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उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र का वायरल वीडियो, स्कूल जाने के लिए रस्सी ट्रॉली का सहारा

जानिए उत्तराखंड के स्कूली बच्चों की रोजमर्रा की जिंदगी, जो नदी पार करने के लिए रस्सी की ट्रॉली का इस्तेमाल करते हैं। वायरल वीडियो ने ग्रामीण इलाकों में बुनियादी ढांचे की कमी और विकास की धीमी गति पर बहस छेड़ दी है।

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Vaishali Garg
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Students Brave Rope Trolleys To Reach School In Uttarakhand

उत्तराखंड के मुनस्यारी के पास कुमाऊं क्षेत्र से एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जो दूरदराज के क्षेत्रों में बच्चों के संघर्षपूर्ण जीवन को उजागर करता है। वीडियो में दो बच्चियां एक पुरानी ट्रॉली को नदी पार कराने के लिए रस्सी खींचती नजर आती हैं। हिमालय की खूबसूरत वादियों के बीच ये बच्चियां रोज़ाना इसी जोखिम भरे सफर के जरिए अपने स्कूल पहुंचती हैं।

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उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र का वायरल वीडियो, स्कूल जाने के लिए रस्सी ट्रॉली का सहारा

क्या यह है विकास?

वीडियो में एक व्यक्ति की आवाज सुनाई देती है, जो आश्चर्य प्रकट करते हुए कहता है, "2025 है ये।" इसके बाद वह सवाल करता है, "ऐसे होगा विकास?" यह वीडियो ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे की कमी और वहां के निवासियों की समस्याओं को लेकर बहस छेड़ चुका है।

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पहले भी सामने आई हैं ऐसी कहानियां

कुमाऊं की यह स्थिति उत्तराखंड के अन्य इलाकों की कहानी भी बयां करती है। अगस्त 2024 में, टिहरी गढ़वाल के सोंधार गांव के 18 वर्षीय सौरभ पंवार ने सुर्खियां बटोरीं, जब यह पता चला कि वह पिछले कई सालों से एक अस्थायी रस्सी ट्रॉली के जरिए सोन नदी पार करते हैं। यह ट्रॉली 10 साल पहले एक अस्थायी उपाय के रूप में लगाई गई थी, लेकिन अब तक सैकड़ों ग्रामीण इसका इस्तेमाल करने को मजबूर हैं।

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सौरभ ने बताया, “हम इसी ट्रॉली से स्कूल जाते थे, और अब मैं इसी से कॉलेज जाता हूं।” सोंधार गांव के आसपास के लगभग 70 गांवों के लोग, जो मालदेवता से 10-17 किलोमीटर दूर हैं, इसी ट्रॉली पर निर्भर हैं। हालांकि, ट्रॉली की स्थिति अब खराब हो चुकी है, और हाल ही में हुई भारी बारिश ने इसे और खतरनाक बना दिया है।

खतरों से भरा सफर

सौरभ बताते हैं, “यह बहुत जोखिम भरा है। पानी ट्रॉली के ठीक नीचे होता है और यह कभी भी पलट सकती है।” बारिश के मौसम में स्थिति और भी खतरनाक हो जाती है, जब पानी का स्तर बढ़ जाता है। इसके कारण कई बच्चों ने स्कूल जाना तक बंद कर दिया है।

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जब ट्रॉली का इस्तेमाल संभव नहीं होता, तो गांववालों को 15-20 किलोमीटर लंबा खतरनाक ट्रैक तय करना पड़ता है। बरसात के मौसम में यह रास्ता और भी मुश्किल हो जाता है। सड़कों के बह जाने और जंगली जानवरों के हमले का खतरा बना रहता है। ऐसे समय में बच्चों को वयस्कों के साथ यात्रा करनी पड़ती है।

क्या विकास अब भी सपना है?

यह स्थिति उत्तराखंड के दूरदराज के इलाकों में बुनियादी सुविधाओं की कमी पर सवाल खड़े करती है। क्या 2025 में भी बच्चों को शिक्षा हासिल करने के लिए अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ेगी? यह सरकार और समाज दोनों के लिए सोचने का समय है कि कैसे इन क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का विकास तेजी से किया जाए।

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आगे क्या किया जा सकता है?

  • इन इलाकों में पक्के पुलों का निर्माण।
  • सुरक्षित और सुलभ सड़क मार्ग।
  • मानसून में बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपाय। सरकार और समाज दोनों को इन समस्याओं का स्थायी समाधान ढूंढने के लिए कदम उठाने चाहिए।

अंत में सवाल यह है: क्या बच्चों के इस संघर्ष को अनदेखा कर दिया जाएगा, या हम इसे खत्म करने की दिशा में ठोस कदम उठाएंगे?

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