UP के एक स्कूल में सैनिटरी पैड मांगने पर छात्रा को सजा, कब खत्म होगी पीरियड्स पर शर्म?

बरेली में एक कक्षा 11 की छात्रा को सैनिटरी पैड मांगने पर सजा दी गई, जिससे मासिक धर्म को लेकर स्कूलों में मौजूद शर्म और भ्रांतियों पर सवाल उठ रहे हैं। क्या इस मानसिकता का अंत होगा? पढ़ें पूरी कहानी।

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Vaishali Garg
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UP Schoolgirl Punished For Asking Sanitary Pad

Representative Image: UN Wome

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में एक कक्षा 11 की छात्रा को परीक्षा के दौरान सैनिटरी पैड मांगने पर कथित रूप से सजा दी गई। इस घटना के बाद लड़की के पिता ने स्कूल प्रधानाचार्य के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। इस घटना ने समाज में मासिक धर्म को लेकर मौजूद शर्म और भ्रांतियों को एक बार फिर से उजागर किया है।

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UP के एक स्कूल में सैनिटरी पैड मांगने पर छात्रा को सजा, कब खत्म होगी पीरियड्स पर शर्म?

सैनिटरी पैड मांगने पर सजा

यह घटना 25 जनवरी को घटी, जब छात्रा स्कूल में परीक्षा देने के लिए गई थी। परीक्षा के दौरान जब उसे मासिक धर्म आ गया, तो उसने प्रधानाचार्य से सैनिटरी पैड मांगा। इसके बदले में उसे न केवल यह साधारण आवश्यकता नहीं दी गई, बल्कि उसे एक घंटे तक कक्षा से बाहर खड़ा रहने के लिए कह दिया गया। लड़की के पिता ने इस मामले में जिला मजिस्ट्रेट, जिला शिक्षा अधिकारी (DIOS), महिला आयोग और महिला कल्याण विभाग को लिखित शिकायत सौंपी है।

शिक्षा मंत्रालय का निर्देश

मंत्रालय के अनुसार, परीक्षा केंद्रों पर छात्राओं को सैनिटरी पैड उपलब्ध कराना अनिवार्य है, और उन्हें परीक्षा के दौरान विश्राम के लिए भी जाने की अनुमति दी जानी चाहिए। 2024 में शिक्षा मंत्रालय ने यह निर्देश जारी किया था कि सभी कक्षा 10 और 12 के बोर्ड परीक्षा केंद्रों पर सैनिटरी पैड मुहैया कराए जाएंगे, ताकि छात्राओं को उनकी मासिक धर्म संबंधित जरूरतों के लिए कोई समस्या न हो।

मासिक धर्म पर क्यूं हैं भ्रांतियाँ?

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भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में मासिक धर्म को लेकर कई प्रकार की भ्रांतियाँ और टैबू हैं। जहां एक ओर स्कूलों को शिक्षा और सशक्तिकरण का केंद्र होना चाहिए, वहीं दूसरी ओर बरेली जैसे मामलों में यह देखा गया है कि शिक्षक और शैक्षिक संस्थान स्वयं इस विषय पर संवेदनशीलता और समझ से वंचित हैं। इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि छात्रों और शिक्षकों दोनों के लिए मासिक धर्म और महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी शिक्षा कितनी जरूरी है।

क्या है समाधान?

इस घटना से यह सवाल उठता है कि कब तक मासिक धर्म को लेकर शर्म और दमन की मानसिकता जारी रहेगी? शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में इस समस्या का हल तभी निकल सकता है, जब हम सभी स्तरों पर मासिक धर्म से संबंधित बातचीत को सामान्य करें, इसके बारे में अधिक जानकारी फैलाएं और संस्थानों में इस विषय पर संसाधन उपलब्ध कराएं।

बजट 2025 और मासिक धर्म शिक्षा

केंद्र सरकार के आगामी बजट 2025 में इस बात की उम्मीद की जा रही है कि स्कूलों में मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता जागरूकता कार्यक्रमों पर जोर दिया जाएगा। यह एक सकारात्मक कदम होगा, जिससे इस मुद्दे पर अधिक समझ और संवेदनशीलता बढ़ेगी। लड़कियों के साथ-साथ लड़कों और बड़ों को भी मासिक धर्म के बारे में सही जानकारी और शिक्षा देने की आवश्यकता है, ताकि समाज में इसे लेकर मौजूद दकियानूसी विचारधाराओं का अंत किया जा सके।

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मासिक धर्म पर मौजूद स्टीग्मा को खत्म करने के लिए हमें सही शिक्षा, सही संसाधनों और हर स्तर पर जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। इस दिशा में हर कदम समाज की मानसिकता को बदलने में मदद करेगा और हम एक ऐसे समाज की ओर बढ़ेंगे, जहां मासिक धर्म और महिला स्वास्थ्य को लेकर कोई शर्मिंदगी न हो।

यह आर्टिकल तान्या के आर्टिकल से इंस्पायर्ड है।

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