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Saeeda Bano
Saeeda Bano: भारत की पहली महिला रेडियो न्यूज़रीडर, सईदा बानो का नाम भारतीय मीडिया इतिहास में हमेशा सम्मान से लिया जाएगा। उनका जीवन न केवल व्यक्तिगत संघर्षों की मिसाल है, बल्कि यह स्वतंत्रता संग्राम और नारी सशक्तिकरण के प्रति उनके योगदान को भी दर्शाता है। 13 अगस्त 1947 को सईदा बानो ने अखिल भारतीय रेडियो (AIR) पर उर्दू समाचार वाचन के साथ भारतीय मीडिया के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा। आइए, जानते हैं उनकी प्रेरणादायक यात्रा के बारे में।
भारत की पहली महिला रेडियो न्यूज़रीडर की प्रेरणादायक कहानी
सईदा बानो: एक साहसी महिला का संघर्ष
सईदा बानो का जन्म भोपाल में हुआ था और उनकी शिक्षा लखनऊ में हुई। बचपन से ही वह खेलों की ओर अधिक आकर्षित थीं, लेकिन समाज के तयशुदा मानदंडों ने उनके सपनों पर अंकुश लगाया। 1933 में, केवल 19 साल की उम्र में उनका विवाह लखनऊ के एक संपन्न न्यायधीश से कर दिया गया, जो उनकी इच्छा के खिलाफ था। इस विवाह के लिए सईदा ने चार पन्नों का पत्र भी लिखा था, जिसमें उन्होंने इस प्रस्ताव का विरोध किया था, लेकिन उसकी आवाज़ को अनसुना कर दिया गया।
उनकी यादों में, सईदा बानो ने इस दर्दनाक अनुभव का जिक्र किया है, जब उन्होंने लिखा, "फिर वज़ा-ए-एहतियात से... रुकने लगा है दम"। यह उस समय की मानसिक स्थिति को व्यक्त करता है, जब वह सामाजिक और पारिवारिक बंधनों में घिरी हुई थीं।
अपनी राह खुद तय की
सईदा बानो ने अपनी शादी को खत्म किया और अपने दोनों बेटों के साथ दिल्ली चली आईं। यहाँ उन्होंने एक नई शुरुआत की। 13 अगस्त 1947 को, जब भारत स्वतंत्रता के बाद नए अध्याय में प्रवेश कर रहा था, सईदा बानो ने अखिल भारतीय रेडियो पर उर्दू समाचार पढ़कर इतिहास रचा। इस उपलब्धि को "The Statesman" जैसे प्रमुख समाचार पत्र ने भी मान्यता दी थी।
उनकी आवाज़ की गहराई और प्रभावशाली शैली ने उन्हें और भी अवसर दिलाए, और वह "दिल्ली-सुनी" नामक पांच मिनट के प्रोग्राम की निर्माता बनीं। सईदा बानो के करियर की शुरुआत में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कई लोग उनकी सफलता को स्वीकार नहीं कर रहे थे और उन्हें पाकिस्तान जाने की सलाह दी जा रही थी। लेकिन सईदा बानो ने इन सभी चुनौतियों का डट कर सामना किया।
एक संघर्षशील महिला की विरासत
1965 में न्यूज़रीडर के रूप में सेवा निवृत्त होने के बाद, सईदा बानो ने AIR के उर्दू सेवा में प्रोड्यूसर के रूप में अपने काम को जारी रखा। उन्होंने 2001 तक कार्य किया, और उनका योगदान भारतीय मीडिया के इतिहास में अमिट रहेगा।
उनकी आत्मकथा, "Dagar Se Hat Kar" और उनकी पोती शहाना रज़ा द्वारा अनुवादित "Off the Beaten Track: The Story of My Unconventional Life", उनकी संघर्षों और साहस की कहानी को जीवित रखती है। सईदा बानो का जीवन यह साबित करता है कि जो महिलाएं परंपराओं से बाहर निकलने का साहस करती हैं, वे इतिहास को बदल सकती हैं।
सईदा बानो का प्रभाव
सईदा बानो का जीवन नारी शक्ति का प्रतीक है। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाली महिलाएं समाज में बदलाव ला सकती हैं। सईदा बानो ने न केवल रेडियो की दुनिया में अपनी जगह बनाई, बल्कि उन्होंने समाज के उन बंधनों को भी तोड़ा जो महिलाओं की सफलता के मार्ग में रुकावट डालते थे।
यह कहानी हर महिला के लिए प्रेरणा है, जो अपने सपनों को पूरा करने और समाज के तयशुदा रास्तों से हटकर अपनी पहचान बनाने की इच्छाशक्ति रखती है।