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Supreme Court On Single Woman's Petition For Surrogacy: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अविवाहित महिला की सरोगेसी के जरिए मां बनने की याचिका पर सुनवाई करते हुए एक विवादास्पद फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि विवाह की पवित्रता को बनाए रखना जरूरी है, पश्चिम के विपरीत, जहां विवाह के बाहर बच्चे पैदा करना सामान्य है।
अविवाहित महिला को सरोगेसी की इजाजत ना देकर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल
याचिकाकर्ता की मांग और कानून
- 44 वर्षीय अविवाहित महिला ने सरोगेसी के जरिए मां बनने की अनुमति मांगी।
- याचिकाकर्ता ने सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम की धारा 2(s) को भी चुनौती दी, जो अविवाहित महिलाओं को सरोगेसी का विकल्प लेने से रोकता है।
- वर्तमान कानून के अनुसार, केवल 35 से 45 वर्ष की आयु के बीच की विधवा या तलाकशुदा महिलाएं ही सरोगेसी का विकल्प चुन सकती हैं।
अदालत की राय और तर्क
- जस्टिस नागरत्ना ने कहा, "यहां परंपरागत रूप से विवाह के रिश्ते में ही मां बनना आदर्श माना जाता है। विवाह के बाहर मां बनना आम नहीं है। हम बच्चे के कल्याण को लेकर चिंतित हैं। क्या देश में विवाह की संस्था बची रहनी चाहिए या नहीं? हम पश्चिमी देशों की तरह नहीं हैं। विवाह की संस्था को संरक्षित करना होगा। आप हमें रूढ़िवादी कह सकते हैं, और हम इसे स्वीकार करते हैं।"
- अदालत ने महिला को शादी करने या गोद लेने पर विचार करने की सलाह दी।
- महिला के वकील ने कहा कि महिला शादी नहीं करना चाहती और लंबी प्रतीक्षा अवधि के कारण गोद लेने पर विचार नहीं कर सकती।
अदालत का जवाब और याचिका की आगे की स्थिति
- अदालत ने कहा, "आप जीवन में सब कुछ नहीं पा सकते। आपकी मुवक्किल ने अकेली रहना पसंद किया।"
- 44 साल की उम्र में बच्चे की परवरिश करना मुश्किल है।
- "हम समाज और विवाह की संस्था के बारे में भी चिंतित हैं। हम पश्चिम की तरह नहीं हैं, जहां कई बच्चे अपने माता-पिता के बारे में नहीं जानते। हम नहीं चाहते कि बच्चे बिना अपने माता-पिता को जाने इधर-उधर घूमें। विज्ञान उन्नत हुआ है, लेकिन सामाजिक मानदंड नहीं, और यह किसी अच्छे कारण के लिए है।"
- वकील ने इस प्रावधान को चुनौती दी और दावा किया कि यह कानून अविवाहित महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण है।
- अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया, लेकिन कहा कि वह इस याचिका पर अन्य कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के साथ सुनवाई करेगी।