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स्टूडेंट-टीचर का भावुक रियूनियन : सोशल मीडिया पर छाया दिल छू लेने वाला किस्सा

सोशल मीडिया पर इन दिनों एक शिक्षिका, रेवती (जिन्हें रेव्स के नाम से भी जाना जाता है) का दिल छू लेने वाला पोस्ट खूब वायरल हो रहा है। इस पोस्ट में वह अपनी एक पूर्व छात्रा आलिया से 13 साल बाद हुई मुलाकात का किस्सा शेयर कर रही हैं।

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Vaishali Garg
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Teacher Reunited with Former Student

A Decade Later: Teacher Reunited with Former Student Now Following in Her Footsteps : सोशल मीडिया पर इन दिनों एक शिक्षिका, रेवती (जिन्हें रेव्स के नाम से भी जाना जाता है) का दिल छू लेने वाला पोस्ट खूब वायरल हो रहा है। इस पोस्ट में वह अपनी एक पूर्व छात्रा आलिया से 13 साल बाद हुई मुलाकात का किस्सा शेयर कर रही हैं। खास बात ये है कि आलिया अब खुद भी एक शिक्षिका बन चुकी हैं। 

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स्टूडेंट-टीचर का भावुक पुनर्मिलन: सोशल मीडिया पर छाया दिल छू लेने वाला किस्सा

टीच फॉर इंडिया से खास रिश्ता

अहमदाबाद की रहने वालीं रेवती कभी टीच फॉर इंडिया नामक संस्था से जुड़ी थीं। सोशल मीडिया पर शेयर की गईं दो तस्वीरों में वह अपनी छात्रा आलिया को गले लगाती नजर आ रही हैं। पहली तस्वीर 13 साल पुरानी है, जब आलिया उनकी कक्षा में पढ़ती थीं और दूसरी हालिया मुलाकात की है। रेव्स ने पोस्ट में इस खास रिश्ते के बारे में विस्तार से लिखा है। 

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शरारती छात्रा से प्रेरणादायक शिक्षिका तक का सफर

रेव्स बताती हैं कि आलिया कभी उनकी कक्षा की सबसे शरारती छात्राओं में से एक मानी जाती थीं। स्कूल के दूसरे शिक्षक उन्हें लेकर हमेशा आगाह करते थे। रेव्स कहती हैं, "वह आग सी तेज थीं। वह अपने तरीके से चलना पसंद करती थीं। उन्हें वही करना पसंद था, जो वह करना चाहती थीं, जब वह करना चाहती थीं।"

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हालांकि, रेव्स ये भी कहती हैं कि आलिया बेहद तेज थीं, लेकिन किसी भी चीज के लिए धैर्य नहीं रख पाती थीं। यहां तक कि परीक्षा के तीन घंटे बैठकर जो सीखा है, उसे लिख पाने में भी उन्हें दिक्कत होती थी। रेव्स कहती हैं, "एक शिक्षिका के रूप में मैंने हमेशा उनके बारे में चिंता की। मैं सोचती थी कि क्या वह अनुशासित हो पाएंगी? क्या उन्हें शिक्षा में कोई लक्ष्य मिलेगा? क्या वह पढ़ाई पूरी कर पाएंगी और अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए कुछ कर पाएंगी?"

शिक्षक का मार्गदर्शन और छात्रा की कामयाबी

टीच फॉर इंडिया के साथ दो साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद, रेव्स को एक पूर्व सहकर्मी का पत्र मिला। यह पत्र आलिया द्वारा लिखा गया एक हस्तलिखित निबंध था, जिसका विषय था - 'आप किस व्यक्ति की सबसे अधिक प्रशंसा करते हैं?' इस निबंध में आलिया ने रेव्स के जीवन पर उनके प्रभाव के बारे में विस्तार से लिखा था और अपने शिक्षक के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त किया था। रेव्स कहती हैं, "मुझे याद है इसे पढ़ते समय मैं भावुक हो उठी थी।"

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हालांकि, रेव्स को अब भी चिंता थी कि क्या आलिया अपनी शिक्षा जारी रखेगी और जीवन में कुछ हासिल कर पाएगी? वे बताती हैं कि महामारी के दौरान जब आलिया कॉलेज में पढ़ रही थीं, तब भी वे संपर्क में रहीं। उस दौरान आलिया इस बात को लेकर असमंजस में थीं कि उन्हें आगे क्या करना चाहिए और कौन सी डिग्री लेनी चाहिए। रेव्स ने ये भी लिखा है कि महामारी के दौरान आलिया के परिवार को भी कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था।

आलिया की माँ अकेली कमाने वाली थीं, जो हर दिन सुबह 4 बजे से रात 9 बजे तक मछली बेचने का काम करती थीं। उनके ऊपर अपने दो छोटे भाई-बहनों की देखभाल करने और घर चलाने में योगदान देने की भी जिम्मेदारी थी। रेव्स लिखती हैं, "इसके अलावा, उन्हें एक गैर-जिम्मेदार पिता के घर रहने की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा।"

स्टूडेंट-टीचर का रिश्ता और जीवन का पाठ

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आज 2024 में, आलिया मुंबई के एक प्रतिष्ठित स्कूल में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को पढ़ाती हैं। रेव्स ने जब उनसे पूछा कि उन्होंने शिक्षिका बनने का फैसला क्यों किया, तो उन्होंने कहा, "दीदी, मैं हमेशा आपके जैसी शिक्षिका बनना चाहती थी। आपने मुझ पर विश्वास किया और मुझे कभी भी परेशानी का सबब नहीं माना।"

शिक्षक का प्रभाव

हम अक्सर शिक्षकों के छात्रों पर प्रभाव के बारे में सुनते हैं, लेकिन छात्रों के अपने शिक्षकों के जीवन पर प्रभाव की कहानियां कम ही सुनने को मिलती हैं। रेव्स कहती हैं, "जब मैंने 2011 में शिक्षिका बनने का फैसला किया था, तो मैंने नहीं सोचा था कि यह मेरे जीवन को कितने अद्भुत, गहरे और सार्थक तरीकों से बदल देगा।"

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वह आगे कहती हैं, "मैं 24 साल की थी और मुझे नहीं पता था कि मैं जीवन में क्या करना चाहती हूँ। यह सिर्फ एक अच्छा काम करने का विचार था। अगर मुझे अपने जीवन पर सबसे गहरा और व्यापक प्रभाव डालने वाली एक चीज के बारे में सोचना है, तो वह टीच फॉर इंडिया फैलोशिप और शिक्षिका होना होगा।"

रेव्स कहती हैं कि वंचित बच्चों की सकारात्मकता ने उनके जीवन को बदल दिया।

वह आगे कहती हैं, "मुंबई के एक छोटे से झुग्गी-झोपड़ी वाले स्कूल में 20 बच्चों को पढ़ाने के 2 साल का अनुभव। ऐसे बच्चे जिन पर ज्यादातर लोगों ने हार मान ली थी। उन बच्चों से, जिन बच्चों को मैंने पढ़ाया, उनके माता-पिता से मुझे जो गहरा प्यार, करुणा और क्षमा मिली, और जिस तरह से इसने मुझे एक व्यक्ति के रूप में मौलिक रूप से बदल दिया, उसका वर्णन करना मुश्किल है।"

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