दिल्ली उच्च न्यायालय ने पुलिस को भारतीय जनता पार्टी के नेता शाहनवाज हुसैन के खिलाफ रेप के एक मामले में FIR दर्ज करने का आदेश दिया। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को तीन महीने में जांच पूरी करने का भी आदेश दिया।
जून 2018 में दिल्ली की रहने वाली एक महिला ने निचली अदालत में याचिका दायर कर शाहनवाज हुसैन के खिलाफ रेप का मामला दर्ज करने का अनुरोध किया था। उसने आरोप लगाया कि उसने उसे नशीला पदार्थ दिया और छतरपुर के एक फार्म हाउस में उसके साथ बलात्कार किया और जान से मारने की धमकी दी। उसने आरोप लगाया कि हुसैन ने उसे एक फार्म हाउस पर बुलाया और उसे नशीला पदार्थ पिलाकर उसका रेप किया।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2018 की निचली अदालत के उस आदेश को बरकरार रखा जिसमें दिल्ली पुलिस को आरोपी के खिलाफ FIR दर्ज करने का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने एक आदेश में कहा, 'फॉरवर्ड की गई शिकायत की प्राप्ति पर एफआईआर दर्ज नहीं करने के लिए पुलिस के पास समझाने के लिए बहुत कुछ है।
शाहनवाज हुसैन रेप केस
जस्टिस आशा मेनन ने पुलिस द्वारा फाइल की गई स्टेटस रिपोर्ट को क्वोट करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता का बयान चार मौकों पर रिकॉर्ड किया गया है। हालांकि, इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि आरोपी हुसैन के खिलाफ FIR क्यों दर्ज नहीं की गई।
शाहनवाज हुसैन ने तर्क दिया कि अदालत ने FIR दर्ज करने का निर्देश देने के कारणों का खुलासा नहीं किया और दावा किया कि पुलिस द्वारा जांच ने महिला के मामले को "पूरी तरह से गलत" बताया। उन्होंने दावा किया कि वह रात 9:15 बजे के बाद अपने आवास से नहीं निकले थे और रात 10:30 बजे छतरपुर में नहीं हो सकते थे जैसा कि महिला ने आरोप लगाया था।
पुलिस ने रिपोर्ट में निचली अदालत को सूचित किया कि शिकायतकर्ता के आरोपों की पुष्टि नहीं हुई है। आरोपी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा पेश हुए और निचली अदालत को बताया कि FIR दर्ज करने का निर्देश दिए जाने के बावजूद पुलिस ने हुसैन को क्लीन चिट दे दी है। उन्होंने कहा कि अदालत में शिकायत पर पुलिस के जवाब को रिपोर्ट रद्द करने के रूप में माना जाना चाहिए था।
जस्टिस मेनन ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि पुलिस के जवाब को एक रिपोर्ट के रूप में माना जाना चाहिए था और इस तरह की जांच में निष्कर्ष पर आने से पहले एक फिर दर्ज की जानी चाहिए।