मंगलसूत्र ज़रूरी या पितृसत्ता की जकड़न? पुणे कोर्ट के जज के बयान पर विवाद

क्या शादीशुदा पहचान बनाए रखना सिर्फ महिलाओं की ज़िम्मेदारी है? पुणे कोर्ट के जज के विवादित बयान ने मंगलसूत्र और पितृसत्ता को लेकर बहस छेड़ दी। जानिए पूरी खबर।

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Vaishali Garg
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Indian village women

हाल ही में पुणे के एक जिला अदालत में एक जज द्वारा दिए गए बयान ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी। एक महिला वकील ने लिंक्डइन पर साझा किया कि जज ने एक महिला से पूछा "अगर आप शादीशुदा महिला की तरह व्यवहार नहीं करेंगी, तो आपके पति आप में दिलचस्पी क्यों लेंगे?"

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क्या मंगलसूत्र ज़रूरी है? पुणे कोर्ट के जज के बयान पर बवाल

क्या मंगलसूत्र पहनना क़ानूनी रूप से अनिवार्य है?

दक्षिण एशिया में विवाहित महिलाओं के लिए मंगलसूत्र, बिंदी, चूड़ी, नथ और सिंदूर जैसी चीज़ों को शादीशुदा होने का प्रतीक माना जाता है। हालांकि, इन प्रतीकों का सांस्कृतिक महत्व होने के बावजूद, कई बार यह महिलाओं के लिए एक अनिवार्यता बना दिया जाता है।

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वकील अंकुर आर. जहागीरदार ने दावा किया कि एक पारिवारिक विवाद के दौरान अदालत में मौजूद महिला को जज ने यह सवाल किया। इस मामले में महिला और उसके पति के बीच घरेलू हिंसा का मामला था और दोनों समझौते के लिए अदालत पहुंचे थे।

"पुरुष ज्यादा लचीले होते हैं"  जज का एक और विवादित बयान

जहागीरदार ने एक और घटना का ज़िक्र करते हुए बताया कि एक अन्य मामले में, जज ने कहा "अगर कोई महिला अच्छा कमा रही है, तो वह हमेशा अपने से ज्यादा कमाने वाले पुरुष को ही पति बनाएगी। लेकिन एक अमीर आदमी किसी गरीब महिला से भी शादी कर सकता है। पुरुष ज्यादा लचीले होते हैं, महिलाओं को इतना जिद्दी नहीं होना चाहिए।"

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उन्होंने यह भी बताया कि जज का रवैया इतना कठोर और अपमानजनक था कि पीड़ित महिला अदालत में रो पड़ी।

क्या मंगलसूत्र न पहनना "मानसिक क्रूरता" है?

यह पहली बार नहीं है जब भारतीय न्यायपालिका ने मंगलसूत्र को इतनी गंभीरता से लिया हो। जुलाई 2022 में, मद्रास हाईकोर्ट ने एक केस में कहा कि मंगलसूत्र उतारना "मानसिक क्रूरता का उच्चतम स्तर" हो सकता है।

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इस मामले में, पति ने तलाक की याचिका दायर की थी और कोर्ट ने फैसला सुनाया कि पत्नी द्वारा मंगलसूत्र उतारना यह दर्शाता है कि वह इस शादी को स्वीकार नहीं कर रही है। हालांकि, पत्नी ने तर्क दिया कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 के तहत मंगलसूत्र पहनना अनिवार्य नहीं है।

क्या शादीशुदा पहचान केवल महिलाओं की ज़िम्मेदारी है?

इतिहासकार उषा बालकृष्णन के अनुसार, प्राचीन भारतीय ग्रंथों में कहीं भी मंगलसूत्र या शादीशुदा होने के किसी विशेष आभूषण का उल्लेख नहीं मिलता। हालांकि, चौथी या पांचवीं शताब्दी ईस्वी में "पवित्र धागा" पहनने की प्रथा शुरू हुई थी।

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समय के साथ, इस धागे को मंगलसूत्र के रूप में बदला गया, ताकि महिलाओं की शादीशुदा पहचान को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया जा सके। लेकिन सवाल यह उठता है – क्या यह ज़रूरी है कि शादीशुदा पहचान को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी सिर्फ महिलाओं की हो?

मंगलसूत्र और पितृसत्ता का सवाल

बहुत सी महिलाएं इस परंपरा को खुशी से निभाती हैं, लेकिन जब यह अनिवार्यता या दबाव बन जाता है, तो यह एक पितृसत्तात्मक व्यवस्था को दर्शाता है।

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आज भी समाज में कई पुरुष शादी के प्रतीक के रूप में कोई आभूषण नहीं पहनते, लेकिन महिलाओं के लिए यह एक "ज़रूरी" पहचान बना दिया गया है।

क्या महिला के मंगलसूत्र पहनने या न पहनने से उसके रिश्ते की गहराई तय होती है? क्या एक गहना ही शादी की नींव है, या फिर आपसी सम्मान और प्रेम ज़्यादा महत्वपूर्ण है?

आपका इस विषय पर क्या विचार है? क्या महिलाओं को अपने फैसले खुद लेने की आज़ादी होनी चाहिए, या फिर उन्हें सामाजिक मानकों का पालन करना ही होगा?