वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत याचिकाकर्ता आयशत शिफा की ओर से पेश हुए थे। बुधवार को मामले पर कामत ने अपनी बात रखते हुए कहा कि उनकी याचिकाकर्ता स्कूल ड्रेस को पहनने के विरोध में नहीं है बल्कि वह स्कूल यूनिफॉर्म को हिजाब के साथ पहनने की मांग कर रही है। कामत ने कहा की यह अधिकार अनुच्छेद 19 के तहत आता है जो प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की आजादी देता है जिसमें कपड़े पहनने का अधिकार भी शामिल है।
इस पर न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि यदि अनुच्छेद 19 ने आपको अपनी पसंद से पोशाक पहनने का मौलिक अधिकार दिया है, ऐसे तोकपड़े नही पहनने का अधिकार भी अस्तित्व में आ जाता है। इस पर अधिवक्ता कामत ने कहा कि, "कोई भी स्कूल में कपड़े नही उतार रहा है। असल सवाल यह है कि क्या स्कूल ड्रेस में हिजाब पहनना अनुच्छेद 19 के तहत प्रतिबंधित किया जा सकता है?"
पहले की सुनवाई में न्यायमूर्ति गुप्ता ने टिप्पणी करते हुए सवाल किया था कि क्या अनुच्छेद 19 के तहत लड़कियों को उनकी पसंद के मुताबिक "मिडी, मिनी, स्कर्ट" पहनकर स्कूल में आने की अनुमति दी जा सकती है? जिस पर कामत ने कहा कि यहां स्कूल की ड्रेस पर सवाल नही किया जा रहा है अपितु बात यह है कि अनुच्छेद 19 के अंतर्गत राज्य हिजाब पर प्रतिबन्ध लगाकर छात्राओं को उनके पोशाक के अधिकार से वंचित कर रहा है।
बुधवार को सुनवाई के दौरान अधिवक्ता देवदत्त कामत ने इस मामले में अपनी दलील पेश करते हुए कहा कि हिजाब पहनने वाले छात्रों को स्कूल में प्रवेश करने से रोकना अनुच्छेद 19 का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि स्कूल में हिजाब पहनने से अनुच्छेद 25 का उल्लंघन नहीं होता है क्योंकि यह नागरिकों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक देता है।
बता दें कि कर्नाटक सरकार ने राज्य के स्कूल और कॉलेजों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस मामले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। इस मामले में सुनवाई गुरुवार 8 सितंबर को भी जारी रहेगी।