहुत अहम किरदार निभाता है। अगर बच्चे और उसके परिवार के सरनेम में अंतर होगा तो यह उसे हर वक्त याद दिलाएगा कि उसे गोद लिया गया है और उसके दिमाग में उसके और उसके पेरेंट्स की रिलेशनशिप से जुड़े फिजूल सवाल को घर देगा।
इसलिए सुप्रीम कोर्ट को इसमें कुछ भी गलत नजर नहीं आता है कि एक मां दोबारा शादी करने के बाद अपने बच्चे को अपने नए पति का सरनेम दे और उसे अपने पति को गोद दे।