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कोलारा कलां गांव में महिलाओं की जीत की कहानी Photograph: (Times Of India)
10-Year-Old Vanshika's 17-Day Hunger Strike Forces Liquor Shop Closure in UP Village: उत्तर प्रदेश के आगरा जिले से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित कोलारा कलां गांव में एक 10 साल की बच्ची ने ऐसा कारनामा कर दिखाया है जो पूरे देश के लिए प्रेरणा बन गया है। वंशिका सिकरवार नाम की इस बच्ची ने गांव में महिलाओं की सुरक्षा के लिए 17 दिन तक भूख हड़ताल की, जिसके बाद आखिरकार प्रशासन को गांव से शराब का ठेका हटाना पड़ा।
10 साल की वंशिका के भूख हड़ताल से यूपी के गांव में हटाया गया शराब ठेका
क्यों हुआ था विरोध?
कोलारा कलां गांव में आबकारी विभाग द्वारा एक शराब का ठेका खोला गया था, जिसके चलते गांव की महिलाएं और लड़कियां असुरक्षित महसूस कर रही थीं। ठेके के पास शराब पीने वालों द्वारा अक्सर महिलाओं पर फब्तियां कसने और छेड़छाड़ की घटनाएं बढ़ने लगी थीं। यहां तक कि घरेलू हिंसा की घटनाओं में भी बढ़ोतरी देखी गई थी, क्योंकि नशे में धुत पुरुष घर आकर अपने परिवारजनों के साथ मारपीट करते थे।
गांव की महिलाएं और ग्रामीण 1 अप्रैल से ही इस ठेके के खिलाफ विरोध कर रहे थे, लेकिन जब 10 साल की वंशिका ने अपनी भूख हड़ताल शुरू की, तब जाकर आंदोलन को असली ताकत मिली।
वंशिका की अदम्य हिम्मत
वंशिका ने बताया कि उसके माता-पिता ने उसे भूख हड़ताल पर बैठने से मना किया था, लेकिन गांव में महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार को देखकर उसने खुद निर्णय लिया और ठान लिया कि वह चुप नहीं बैठेगी।
"मेरे माता-पिता ने मुझे समझाया कि भूख हड़ताल करना ठीक नहीं है, लेकिन मैंने खुद फैसला किया कि महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के लिए कुछ करना जरूरी है," वंशिका (Times of India को दिए बयान में) 17 दिनों तक बिना अन्न-जल ग्रहण किए संघर्ष करने के बाद वंशिका की मेहनत रंग लाई।
प्रशासन की प्रतिक्रिया
वंशिका की हालत बिगड़ने पर उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष बबीता चौहान खुद गांव पहुंचीं। उन्होंने वंशिका को पानी पिलाकर उसका अनशन तुड़वाया और आश्वासन दिया कि शराब का ठेका गांव से हटाया जाएगा।
आगरा के आबकारी अधिकारी नीरज द्विवेदी ने भी पुष्टि की कि जल्द ही ग्रामीणों से बातचीत कर शराब ठेके को किसी दूसरी जगह स्थानांतरित किया जाएगा। ठेकेदार ने भी इस फैसले को स्वीकार कर लिया है।
महिलाओं की सुरक्षा की दिशा में एक बड़ी जीत
वंशिका और कोलारा कलां गांव के लोगों की यह लड़ाई एक मिसाल बन गई है। यह घटना दिखाती है कि जब समाज की बेटियां आगे आती हैं तो बदलाव संभव होता है। खासकर महिलाओं और बच्चों के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने की दिशा में यह एक प्रेरणादायक पहल है।