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देश भर में चल रहे कोरोनावायरस से हालात मुश्किल से मुश्किल होते जा रहे हैं। गरीब मजदूर इस स्थिति में सबसे ज़्यादा प्रभावित हो रहे हैं, वे अपने घरों तक पहुंचने और अपने परिवारों के साथ रहने के लिए मीलों पैदल चल रहे हैं। मुश्किल के इस समय के दौरान अपने परिवार से मिलने की चाहत लोगों को किसी भी हद तक जाने के लिए मजबूर कर सकती है।
15 वर्षीय लड़की ज्योति ने, दिल्ली से दरभंगा, बिहार में अपने घायल पिता को लाने के लिए लगभग 1,200 किलोमीटर साइकिल चलाई है। बहादुरी का यह फैसला ज्योति ने तब लिया जब उसके पास घर पहुंचने के लिए कोई ऑप्शन नहीं था।
उसने कहा, “रात में साइकिल चलाते हुए भी मुझे डर नहीं लगता था क्योंकि हमने सैकड़ों मजदूरों को सड़क पर चलते देखा । हमारी एकमात्र चिंता सड़क दुर्घटनाओं की थी, जिसका सौभाग्य से हमें सामना नहीं करना पड़ा।
उन्होंने कहा, “मेरे पिता दिल्ली में ई-रिक्शा चलाते थे। लेकिन वह बेरोजगार हो गए क्योंकि लॉकडाउन के बाद उन्हें अपने मालिक को रिक्शा सौंपना पड़ा और उन्हें पैर में चोट भी लगी थी। ”
ज्योति और उसके पिता के पास सिर्फ 600 रुपये थे जब उन्होंने दिल्ली से दरभंगा का सफर शुरू किया। ज्योति दिन-रात साइकिल चलाती थी और रात के समय पेट्रोल पंपों पर 2-3 घंटे का ब्रेक लेती थी। उन्होंने ज्यादातर रिलीफ कैंप में खाना खाया और रास्ते में कुछ अच्छे लोगों ने भी उनकी मदद की।
अपने शहर पहुँचने के बाद उन्हें गाँव की लाइब्रेरी में क्वारंटाइन किया गया। ग्रामीणों ने उन्हें भोजन भी उपलब्ध कराया और सरकारी मध्य विद्यालय, सरहुली में उनका टेस्ट किया गया और उन्हें घर भेज दिया गया और खुद को आइसोलेट करने की सलाह दी गई।
ज्योति के बहनोई मुकेश पासवान कहते हैं, "हम यह जानकर हैरान थे कि ज्योति अपने पिता के साथ दिल्ली से वापस साइकिल पर आई थी।"
15 वर्षीय लड़की ज्योति ने, दिल्ली से दरभंगा, बिहार में अपने घायल पिता को लाने के लिए लगभग 1,200 किलोमीटर साइकिल चलाई है। बहादुरी का यह फैसला ज्योति ने तब लिया जब उसके पास घर पहुंचने के लिए कोई ऑप्शन नहीं था।
इस पिता-पुत्री की जोड़ी ने 10 मई को अपनी यात्रा शुरू की, जब वे उन्हें घर ले जाने के लिए 6000 रुपये बस के किराए का भुगतान करने में असमर्थ थी। वे दोनों 16 मई को अपनी यात्रा पूरी कर दरभंगा पहुँचे।
उसने कहा, “रात में साइकिल चलाते हुए भी मुझे डर नहीं लगता था क्योंकि हमने सैकड़ों मजदूरों को सड़क पर चलते देखा । हमारी एकमात्र चिंता सड़क दुर्घटनाओं की थी, जिसका सौभाग्य से हमें सामना नहीं करना पड़ा।
उन्होंने कहा, “मेरे पिता दिल्ली में ई-रिक्शा चलाते थे। लेकिन वह बेरोजगार हो गए क्योंकि लॉकडाउन के बाद उन्हें अपने मालिक को रिक्शा सौंपना पड़ा और उन्हें पैर में चोट भी लगी थी। ”
कड़े संघर्ष का किया सामना
ज्योति और उसके पिता के पास सिर्फ 600 रुपये थे जब उन्होंने दिल्ली से दरभंगा का सफर शुरू किया। ज्योति दिन-रात साइकिल चलाती थी और रात के समय पेट्रोल पंपों पर 2-3 घंटे का ब्रेक लेती थी। उन्होंने ज्यादातर रिलीफ कैंप में खाना खाया और रास्ते में कुछ अच्छे लोगों ने भी उनकी मदद की।
अपने शहर पहुँचने के बाद उन्हें गाँव की लाइब्रेरी में क्वारंटाइन किया गया। ग्रामीणों ने उन्हें भोजन भी उपलब्ध कराया और सरकारी मध्य विद्यालय, सरहुली में उनका टेस्ट किया गया और उन्हें घर भेज दिया गया और खुद को आइसोलेट करने की सलाह दी गई।
ज्योति के बहनोई मुकेश पासवान कहते हैं, "हम यह जानकर हैरान थे कि ज्योति अपने पिता के साथ दिल्ली से वापस साइकिल पर आई थी।"