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टिकट कलेक्टर से ओलंपिक पदक तक: स्वप्निल कुसाले की प्रेरणादायक यात्रा

स्वप्निल कुसाले की जीवन यात्रा एक सच्ची प्रेरणा है। एक साधारण टिकट कलेक्टर से ओलंपिक पदक तक की उनकी जद्दोजहद की कहानी जानें। उनके संघर्ष, लगन और सफलता की कहानी आपके दिल को छू लेगी।

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Vaishali Garg
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Swapnil Kusale'

Image Credit: thebridge

Paris Olympics 2024: स्वप्निल कुसाले की कहानी जज़्बे और लगन की एक अनूठी मिसाल है। एक साधारण रेलवे टिकट कलेक्टर से ओलंपिक पदक विजेता बनने तक का उनका सफ़र बेहद प्रेरणादायक है। आइए इस शानदार यात्रा पर एक नज़र डालते हैं।

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टिकट कलेक्टर से ओलंपिक पदक तक: स्वप्निल कुसाले की प्रेरणादायक यात्रा

पुणे से पेरिस तक

महाराष्ट्र के पुणे में 6 अगस्त, 1995 को जन्मे स्वप्निल कुसाले का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। एक कृषि परिवार से आने वाले स्वप्निल के पिता ने उन्हें 14 साल की उम्र में महाराष्ट्र सरकार के खेल कार्यक्रम ‘कृडा प्रबोधिनी’ में दाखिला दिलाया। शुरुआती कठिन शारीरिक प्रशिक्षण के बाद, स्वप्निल ने निशानेबाजी को अपना खेल चुना और चार साल बाद, उन्हें लक्ष्य स्पोर्ट्स में एक प्रायोजक मिला।

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शुरुआती सफलता और राष्ट्रीय पहचान

स्वप्निल ने 20 साल की उम्र में ही कुवैत में हुए 2015 एशियन शूटिंग चैंपियनशिप में 50 मीटर राइफल प्रोन इवेंट में स्वर्ण पदक जीतकर अपनी पहली महत्वपूर्ण सफलता हासिल की। अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए उन्होंने दिल्ली में 59वीं राष्ट्रीय शूटिंग चैंपियनशिप में गगन नारंग और चैल सिंह जैसे दिग्गज निशानेबाजों को पछाड़कर स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने तिरुवनंतपुरम में 61वीं नेशनल में भी 50 मीटर राइफल 3 पोजीशन इवेंट में स्वर्ण जीतकर अपनी सफलता को दोहराया।

स्वप्निल कुसाले की यात्रा पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान एमएस धोनी से मिलती-जुलती है, जिन्होंने भी अपने करियर की शुरुआत एक रेलवे टिकट कलेक्टर के रूप में की थी। वर्तमान में इसी पेशे में कार्यरत कुसाले, धोनी के शांत व्यवहार और लचीलेपन की प्रशंसा करते हैं। उन्होंने प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में कहा, "मेरे खेल के लिए भी धैर्य और शांति की आवश्यकता होती है, जैसी कि वह मैदान पर दिखाते हैं। मैं उनकी कहानी से इसलिए भी जुड़ता हूं क्योंकि मैं भी एक टिकट कलेक्टर हूं।"

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सरकारी सहयोग और प्रशिक्षण

पुणे के बालवाड़ी स्टेडियम में कुसाले के प्रशिक्षण को खेल मंत्रालय द्वारा टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (TOPS) के माध्यम से समर्थन मिला है। इस सहायता में गोला-बारूद की खरीद और एक निजी कोच की नियुक्ति शामिल है। इसके अलावा, कुसाले को TOPS से 17.58 लाख रुपये और ट्रेनिंग एंड कंपटीशन (ACTC) योजना के तहत 1,42,69,647 रुपये की वित्तीय सहायता मिली।

वैश्विक मंच पर उपलब्धियां

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  • विश्व चैंपियनशिप, काहिरा (2022): चौथे स्थान पर रहते हुए भारत के लिए 
  • ओलंपिक 2024 कोटा स्थान हासिल किया।
  • एशियाई खेल (2022): टीम इवेंट में स्वर्ण पदक।
  • विश्व कप, बाकू (2023): मिश्रित टीम इवेंट में स्वर्ण, व्यक्तिगत और टीम इवेंट में दो रजत पदक।
  • विश्व चैंपियनशिप, काहिरा (2022): टीम इवेंट में कांस्य पदक।
  • विश्व कप, नई दिल्ली (2021): टीम इवेंट में स्वर्ण पदक।

परिवार का गौरव और त्याग

महाराष्ट्र के कोल्हापुर के पास एक गांव से ओलंपिक पोडियम तक का स्वप्निल का सफर उनके परिवार के समर्थन और उनकी अटल दृढ़ता का प्रमाण है। उनके पिता एक जिला स्कूल शिक्षक हैं और उनकी माँ, कमबलवाड़ी गांव की सरपंच हैं, जो हमेशा उनके सहारे रहे हैं। स्वप्निल के पिता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "उन्हें गांव आने का बहुत कम समय मिलता है लेकिन जब भी आते हैं तो सभी के लिए कुछ न कुछ जरूर लाते हैं। इस बार ओलंपिक पदक लेकर घर आना हमारे लिए एक खास पल होगा।"

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कुसाले की यात्रा धैर्य और दृढ़ता के गुणों को दर्शाती है। 2012 से अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने के बावजूद, उन्हें अपना ओलंपिक डेब्यू करने के लिए 12 और साल इंतजार करना पड़ा। उनकी कहानी इस बात की एक शक्तिशाली याद दिलाती है कि अपने सपनों का बेखौफ पीछा करने का क्या मतलब होता है।

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