/hindi/media/media_files/nGO62TUxLNOQmlTBThk9.png)
Representative Image
स्पेन के मुरसिया की एक अदालत ने ऐतिहासिक निर्णय लिया है कि एकल माताओं को भी जोड़ों के समान 32 सप्ताह का पैरेन्टल लीव मिलेगा। पहले एकल माताओं को केवल 16 सप्ताह का मातृत्व अवकाश दिया जाता था। इस फैसले ने समाज में बच्चों के अधिकारों और परिवारों के विभिन्न रूपों के प्रति समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है।
स्पेन कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: सिंगल मदर्स को मिले कपल्स जैसे पैरेन्टल लीव
सिंगल मदर्स को समान अधिकार
मुरसिया कोर्ट ने इस मुद्दे पर फैसला सुनाया कि एकल महिलाओं को वही पैरेन्टल लीव मिलेगा जो किसी जोड़े को मिलता है, यानी 32 सप्ताह। कोर्ट ने यह फैसला तब लिया जब एक महिला ने, जिसने जनवरी 2022 में एक बच्ची को जन्म दिया था, यह तर्क दिया कि उसकी बेटी को अन्य बच्चों के समान पैरेन्टल देखभाल मिलनी चाहिए। महिला, जिसे कोर्ट दस्तावेजों में SPM के नाम से पहचाना गया, ने पहले सामाजिक सेवाओं और अदालतों से मदद मांगी थी, लेकिन उनकी मांग को ठुकरा दिया गया था।
क्यों जरूरी है समान पैरेन्टल लीव?
इस मामले में मुरसिया कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि नवजात बच्चे की देखभाल की अवधि और तीव्रता सभी परिवारों के लिए समान होती है, चाहे वह परिवार दो माता-पिता का हो या केवल एक। कोर्ट ने स्पेन की संवैधानिक अदालत के उस फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें नवंबर 2024 में यह कहा गया था कि एकल माता-पिता वाले परिवारों के बच्चों के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता।
महिला के वकील, मिगुएल एंजल फ्रुक्टुओसो ने कहा कि अभी यह देखना बाकी है कि कोर्ट इस फैसले को कैसे लागू करता है, लेकिन यह संदेश स्पष्ट है कि बच्चों के अधिकारों की रक्षा में किसी भी प्रकार की भेदभाव की कोई जगह नहीं होनी चाहिए।
सिंगल मदर्स की कठिनाइयाँ और अधिकार
SPM ने इस केस को लड़ा क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि उसकी बेटी को अन्य बच्चों से अलग तरीके से देखा जाए। उसने कहा कि यह समय वह कभी नहीं लौटा सकती, जब उसे और उसकी बेटी को आवश्यक देखभाल की आवश्यकता थी। वह इस फैसले को एक जीत के रूप में देखती है, लेकिन यह भी कहती है कि इस समय की हानि की कोई भरपाई नहीं की जा सकती।
इस फैसले ने यह भी साबित कर दिया है कि समाज में बच्चों के अधिकारों और समानता के लिए बदलाव की जरूरत है, और यह सिर्फ एकल माताओं के लिए नहीं, बल्कि सभी बच्चों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करना जरूरी है।
मुरसिया कोर्ट के इस फैसले ने यह साबित कर दिया है कि परिवारों के विभिन्न मॉडल्स को समान अधिकार मिलना चाहिए। जब तक समाज में ऐसी सोच नहीं आती, तब तक बच्चों और माताओं के अधिकारों का सही तरीके से संरक्षण नहीं हो सकता। इस फैसले से यह संदेश भी जाता है कि हमें बच्चों को एक समान अवसर देने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए, चाहे वह किसी भी परिवार से आएं।