Supreme Court's Decision on Period Leave: भारतीय कार्यबल में महिलाओं के लिए पीरियड्स की छुट्टी (menstrual leave) का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में इस विषय पर एक याचिका खारिज कर दी, लेकिन साथ ही केंद्र सरकार को एक व्यापक नीति बनाने के लिए हितधारकों से परामर्श करने का निर्देश दिया।
पीरियड्स की छुट्टी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला: आगे क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट का रुख
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह मामला नीतिगत फैसला है और केंद्र और राज्य सरकारों के दायरे में आता है। उन्होंने कहा कि पीरियड्स की छुट्टी का मुद्दा अदालत के दखल का विषय नहीं है और केंद्र सरकार को इस पर कार्रवाई करनी चाहिए।
इसके अलावा, पीठ ने यह भी कहा कि पीरियड्स की छुट्टी महिलाओं के लिए फायदे से ज्यादा नुकसानदायक हो सकती है। अदालत ने याचिकाकर्ता से पूछा कि पीरियड्स की छुट्टी से कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी कैसे बढ़ेगी। पीठ ने कहा कि छुट्टी देने से उल्टा महिलाओं को कार्यबल से "दूर धकेला" जा सकता है।
अदालत ने यह भी कहा कि मई 2023 में महिला और बाल विकास मंत्रालय को इस विषय पर एक प्रस्ताव दिया गया था। चूंकि इस मसले में राज्य नीतियों के कई पहलू शामिल हैं, इसलिए पिछले आदेश के मद्देनजर अदालत के हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है। याचिकाकर्ता को महिला और बाल विकास मंत्रालय के सचिव के समक्ष जाने की अनुमति दी गई।
इतिहास में दोहराव
गौरतलब है कि फरवरी में भी सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह की एक जनहित याचिका खारिज कर दी थी। उस याचिका में सभी राज्यों को छात्राओं और कामकाजी महिलाओं को पीरियड्स की छुट्टी देने के नियम बनाने के लिए बाध्य करने की मांग की गई थी। अदालत ने इस याचिका को भी खारिज करने के लिए इसी तरह का तर्क दिया था।
याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि भारत में केवल दो राज्य सरकारों के पास ही पीरियड्स की छुट्टी से संबंधित नीतियां हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, "यदि आप नियोक्ताओं को महिलाओं को सवेतन पीरियड्स की छुट्टी देने के लिए बाध्य करते हैं, तो यह उनके व्यवसाय को प्रभावित कर सकता है या एक निराशाजनक कारक के रूप में काम कर सकता है, और वे बड़ी संख्या में महिला कर्मचारियों को लेने से बच सकते हैं।"
आगे की राह
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, यह देखना होगा कि केंद्र सरकार हितधारकों के साथ परामर्श कर इस जटिल मुद्दे पर कोई नीति बनाती है या नहीं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश से बहस को फिर से हवा मिली है और उम्मीद है कि कार्यस्थल पर महिला कर्मचारियों के स्वास्थ्य और कल्याण को ध्यान में रखते हुए कोई ठोस समाधान निकाला जाएगा।